स्वतंत्र भारत के महामहिम राष्ट्रपति/ उप राष्ट्रपति परिचय सूची

नाम : डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन
पद : उप राष्ट्रपति भारत
कार्यकाल : २६ जनवरी १९५० १३ मई १९६२
समर्थित : स्वतन्त्र
उपलब्धि :

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पुरस्कार – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Awards

  • 1938- ब्रिटिश अकादमी के सभासद के रूप में नियुक्ति।
  • 1954- नागरिकत्व का सबसे बड़ा सम्मान, “भारत रत्न”।
  • 1954- जर्मन के, “कला और विज्ञानं के विशेषग्य”।
  • 1961- जर्मन बुक ट्रेड का “शांति पुरस्कार”।
  • 1962- भारतीय शिक्षक दिन संस्था, हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिन के रूप में मनाती है।
  • 1963- ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान।
  • 1968- साहित्य अकादमी द्वारा उनका सभासद बनने का सम्मान (ये सम्मान पाने वाले वे पहले व्यक्ति थे)।
  • 1975- टेम्पलटन पुरस्कार। अपने जीवन में लोगो को सुशिक्षित बनाने, उनकी सोच बदलने और लोगो में एक-दुसरे के प्रति प्यार बढ़ाने और एकता बनाये रखने के लिए दिया गया। जो उन्होंने उनकी मृत्यु के कुछ महीने पहले ही, टेम्पलटन पुरस्कार की पूरी राशी ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय को दान स्वरुप दी।
  • 1989- ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अपने जीवन में शिक्षा और शिक्षको से बहोत लगाव था। उस समय जिस समय में वह विद्यार्थी थे, तब शिक्षको को कोई खास दर्जा नहीं जाता था। तब उन्होंने अपने जन्मदिन को शिक्षक दिन के रूप में मनाने का एक बड़ा निर्णय लिया था। वे भारत को एक शिक्षित राष्ट्र बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चो को पढ़ाने और जीवन जीने का सही तरीका बताने में व्यतीत किया।

परिचय :
कार्यकाल
१३ मई१९५२ – १२ मई१९६२
राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद
पूर्व अधिकारी कार्यालय आरम्भ
उत्तराधिकारी डॉ॰ ज़ाकिर हुसैन

जन्म ५ सितम्बर १८८८
तिरुट्टनीतमिल नाडुभारत
मृत्यु १७ अप्रैल १९७५ (आयु: ८८ वर्ष)
चेन्नईतमिल नाडुभारत
राजनैतिक पार्टी स्वतन्त्र
जीवन संगी शिवकामु
संतान ५ पुत्रियाँ एवं १ पुत्र
व्यवसाय राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, शिक्षाविद, विचारक
धर्म हिन्दू

१९५२ चुनाव & १९५७ चुनाव
राजेंद्र प्रसाद, जो कि बिहार से थे, भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने। वे स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वे एकमात्र राष्ट्रपति थे जो कि दो बार रष्ट्रपति बने।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान भारतीय दर्शनशास्त्री थे जो 1952-1962 तक भारत के उपराष्ट्रपति तथा 1962 से 1967 तक भारत के दुसरे राष्ट्रपति रह चुके है। उनका विद्यार्थियों और शिक्षकों के साथ बहुत ज्यादा लगाव था और शिक्षण क्षेत्र में भी उन्होंने अच्छे कार्य किये थे। इसीलिए पुरे भारत में 5 सितम्बर उनके जन्मदिन पर शिक्षक दिन मनाया जाता हैं। आज हम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के महान जीवन के बारे में संक्षेप में जानते हैं।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन 20 वी सदी के दर्शनशास्त्र और धार्मिकता के एक असाधारण विद्वान थे। उनके शैक्षणिक नियुक्ति में कलकत्ता विश्वविद्यालय (1921-1932) में किंग जॉर्ज के मानसिकऔर नैतिक विज्ञानं का पद भी शामिल है और साथ ही वे पूर्वी धर्म के प्रोफेसर और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय (1936-1952) में नीतिशास्त्र के प्रोफेसर भी थे।

उनके दर्शनशास्त्र का आधार अद्वैत वेदांत था, जिसे वे आधुनिक समझ के लिए पुनर्स्थापित करवाना चाहते थे। उन्होंने पश्चिमी परम्पराओ की आलोचना करते हुए हिंदुत्वता की रक्षा की, ताकि वे देश में एक आधुनिक Hindi समाज का निर्माण कर सके। वे भारतीयों और पश्चिमी दोनों देशो में हिंदुत्वता की एक साफ़-सुथरी तस्वीर बनाना चाहते थे। जिसे दोनों देशो के लोग आसानी से समझ सके और भारतीय और पश्चिमी देशो के मध्य संबंध विकसित हो सके।

राधाकृष्णन को उनके जीवन के कई उच्चस्तर के पुरस्कारों से नवाज़ा गया जिसमे 1931 में दी गयी “सामंत की उपाधि” भी शामिल है और 1954 में दिया गया भारत का नागरिकत्व का सबसे बड़ा पुरस्कार “भारत रत्न” भी शामिल है तथा उन्हें 1963 में ब्रिटिश रॉयल आर्डर की सदस्यता भी दी गयी। राधाकृष्णन का ऐसा मानना था की, “शिक्षक ही देश की सबसे बड़ी सोच होते है”। और तभी से 1962 से उनके जन्मदिन 5 सितम्बर को “शिक्षक दिवस” के रूप में मनाया जाता है।

प्रारंभिक जीवन – 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी ग्राम में जो तत्कालीन मद्रास से लगभग थोड़ी दुरी पर है वहा एक तेलगु परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम सर्वेपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सिताम्मा है। उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन तिरुतनी और तिरुपति में बिताया। उनके पिता राजस्व विभाग में काम करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तिरुतनी में ही हुई और 1896 में वे पढने के लिए तिरुपति चले गये।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Education

उनके विद्यार्थी जीवन में कई बार उन्हें शिष्यवृत्ति स्वरुप पुरस्कार मिले। उन्होंने वूरहीस महाविद्यालय, वेल्लोर जाना शुरू किया लेकिन बाद में 17 साल की आयु में ही वे मद्रास क्रिस्चियन महाविद्यालय चले गये। जहा 1906 में वे स्नातक हुए और बाद में वही से उन्होंने दर्शनशास्त्र में अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की। उनकी इस उपलब्धि ने उनको उस महाविद्यालय का एक आदर्श विद्यार्थी बनाया।

दर्शनशास्त्र में राधाकृष्णन अपनी इच्छा से नहीं गये थे उन्हें अचानक ही उसमे प्रवेश लेना पड़ा। उनकी आर्थिक स्थिति ख़राब हो जाने के कारण जब उनके एक भाई ने उसी महाविद्यालय से पढाई पूरी की तभी मजबूरन राधाकृष्णन को आगे उसी की दर्शनशास्त्र की किताब लेकर आगे पढना पड़ा।

एम.ए. में राधाकृष्णन में अपने कई शोधप्रबंध लिखे जिसमे “वेदांत का नीतिशास्त्र और उसकी सैधान्तिक पूर्वकल्पना” भी शामिल है। उन्हें हमेशा से ऐसा लगता था की आधुनिक युग के सामने वेदांत को एक नए रूप में रखने की जरुरत है। लेकिन राधाकृष्णन को हमेशा से ये दर था की कही उनके इस शोध प्रबंध को देख कर उनके दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अल्फ्रेड जॉर्ज कही उन्हें डाट ना दे।

लेकिन डटने की बजाये जब डॉ. अल्फ्रेड जॉर्ज ने उनका शोध प्रबंध देखा तो उन्होंने उसकी बहोत तारीफ़ की। और जब राधाकृष्णन केवल 20 साल के थे तभी उनका शोध प्रबंध प्रकाशित किया गया। राधाकृष्णन के अनुसार, हॉग और उनके अन्य शिक्षको की आलोचनाओ ने, “हमेशा उन्हें परेशान किया और उनके विश्वास को कम करते गये जिस से भारतीय प्राचीन परम्पराओ से उनका विश्वास कम हो रहा था”। राधाकृष्णन ने स्वयम यह बताया की कैसे वे एक विद्यार्थी की तरह रहे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन विवाह और परिवार 

राधाकृष्णन का विवाह 16 साल की आयु में उनके दूर की रिश्तेदार सिवाकमु के साथ हुआ। राधाकृष्णन और सिवाकमु को 5 बेटी और एक बेटा, जिसका नाम सर्वपल्ली गोपाल था। सर्वपल्ली गोपाल एक महान इतिहासकार के रूप में भी जाने जाते है। सिवाकमु की मृत्यु 1956 में हुई। भूतकालीन भारतीय टेस्ट खिलाडी व्ही.व्ही.एस. लक्ष्मण उनके बड़े भतीजे है।

शिक्षक दिन – September 5 Teachers Day

जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तब उनके कुछ मित्रो और विद्यार्थियों ने उनसे कहा की वे उन्हें उनका जन्मदिन (5 सितम्बर) मनाने दे। तब राधाकृष्णन ने बड़ा ही प्यारा जवाब दिया, “5 सितम्बर को मेरा जन्मदिन मनाने की बजाये उस दिन अगर शिक्षको का जन्मदिन मनाया जाये, तो निच्छित ही यह मेरे लिए गर्व की बात होगी।”और तभी से उनका जन्मदिन भारत में शिक्षक दिन – Teachers Day के रूप में मनाया जाता है।1931 में उन्हें सावंत स्नातक के रूप में नियुक्त किया गया। और स्वतंत्रता के बाद से ही उन्होंने अपने नाम के आगे “सर” शब्द का उपयोग भी बंद कर दिया।