मंगल पांडेय लोकसभा सांसद परिचय सूची

नाम : विजय कुमार हांसदा
पद : लोकसभा संसद
संसदीय क्षेत्र : राजमहल
पार्टी : झारखंड मुक्ति मोर्च
चुनाव : 2017
राज्य : झारखंड
सम्मान पत्र :

प्रमाणित किया जाता है 

विवरण :

Vijay Hansdak

Member of Parliament (Incumbent)

Preceded by Devidhan Besra

Constituency Rajmahal

Personal details

Born 27 October 1982 (age 35)

Kalitalla, Barharwa, Jharkhand

Political party Jharkhand Mukti Morcha (JMM)

Residence Barharwa

As of 15th December, 2016

Mob. : 09939124810

राजमहल लोकसभा क्षेत्र के बारे में 

राजमहल भारत के झारखंड राज्य के साहेबगंज जिले में एक ससदीय निर्वाचन क्षेत्र  है। लोकसभा चुनाव- २०१४ में झारखण्ड मुक्ति मोर्च समर्थित माननीय विजय कुमार हांसदा ने  (379507) वोट प्राप्त कर बीजेपी समर्थित हेमलाल मुरुम को कुल वोट संख्या (338170) वोट प्राप्त हुए  माननीय विजय कुमार हांसदा जी ने ४०,००० वोटों से  जीतकर सांसद निर्वाचित हुए, विजय हंसदाक भारत की 16 वीं लोक सभा के सदस्य हैं। वह झारखंड के राजमहल निर्वाचन क्षेत्र और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) राजनीतिक दल के सदस्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। [1] विजय एक ही सीट से पूर्व कांग्रेस सांसद और पूर्व कांग्रेस राज्य (झारखंड) के राष्ट्रपति लेट थॉमस हंसदा के बेटे हैं। चुनाव की घोषणा की जाने से ठीक पहले विजय जेएमएम गुना में शामिल हो गए। 

राजमहल के बारे में 

राजमहल झारखंड के साहिबगंज जिले अधिसूचित क्षेत्र शहर है। यद्यपि यह बहुत दुर्लभ आबादी वाला एक बेहद छोटा शहर है, लेकिन फिर भी यह बेहद ऐतिहासिक शहर है। वास्तव में इस शहर में भारत के मध्ययुगीन इतिहास में भूमिका थी जब यह भारतीय उप महाद्वीप में सबसे महत्वपूर्ण प्रांतों में से एक की राजधानी बन गई। इस छोटे शहर के बारे में इस और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में और अधिक हमारे अनुच्छेदों में प्रदान किया गया है।

राजमहल पर्यटन

सिंघी-दालान 

राजमहल का इतिहास

राजमहल एक बार सभी शक्तिशाली बंगाल प्रांत की राजधानी थी, जो मध्ययुगीन शताब्दी के दौरान वास्तव में पूरे भारतीय उप महाद्वीप का सबसे शक्तिशाली प्रांत था। और यह इस शक्तिशाली प्रांत की राजधानी के रूप में एक बार नहीं बल्कि दो बार सेवा करता था। यह ऐतिहासिक पैर मानव सिंह द्वारा संभव बनाया गया था, जो मुगल सम्राट अकबर के जनरल थे। कहानी यह है कि वर्ष 15 9 2 में उड़ीसा की जीत से लौटने पर मैन सिंह ने राजमहल शहर में थोड़ी देर रुका था। यह इस संक्षिप्त प्रवास के दौरान था कि उन्हें एहसास हुआ कि यह छोटा शहर बंगाल और बिहार प्रांत के संदर्भ में बहुत केंद्रीय रूप से स्थित था। इस अहसास ने राजमहल शहर के भाग्य को हमेशा के लिए बदल दिया। अगले तीन वर्षों के दौरान, यानी वर्ष 15 9 5 में, राजमहल को आखिरकार बंगाल प्रांत की राजधानी बना दिया गया।

इस तरह के एक महत्वपूर्ण प्रांत की राजधानी बनने के बाद, एक बार अज्ञात राजमहल शहर ने अचानक भारतीय उपमहाद्वीप में अभूतपूर्व महत्व हासिल किया। यह समझ में आता है कि वर्ष 15 9 5 के बाद यहां कई ऐतिहासिक स्मारकों का निर्माण क्यों हुआ। राजमहल शहर की यह शानदार अवधि वास्तव में लंबे समय तक नहीं टिकी। 1608 में इस्लाम खान प्रथम - मुगल सम्राट जहांगीर के जनरल - राजधानी को राजमहल से ढाका शहर (अब बांग्लादेश में) स्थानांतरित कर दिया। लेकिन भाग्य के रूप में, राजमहल शहर ने मुगल सम्राट शाहजहां के पुत्र शाह शुजा के बाद राजधानी की स्थिति वापस प्राप्त की - बंगाल प्रांत के गवर्नर जनरल थे। उन्होंने राजधानी को 1638-39 में राजमहल शहर में वापस स्थानांतरित कर दिया। मुगल शासन के तहत राजमहल का गौरवशाली युग, 18 वीं शताब्दी के दौरान भारतीय साम्राज्य में ब्रिटिश साम्राज्य (जिसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से जाना जाता था) के बाद अचानक अंत में आया था। उन्होंने प्लासी के युद्ध में मुगलों को सफलतापूर्वक पराजित करने के बाद अपना आगमन घोषित कर दिया, जो संयोग से बंगाल प्रांत में लड़ा गया था।

 राजमहल हेड क्वार्टर राजमहल शहर है। यह जिला मुख्यालय साहिबगंज से दक्षिण की ओर 2 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम की ओर राज्य की राजधानी रांची से 365 किमी।

राजमहल उत्तर में तलजारी ब्लॉक, दक्षिण में उधवा ब्लॉक, पश्चिम की तरफ बोरियो ब्लॉक, पूर्व की ओर माणिकचक ब्लॉक से घिरा हुआ है। साहिबगंज शहर, मनीहारी शहर, धुलीयन शहर, पाकौर शहर राजमहल के नजदीकी शहर हैं।

 यह 30 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है। यह जगह साहेबगंज जिला और मालदाह जिले की सीमा में है। मालदाह जिला माणिकचक इस जगह की ओर पूर्व है। यह पश्चिम बंगाल राज्य सीमा के नजदीक है।

साहिबगंज, मालदा (आम शहर), अंग्रेजी-बाज़ार (मालदा), पाकुर (पाकौर), भागलपुर (भगदत्तपुरम) देखने के लिए महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के निकट हैं।

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है। इसके अलावा लोग सांताली, अंगिका बोलते हैं।

राजमहल ब्लॉक में राजनीति

राजमहल ब्लॉक राजमहल संसद निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है, मौजूदा सांसद माननीय विजय कुमार हंसदा झारखंड मुक्ति मोर्चा संपर्क न. 

राजमहल संसद निर्वाचन क्षेत्र में मंडल।

गोपीकंदर, बोरीजोर, महागमा, मेहरमा, पादरगामा, सुंदरपाहारी, ठाकुरंगती, अम्रापरा,हिरणपुर, लिटिपारा, महेशपुर, पाकुर, पाकुरिया, बरत, बरहरवा, बोरियो, मंड्रो, पाठना, राजमहल, साहिबगंज,

राजमहल लोकसभा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से सांसद जितनी का इतिहास 

1957:  पायक मुर्मू , भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1962: ईश्वर मरांडी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1967: ईश्वर मरांडी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1971: ईश्वर मरांडी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1977: एंथनी मुर्मू, जनता पार्टी

1980: सेठ हेमब्रम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1984: सेठ हेमब्रम, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1989: साइमन मरांडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा

1991: साइमन मरांडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा

1996: थॉमस हंसदा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1998: सोम मरांडी, भारतीय जनता पार्टी

1999: थॉमस हंसदा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

2004: हेमलला मुर्मू, झारखंड मुक्ति मोर्चा

200 9: देवधन बेसरा, भारतीय जनता पार्टी

2014: विजय कुमार हंसदाक, झारखंड मुक्ति मोर्चा

राजमहल  का मौसम और जलवायु

गर्मियों में गर्म है। राजमहल गर्मी का सबसे ऊंचा दिन तापमान 2 9 डिग्री सेल्सियस से 44 डिग्री सेल्सियस के बीच है।

जनवरी का औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस है, फरवरी 22 डिग्री सेल्सियस है, मार्च 28 डिग्री सेल्सियस है, अप्रैल 32 डिग्री सेल्सियस है, मई 32 डिग्री सेल्सियस है।

राजमहल ब्लॉक कैसे पहुंचे

रेल द्वारा

मुरली हल्ट रेल वे स्टेशन, कालियन चक रेल वे स्टेशन राजमहल ब्लॉक के पास के पास के रेलवे स्टेशन हैं। मालदा टाउन रेल वे स्टेशन राजमहल के पास 41 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है

राजमहल ब्लॉक के पिन कोड

816110 (पाठना), 81612 9 (तलजारी), 816116 (टिनपाहर आरएस), 816108 (राजमहल)

आस पास के शहर

साहिबगंज 28 किमी निकट

मनीहारी के पास 39 किमी

धूलियन 50 किमी निकट

 

प्रखंड के पास

पासौर 51 किलोमीटर दूर

राजमहल 0 किलोमीटर निकट

तलजारी 6 किमी निकट

उधवा 14 किमी निकट

 

एयर पोर्ट्स के पास 

बोरियो 17 किमी

बागडोगरा  हवाई अड्डे के पास 214 किमी

रुप्सी एयरपोर्ट 277 किलोमीटर निकट है

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट 307 किलोमीटर दूर है

पटना हवाई अड्डे के पास 30 9 किमी

 

जिलों के पास

साहेबगंज 28 किमी निकट

मालदाह 41 किलोमीटर दूर है

पाकुर  50 किमी निकट

 

रेलवे स्टेशन के पास 

कटिहार 66 किमी

मुरली हल्ट रेल वे स्टेशन 3.0 किमी निकट

कालियन चक रेल वे स्टेशन 3.9 किमी निकट

टिनपाहर रेल वे स्टेशन 6.4 किलोमीटर दूर है

बरहरवा  रेल वे स्टेशन 22 किलोमीटर निकट है

विकास कार्य :

list 2018

मंगल पांडेय की जीवनी
जन्म: 30 जनवरी 1831, नगवा गांव, बलिया जिला
निधन: 8 अप्रैल 1857, बैरकपुर, पश्चिम बंगाल
कार्य: सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रदूत
मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे। उनके द्वारा भड़काई गई क्रांति की ज्वाला से अंग्रेज़ शासन बुरी तरह हिल गया। हालाँकि अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबा दिया पर मंगल पांडे की शहादत ने देश में जो क्रांति के बीज बोए उसने अंग्रेजी हुकुमत को 100 साल के अन्दर ही भारत से उखाड़ फेका। मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अंतर्गत 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में एक सिपाही थे। सन 1857 की क्रांति के दौरान मंगल पाण्डेय ने एक ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में भी फ़ैल गया। यह भले ही भारत के स्वाधीनता का प्रथम संग्राम न रहा हो पर यह क्रांति निरंतर आगे बढ़ती गयी। अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी पर मंगल पांडे प्रत्येक भारतीय के लिए एक महानायक हैं।
प्रारंभिक जीवन
मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जनवरी 1831 को संयुक प्रांत के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे तथा माता का नाम श्रीमती अभय रानी था। सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने के कारण युवावस्था में उन्हें रोजी-रोटी की मजबूरी में अंग्रेजों की फौज में नौकरी करने पर मजबूर कर दिया। वो सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे।
ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तर आदि की नीति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत पैदा कर दी थी और जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।
भारतीय सैनिकों के साथ होने वाले भेदभाव से पहले से ही भारतीय सैनिकों में असंतोष था और नई कारतूसों से सम्बंधित अफवाह ने आग में घी का कार्य किया। 9 फरवरी 1857 को जब ‘नया कारतूस’ देशी पैदल सेना को बांटा गया तब मंगल पाण्डेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप उनके हथियार छीन लिये जाने व वर्दी उतार लेने का हुक्म हुआ। मंगल पाण्डेय ने उस आदेश को मानने से इनकार कर दिया और 29 मार्च सन् 1857 को उनकी राइफल छीनने के लिये आगे बढे अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन पर आक्रमण कर दिया। इस प्रकार संदिग्ध कारतूस का प्रयोग ईस्ट इंडिया कंपनी शासन के लिए घातक सिद्ध हुआ और मंगल पांडेय ने बैरकपुर छावनी में 29 मार्च 1857 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया।
आक्रमण करने से पहले मंगल ने अपने अन्य साथियों से समर्थन का आह्वान भी किया था पर डर के कारण जब किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया तो उन्होंने अपनी ही रायफल से उस अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूसन को मौत के घाट उतार दिया जो उनकी वर्दी उतारने और रायफल छीनने को आगे आया था। इसके बाद पांडे ने एक और अँगरेज़ अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को मौत के घात उतार दिया जिसके बाद मंगल पाण्डेय को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड लिया। उन पर कोर्ट मार्शल द्वारा मुकदमा चलाकर 6 अप्रैल 1857 को फांसी की सजा सुना दी गयी। फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फाँसी दी जानी थी, पर ब्रिटिश सरकार ने मंगल पाण्डेय को निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ही 8 अप्रैल सन् 1857 को फाँसी पर लटका दिया।
मंगल पांडे और भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम
जैसा की पहले बताया जा चुका है कि भारत के लोगों में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति विभिन्न कारणों से घृणा बढ़ती जा रही थी और मंगल पांडे के विद्रोह ने एक चिन्गारी का कार्य किया। मंगल द्वारा विद्रोह के ठीक एक महीने बाद ही 10 मई सन् 1857 को मेरठ की सैनिक छावनी में भी बगावत हो गयी और यह विद्रोह देखते-देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया।
इस बगावत और मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। यद्यपि अंग्रेज इस विद्रोह को दबाने में सफल हो गए, लेकिन मंगल द्वारा 1857 में बोया गया क्रांति का बीज 90 साल बाद आजादी के वृक्ष के रूप में तब्दील हो गया।
इस विद्रोह (जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है) में सैनिकों समेत अपदस्थ राजा-रजवाड़े, किसान और मजदूर भी शामिल हुए और अंग्रेजी हुकुमत को करारा झटका दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।
आधुनिक युग में मंगल पांडे
मंगल पांडे के जीवन के पर फिल्म और नाटक प्रदर्शित हुए हैं और पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। सन 2005 में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान द्वारा अभिनित ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का निर्देशन केतन मेहता ने किया था। सन 2005 में ही ‘द रोटी रिबेलियन’ नामक नाटक का भी मंचन किया गया। इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुप्रिया करुणाकरण ने किया था। जेडी स्मिथ के प्रथम उपन्यास ‘वाइट टीथ’ में भी मंगल पांडे का जिक्र है। सन 1857 के विद्रोह के पश्चात अंग्रेजों के बीच ‘पैंडी’ शब्द बहुत प्रचलित हुआ, जिसका अभिप्राय था गद्दार या विद्रोही। भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 1984 में मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी मंगल पांडेय के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी