गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकार सम्मान पत्र

नाम : इफ़्तेख़ार हुसैन
मीडिया : दैनिक हिंदुस्तान
पद : पत्रकार नगर प्रभारी
मो : http://www.n
क्षेत्र : बिलारी
ज़िला : मुरादाबाद
राज्य : उत्तर प्रदेश
सम्मान पत्र :

आदरणीय पत्रकार जी ने भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध अभियान चलाकर घोटालो का पर्दाफाश कर समाज के मुद्दों को उठाकर अधिकारी और सरकार का ध्यान आकर्षित किया संस्था श्रीमान ने संस्था द्वारा संचालित सामाजिक कार्यों को प्रमुखता से छापकर देश के महापुरुषों की जीवनी जन जन तक पहुंचने में सस्था को सहयोग कर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया है हिंदी भाषा को बढ़ावा देने हेतु नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति नई दिल्ली द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकार सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है संस्था आपकी बहादुरी को सलाम कर आपके सुखद भविष्य की कामना करती है : मेहनाज़ अंसारी (जनरल सेक्रेटरी)

विवरण :
introduction
Iftekhar Hussain
Position: Journalist in charge of the city
Media: Danik Hindustan
Area: Bilari, District Moradabad
Uttar Pradesh Mob 9837116325
बिलारी नगर के बारे में 
बिलारी उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के मुरादाबाद जिले में एक तहसील है बिलारी तहसील मुख्यालय बिलारी शहर है। यह मुरादाबाद डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह मुरादाबाद जिले के मुख्यालय से दक्षिण की तरफ 25 किमी स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से पूर्व की ओर 32 9 कि.मी.
बिलारी तहसील से बांनीखेड़ा ब्लॉक पश्चिम की तरफ, चंदौसी तहसील की तरफ दक्षिण में, पूर्वी तट पर शाहाबाद तहसील, उत्तर की ओर कुंडकारी ब्लॉक के पास है।
चंदौसी शहर, शाहबाद, रामपुर शहर, सिरसी शहर, संभल शहर, बिलारी से निकटतम शहर हैं।
यह 1 9 6 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है।
मुरादाबाद, काशीपुर, रामनगर, बुलंदशहर, काठगोदाम (हल्द्वानी-काठगोदाम) महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के पास देखने के लिए हैं।
बिलारी तहसील की जनसांख्यिकी
हिंदी यहां स्थानीय भाषा है इसके अलावा लोग उर्दू, अंग्रेजी, खड़ीबाली, हरयानवी, पंजाबी, कुमाओनी बोलते हैं।
बिलारी तहसील बिलारी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है,
वर्तमान विधायक माननीय मौ. फहीम समाजवादी पार्टी 
बिलारी तहसील संभल संसद निर्वाचन क्षेत्र में आती है, मौजूदा सांसद 
माननीय सत्यपाल सिंह भारतीय जनता पार्टी Mob : 09013869411
बिलारी विधानसभा का विधायक जितने का इतिहास 
2012 मोह. इरफ़ान समाजवादी पार्टी से चुनाव जीते उनकी मृत्यु उपरान्त उनके पुत्र मोहद. फहीम उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी को हराया ,
बिलारी तहसील का मौसम और जलवायु
गर्मियों में गर्म है बिलारी गर्मी उच्चतम दिन तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच है जनवरी के औसत तापमान 15 डिग्री सेल्सियस, फरवरी 16 डिग्री सेल्सियस, मार्च 23 डिग्री सेल्सियस, अप्रैल 30 डिग्री सेल्सियस, मई 35 डिग्री सेल्सियस रहा है
कैसे बिलारी पहुंचने के लिए 
रेल द्वारा
जरगांव रेलवे स्टेशन, सोनाकपुर हॉल्ट रेल वे स्टेशन बिलारी तहसील के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। मुरादाबाद रेलवे स्टेशन बिलारी के करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर प्रमुख रेलवे स्टेशन है
बिलारी तहसील के पिन कोड
202415 (राजा का सहसपुर), 202412 (रेलवे कॉलोनी चंदौसी), 202411 (बिलारी), 244 9 24 (मोदीपुर), 244102 (पक्कावार), 244001 (मोरादाबाद)
आस पास के शहर चंदौसी 17 किलोमीटर 
शाहाबाद, रामपुर 18 किलोमीटर 
सिरसी के निकट 24 किलोमीटर संभाले 31 किलोमीटर 
तालुक के पास बिलारी 0 के.एम. 
बनीयाखेड़ा 12 किलोमीटर 
चंदौसी 17 किलोमीटर 
शाहबाद 17 किलोमीटर 
हवाई बंदरगाहों के पास
पंतनगर हवाई अड्डा 89 किलोमीटर
मुजफ्फरनगर हवाई अड्डा 167 के.एम. 
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 191 के.एम. 
खेरिया हवाई अड्डा 201 के.एम. 
जिले से पास
मोरादाबाद 33 के.एम. 
रामपुर 34 किलोमीटर 
ज्योतिबा फुले नगर 58 किलोमीटर 
रेलवे स्टेशन के नजदीक
बरेली 66 किमी
जर्गाव रेल वे स्टेशन 9.0 के.एम. 
चांदौसी रेल वे स्टेशन करीब 15 किलोमीटर दूर
रामपुर रेलवे स्टेशन करीब 32 किलोमीटर दूर है
गणेश शंकर विद्यार्थी जीवनी
गणेश शंकर विद्यार्थी जन्म: 26 अक्टूबर, 1890, प्रयाग, उत्तर प्रदेश निधन: 25 मार्च, 1931, कानपुर, उत्तर प्रदेश कार्य क्षेत्र: पत्रकार, समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार, समाज-सेवी और स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम अजर-अमर है। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी की ताकत से भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींद उड़ा दी थी। इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया। अपने छोटे जीवन-काल में उन्होंने उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ में हमेशा आवाज़ बुलंद किया – चाहे वो नौकरशाह, जमींदार, पूंजीपति या उच्च जाति का कोई इंसान हो। प्रारंभिक जीवन गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था जो हथगाँव, (फतेहपुर, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। उनके पिता एक गरीब और धार्मिक प्रवित्ति पर अपने उसूलों के पक्के इंसान थे। वे ग्वालियर रियासत में मुंगावली के एक स्कूल में हेडमास्टर थे। गणेश का बाल्यकाल वहीँ बीता तथा प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी हुई। उनकी पढ़ाई की शुरुआत उर्दू से हुई और 1905 ई. में उन्होंने भेलसा से अँगरेजी मिडिल परीक्षा पास की। उन्होंने सन 1907 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में एंट्रेंस परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया। लगभग इसी समय से उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और प्रसिद्द लेखक पंडित सुन्दर लाल के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में सहायता करने लगे। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण लगभग एक वर्ष तक अध्ययन के बाद सन 1908 में उन्होंने कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. महीने की नौकरी की पर एक अंग्रेज अधिकारी से कहा-सुनी हो जाने के कारण नौकरी छोड़ कानपुर के पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में सन 1910 तक अध्यापन का कार्य किया। इसी दौरान उन्होंने सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) तथा हितवार्ता जैसे प्रकाशनों में लेख लिखे। पत्रकारिता, राजनैतिक और सार्वजानिक जीवन गणेश शंकर विद्यार्थी का मन पत्रकारिता और सामाजिक कार्यों में रमता था इसलिए वे अपने जीवन के आरम्भ में ही स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े। जल्द ही वे ‘कर्मयोगी’ और ‘स्वराज्य’ जैसे क्रन्तिकारी पत्रों से जुड़े और इनमें अपने लेख भी लिखे। उन्होंने ‘विद्यार्थी’ उपनाम अपनाया और इसी नाम से लिखने लगे। कुछ समय बाद उन्होंने हिंदी पत्रकारिता जगत के अगुआ पंडित महाबीर प्रसाद द्वीवेदी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जिन्होंने विद्यार्थी को सन 1911 में अपनी साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में उप-संपादक के पद पर कार्य करने का प्रस्ताव दिया पर विद्यार्थी की रूचि सैम-सामियिकी और राजनीति में ज्यादा थी इसलिए उन्होंने हिंदी साप्ताहिकी ‘अभ्युदय’ में नौकरी कर ली। सन 1913 में विद्यार्थी कानपुर वापस लौट गए और एक क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के तौर पर अपना करियर प्रारंभ किया। उन्होंने क्रन्तिकारी पत्रिका ‘प्रताप’ की स्थापना की और उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ आवाज़ बुलंद किया। प्रताप के माध्यम से उन्होंने पीड़ित किसानों, मिल मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों के दुखों को उजागर किया। अपने क्रांतिकारी पत्रिकारिता के कारण उन्हें बहुत कष्ट झेलने पड़े – सरकार ने उनपर कई मुक़दमे किये, भरी जुरमाना लगाया और कई बार गिरफ्तार कर जेल भी भेजा। सन 1916 में महात्मा गाँधी से उनकी पहली मुलाकात हुई जिसके बाद उन्होंने अपने आप को पूर्णतया स्वाधीनता आन्दोलन में समर्पित कर दिया। उन्होंने सन 1917-18 में ‘होम रूल’ आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई और कानपुर में कपड़ामिल मजदूरों की पहली हड़ताल का नेतृत्व किया। सन 1920 में उन्होंने प्रताप का दैनिक संस्करण आरम्भ किया और उसी साल उन्हें राय बरेली के किसानों के हितों की लड़ाई करने के लिए 2 साल की कठोर कारावास की सजा हुई। सन 1922 में विद्यार्थी जेल से रिहा हुए पर सरकार ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में फिर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। सन 1924 में उन्हें रिहा कर दिया गया पर उनके स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था फिर भी वे जी-जान से कांग्रेस के कानपुर अधिवेशन (1925) की तैयारी में जुट गए। सन 1925 में कांग्रेस के राज्य विधान सभा चुनावों में भाग लेने के फैसले के बाद गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर से यू.पी. विधानसभा के लिए चुने गए और सन 1929 में त्यागपत्र दे दिया जब कांग्रेस ने विधान सभाओं को छोड़ने का फैसला लिया। सन 1929 में ही उन्हें यू.पी. कांग्रेस समिति का अध्यक्ष चुना गया और यू.पी. में सत्याग्रह आन्दोलन के नेतृत्व की जिम्मेदारी भी सौंपी गयी। सन 1930 में उन्हें गिरफ्तार कर एक बार फिर जेल भेज दिया गया जिसके बाद उनकी रिहाई गाँधी-इरविन पैक्ट के बाद 9 मार्च 1931 को हुई। मार्च 1931 में कानपुर में भयंकर हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें हजारों लोग मारे गए। गणेश शंकर विद्यार्थी ने आतंकियों के बीच जाकर हजारों लोगों को बचाया पर खुद एक ऐसी ही हिंसक भीड़ में फंस गए जिसने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। एक ऐसा मसीहा जिसने हजारों लोगों की जाने बचायी थी खुद धार्मिक उन्माद की भेंट चढ़ गया। टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम) 1890: 28 अक्टूबर को गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म हुआ 1907: इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया 1911: पंडित महाबीर प्रसाद द्वारा संचालित ‘सरस्वती’ पत्रिका का उप-संपादक बनाये गए 1913: कानपुर वापस आ गए और ‘प्रताप’ साप्ताहिक पत्रिका की स्थापना की और इसके संपादक बन गए 1916: महात्मा गाँधी से पहली बार मिले; स्वतंत्रता आन्दोलन में कूदे 1917-1918: होम रूल मूवमेंट में सक्रियता से भाग लिया 1920: प्रताप में छपे लेखों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया 1922: जेल से रिहा हुए पर सरकार ने उन्हें भड़काऊ भाषण देने के आरोप में प्फिर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया 1925: अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के स्वागत समिति का अध्यक्ष चुने गए 1926-1929: यूनाइटेड प्रोविंस के विधान सभा सदस्य चुने गए 1931: कानपुर के सांप्रदायिक दंगे में 25 मार्च 1931 को इनकी हत्या हो गई