स्वतंत्र भारत के माननीय प्रधानमंत्री परिचय सूची

नाम : श्री मनमोहन सिंह
पद : मा. प्रधानमंत्री भारत सरकार
कार्यकाल : 22 मई, 2009-17 मई 2014
पार्टी : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
चुनाव : असम राज्यसभा
परिचय :
मनमोहन सिंह
भारत के १३वें प्रधानमन्त्री
कार्यकाल
२२ मई २००४ – २६ मई २०१४
Presidentए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम
प्रतिभा देवीसिंह पाटिल
प्रणब मुखर्जी
पूर्ववर्तीअटल बिहारी वाजपेयी
परवर्तीनरेन्द्र मोदी
जन्म26 सितम्बर 1932 (आयु 85)
पंजाब (पाकिस्तान), पाकिस्तान
राजनैतिक दलभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगीगुरशरण कौर
मनमोहन सिंह (पंजाबी: ਮਨਮੋਹਨ ਸਿੰਘ; जन्म : २६ सितंबर १९३२) भारत गणराज्य के १३वें प्रधानमन्त्री थे। साथ ही साथ वे एक अर्थशास्त्री भी हैं। लोकसभा चुनाव २००९ में मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बन गये हैं, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है। इन्हें २१ जून १९९१ से १६ मई १९९६ तक पी वी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मन्त्री के रूप में किए गए आर्थिक सुधारों के लिए भी श्रेय दिया जाता है।
संक्षिप्त जीवनी
मनमोहन सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) के पंजाब प्रान्त में २६ सितम्बर,१९३२ को हुआ था। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का नाम गुरुमुख सिंह था। देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत चला आया। यहाँ पंजाब विश्वविद्यालय से उन्होंने स्नातक तथा स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गये। जहाँ से उन्होंने पीएच. डी. की। तत्पश्चात् उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. भी किया। उनकी पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। डॉ॰ सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे और १९८७ तथा १९९० में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। १९७१ में डॉ॰ सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मन्त्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किये गये। इसके तुरन्त बाद १९७२ में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे हैं। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब डॉ॰ सिंह १९९१ से १९९६ तक भारत के वित्त मन्त्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ॰ सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। डॉ॰ सिंह के परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर और तीन बेटियाँ हैं।
राजनीतिक जीवन
1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर उन्होंने निरन्तर पाँच वर्षों तक कार्य किया, जबकि १९९० में यह प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। जब पी वी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने मनमोहन सिंह को १९९१ में अपने मंत्रिमंडल में सम्मिलित करते हुए वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। इस समय डॉ॰ मनमोहन सिंह न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य थे। लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सरकार के मंत्री को संसद का सदस्य होना आवश्यक होता है। इसलिए उन्हें १९९१ में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया।
मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के साथ जोड़ दिया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने आयात और निर्यात को भी सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की चीज़ हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित करके रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित कीं। नई अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी. वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा।[कृपया उद्धरण जोड़ें] विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोग से सावधान कर रहा था। लेकिन श्री राव ने मनमोहन सिंह पर पूरा यक़ीन रखा।[कृपया उद्धरण जोड़ें] मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद हो गए और उनकी आँखें फैल गईं। उदारीकरण के बेहतरीन परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में नज़र आने लगे थे और इस प्रकार एक ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र का प्रोफ़ेसर था, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ ताकि देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
पद
सिंह पहले पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स में प्रोफेसर के पद पर थे। १९७१ में मनमोहन सिंह भारत सरकार की कॉमर्स मिनिस्ट्री में आर्थिक सलाहकार के तौर पर शामिल हुए थे। १९७२ में मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में चीफ इकॉनॉमिक अडवाइज़र बन गए। अन्य जिन पदों पर वह रहे, वे हैं– वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष। मनमोहन सिंह 1991 से राज्यसभा के सदस्य हैं। १९९८ से २००४ में वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे। मनमोहन सिंह ने प्रथम बार ७२ वर्ष की उम्र में २२ मई २००४ से प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल २००९ में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। इसके पश्चात् लोकसभा के चुनाव हुए और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पुन: विजयी हुआ और सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो बार बाईपास सर्जरी हुई है। दूसरी बार फ़रवरी २००९ में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इनकी शल्य-चिकित्सा की। प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा था, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। लेकिन २००९ की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। परन्तु भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उसे उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को उठाना पड़ा है। 26 नवम्बर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकियों ने हमला किया।[कृपया उद्धरण जोड़ें] दिल दहला देने वाले उस हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था।[कृपया उद्धरण जोड़ें] तब सिंह ने शिवराज पाटिल को हटाकर पी. चिदम्बरम को गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी और प्रणव मुखर्जी को नया वित्त मंत्री बनाया।
जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव
१९५७ से १९६५ - चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक
१९६९-१९७१ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर
१९७६ - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
१९८२ से १९८५ - भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
१९८५ से १९८७ - योजना आयोग के उपाध्यक्ष
१९९० से १९९१ - भारतीय प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार
१९९१ - नरसिंहराव के नेतृत्व वाली काँग्रेस सरकार में वित्त मन्त्री
१९९१ - असम से राज्यसभा के सदस्य
१९९५ - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
१९९६ - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
१९९९ - दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गये।
२००१ - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
२००४ - भारत के प्रधानमन्त्री
इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिये भी काफी महत्वपूर्ण काम किया है।
पुरस्कार एवं सम्मान
सन १९८७ में उपरोक्त पद्म विभूषण के अतिरिक्त भारत के सार्वजनिक जीवन में डॉ॰ सिंह को अनेकों पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं जिनमें प्रमुख हैं: -
२००२ - सर्वश्रेष्ठ सांसद
१९९५ में इण्डियन साइंस कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू पुरस्कार,
१९९३ और १९९४ का एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनेन्स मिनिस्टर ऑफ द ईयर,
१९९४ का यूरो मनी अवार्ड फॉर द फाइनेन्स मिनिस्टर आफ़ द ईयर,
१९५६ में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय का एडम स्मिथ पुरस्कार
डॉ॰ सिंह ने कई राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। अपने राजनैतिक जीवन में वे १९९१ से राज्य सभा के सांसद तो रहे ही, १९९८ तथा २००४ की संसद में विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं।
उपलब्धि :

उपलब्धियां

1. देश को स्थिर सरकार
यूपीए-2 के दौरान कई ऐसे मौके आये, जब लगा कि मनमोहन सरकार खतरे में है और उसके लिए सदन में बहुमत बचा पाना मुश्किल होगा। इस दौरान तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसे बड़े घटक दलों ने यूपीए का साथ छोड़ दिया। घोटालों और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर सरकार संसद में लगातार विपक्ष के निशाने पर रही, फिर भी नंबर गेम में वह हमेशा आगे बनी रही। ऐसे में बहुमत बचाये रख पाना एक बड़ी उपलब्धि कही जायेगी।

2. जनकल्याण योजनाएं
सरकार ने सब्सिडी को गलत हाथों में जाने से बचाने के लिए डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम की शुरुआत की। शुरुआती दौर में देश के 43 जिलों में लाभार्थियों को सीधे उनके बैंक खातों में सरकारी सहायता और लाभ पहुंचाया जा रहा है। गांवों के लोगों के लिए नेशनल रूरल हेल्थ मिशन व शहर के लोगों लिए नेशनल अर्बन हेल्थ मिशन जैसी कल्याणकारी योजनाओं को मंजूरी दी गई। महिलाओं और अल्पसंख्यकों के हित में भी कई फैसले लिये गए।

3. चुनावी कामयाबियां
भ्रष्टाचार और महंगाई के मोर्चे पर लगातार विपक्ष के निशाने पर रहने के बावजूद यूपीए को इस दौरान चुनावी कामयाबियां भी मिलीं। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों में यूपीए ने प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के हाथों से सत्ता छीन ली। इतना ही नहीं, इस दौरान जनहित से जुड़े कई अहम मुद्दों पर सरकार के खिलाफ शुरू हुए देशव्यापी जन आंदोलनों से शांतिपूर्वक निपटने में भी सरकार कामयाब रही और आंदोलन ठंडे पड़ गये।

4. मंदी का कम असर
वैश्विक मंदी के ऐसे दौर में, जब दुनिया के कई देशों में आर्थिक संकट काफी गहरा हो गया, भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार 6 फीसदी के आसपास बनी रही। यह रफ्तार बहुत संतोषजनक भले नहीं हो, पर वैश्विक मंदी की स्थिति को देखते हुए कारोबार जगत को राहत देकर और अन्य उपायों के जरिये भारतीय बाजार को धराशायी होने से बचाये रखना सरकार की उपलब्धि मानी जायेगी।

5. सामाजिक-आर्थिक प्रगति
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार इस बात का भी श्रेय ले सकती है कि जनता की सामाजिक-आर्थिक प्रगति के लिहाज इसने कई महत्वपूर्ण कानून बनाये। सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, मल्टीब्रांड रिटेल को एफडीआई के लिए खोलना, बीमा, नागरिक उड्डयन आदि में विदेशी निवेश की इजाजत देना इस सरकार के महत्पूर्ण फैसले रहे।

6. खाद्य सुरक्षा विधेयक 
सरकार खाद्य सुरक्षा बिल पारित करा कर आम जनता को राहत पहुंचाना चाहती थी, पर संसद में विपक्ष के हंगामे के कारण ऐसा नहीं हो सका। इस बिल के तहत देश की 67 फीसदी आबादी को हर महीने 5 किलो अनाज प्रति व्यक्ति के हिसाब से मार्केट से कम दाम पर दिया जाएगा। बिल में कहा गया कि 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से चावल और 2 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गेहूं और बाकी अनाजों को 1 रुपये प्रति किलो के आधार पर देश की 75 फीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फीसदी शहरी आबादी को दिया जाएगा।

7. शिक्षा का अधिकार कानून
6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा देने के उद्देश्य से 1 अप्रैल 2010 को केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया। इसे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। सरकार द्वारा लागू शिक्षा का अधिकार कानून के तहत देश में 14 लाख स्कूलों में 20 करोड़ बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है।

8. मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई
यूपीए सरकार ने मल्टीब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी। सरकार के इस अहम फैसले के बाद रोजगार के नए असवर खुलेंगे। वहीं इस धंधे में बिचौलिए कम होंगे और किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत मिल सकेगी। साथ ही रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों की सप्लाई बेहतर होगी और यह चीजें सस्ते दामों में उपल्बध होंगी।

9. सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार अधिनियम 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ। भारत में भ्रष्टाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया जाता है। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया।