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स्वच्छ भारत अभियान

कोतवाल धन सिंह गुर्जर कर्मठ पुलिस प्रशासन सम्मान पत्र

नाम : श्री अतुल श्रीवास्तव
पद : इंस्पेक्टर
नियुक्त : कोतवाली कर्नलगंज
ज़िला : कानपुर नगर
राज्य : उत्तर प्रदेश
सम्मान : NA
उपलब्धि/सामाजिक कार्य विवरण :
Introduction
Mr. Atul Shrivastav
Position: Inspector
Appointed: Kotwal ColonelGanj
District: Kanpur Nagar
State: Uttar Pradesh
Mob : 9876543210
 
कर्नलगंज के बारे में
कर्नलगंज उत्तर प्रदेश राज्य, कानपुर शहर में एक लोकैलिटी है। यह कानपुर डिवीजन से संबंधित है।
मुलगंज, कासिमगंज, गांधी नगर, नेहरू नगर, परेड कर्नलगंज के नजदीकी इलाके हैं।
जजमो, कानपुर, उन्नाव, चकेरी कानपुर के नजदीकी शहर हैं।
कर्नलगंज क्षेत्र के इलाक़े 
चमांगंज तालाक महल आज़म बेग करबाला, उची सदाक, कर्नलगंज बी-कन्गी मोहाल, कर्नलगंज बाकर्मंडी क्रॉसिंग, कर्नलगंज बेकन गंज, कर्नलगंज चमन गंज, कर्नलगंज चिपियाना, कर्नलगंज चिप्पियाना, कर्नलगंज कर्नल फारूक रोड, कर्नलगंज कर्नलगंज हता, कर्नलगंज देव नगर, कर्नलगंज दीप्ति का पदव, कर्नलगंज जॉन फोर्ब्स लेन, कर्नलगंज काग्ज़ी मोहल्ला, कर्नलगंज कानपुर पी रोड, कर्नलगंज मारिया अल-क्वितिया स्ट्रीट, कर्नलगंज एवरेस्ट इलेक्ट्रिकल्स के पास, गिरधर भवन, बागिया मणि राम, कर्नलगंज गुलाब घोसिमास्जिद के पास, कर्नलगंज पुलिस स्टेशन के पास बजरिया, बकर मंडी, कर्नलगंज पुराना शारब गद्दी, कर्नलगंज ओप। याकूब हलवाई, रेडीमेड मार्केट, कर्नलगंज अनाथालय लेन, कर्नलगंज प्रेड चौराहा, कर्नलगंज सरम गद्दी, कर्नलगंज सिसामाव बाबा चौराहा, कर्नलगंज
हिंदी यहां स्थानीय भाषा है।
कर्नलगंज में राजनीति
सीपीएम, बीजेपी, एसपी, कांग्रेस  इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल हैं।
कर्नलगंज के पास मतदान केंद्र / बूथ
1) चमड़ा कार्य संस्थान सौटरगंज कक्ष 6
2) N.m.p। मूल पीआर स्कूल चमांगंज पेशावर रोड रूम 1
3) N.m.p। चंपा बालिका विद्यालय के बहारी बारामडे पुरुष प्रेम नगर कक्ष 2
4) N.m.p। चंपा बालिका विद्यालय के बहरी बारामडे पुरुष प्रेम नगर कक्ष 1
5) श्रमितकारी केंद्र दर्शनपुरवा कमरा 6
कानपुर नगर निगम क्षेत्र में वर्तमान महापौर 
माननीय प्रमिला पाण्डेय बीजेपी संपर्क न. 9415044433
विधान सभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक 
माननीय हाजी इरफ़ान सोलंकी सपा संपर्क न. 9415044813
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में वर्तमान सांसद 
माननीय डॉ. मुरली मनोहर जोशी बीजेपी संपर्क न. 23718444
कर्नलगंज कैसे पहुंचे
रेल द्वारा
कानपुर अनवरगंज  रेल वे स्टेशन, कानपुर सेंट्रल रेल वे स्टेशन कर्नलगंज के पास के पास के रेलवे स्टेशन हैं।
कर्नलगंज के पास पिनकोड
208003 (चौकी जारीब), 208001 (कानपुर), 208012 (सिसामौ)
 शहर के नजदीक
जाजमो 1 किमी निकट
कानपुर 4 किमी निकट
अनना 18 किलोमीटर के पास
चेकेरी 28 किमी निकट
ब्लॉक के पास
कानपुर 2 किलोमीटर निकट है
कल्याणपुर 13 किमी निकट
सिकंदरपुर सरौसी 16 किलोमीटर दूर
विधुनु  17 किमी निकट
एयर पोर्ट्स के पास
कानपुर हवाई अड्डे के पास 11 किलोमीटर दूर है
अमौसी हवाई अड्डे के पास 70 किलोमीटर दूर है
बामराउली हवाई अड्डे के पास 202 किलोमीटर दूर है
खजुराहो हवाई अड्डे 211 किलोमीटर निकट है
पर्यटक स्थलों के पास
कानपुर 2 किलोमीटर निकट है
बिथूर 1 9 किलोमीटर दूर
लखनऊ 79 किमी निकट
कन्नौज 88 किमी निकट
रायबरेली 105 किलोमीटर दूर है
जिलों के पास
कानपुर नगर 4 किलोमीटर निकट है
अनना 17 किमी निकट
कानपुर देहाट 44 किमी निकट
हमीरपुर जिला 67 किलोमीटर निकट
रेलवे स्टेशन के पास
कानपुर अनवरगंज  रेल वे स्टेशन 2.3 किमी निकट
कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन 2.3 किलोमीटर दूर है
गोविंदपुरी रेलवे स्टेशन 3.8 किलोमीटर दूर है
भीमसेन रेलवे स्टेशन 14 किलोमीटर दूर है
कोतवाल धन सिंह गुर्जर जीवनी : कोतवाल धन सिंह गुर्जर भारत के प्रथम स्वतंत्रा संग्राम के प्रथम क्रान्तिकारी थे। जिन्होने 10 मई 1857 को मेरठ से क्रान्ति शूरूआत की।
इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रान्ति का प्रारम्भ/आरम्भ ”10 मई 1857“ को ”मेरठ“ में हुआ था और इसको समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाते हैं, क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है उस दिन मेरठ में धनसिंह के नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। धन सिंह कोतवाल जनता के सम्पर्क में थे, धनसिंह का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में भारतीय क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुंच गये। विद्रोह की खबर मिलते ही आस-पास के गांव के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह पुलिस चीफ के पद पर थे। 10 मई 1857 को धन सिंह ने की योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के वफादार पुलिस कर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया। और धन सिंह के नेतृत्व में देर रात २ बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ाकर जेल को आग लगा दी। छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था सब नष्ट कर चुकी थी। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। इस क्रान्ति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने धन सिंह को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, और सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह कोतवाल क्योंकि स्वयं गुर्जर है इसलिए उसने गुर्जरो की भीड को नहीं रोका और उन्हे खुला संरक्षण दिया। इसके बाद घनसिंह को गिरफ्तार कर मेरठ के एक चौराहे पर फाँसी पर लटका दिया गया 1857 की क्रान्ति की शुरूआत धन सिंह कोतवाल ने की अतः इसलिए 1857 की क्रान्ति के जनक कहे जाते है। मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है। मेरठ गजेटियर के वर्णन के अनुसार 4 जुलाई, 1857 को प्रातः 4 बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपों से हमला किया। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों किसान मारे गए, जो बच गए उनको कैद कर फांसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक "स्वाधीनता आन्दोलन" और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी की सजा दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। कोतवाल का नारा -मारो या मरो
साधू व कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने छावनी में जाकर सैनिको को अंग्रेजो से बगावत करने को लिये प्रेरित किया व साथ ही जेल में बंद कैदियो को कोतवाल जी ने अपने साथ क्रान्ति के लिये तैयार कर लिया। कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने अपने गांव को साथ साथ आसपास के सभी गांवो में गुप्तखाने यह संदेश भिजवा दिया कि अंग्रेजो के खिलाफ दस मई को शाम पांच बजे निर्णायक लडाई लडी जायेगी ,सब को मेरठ की कोतवाली में आना है। और हुआ भी यहीं किसानो की घुटन ने लू में तपिश बढा दी ,सैनिको के क्रोध ने दस मई की उस शाम को रौद्र रूप धारण कर लिया और जैसे ही मेरठ में पांच बजे गिरजाघर व घंटाघर के घंटे बजे और अंग्रेजो ने चर्च में जाकर प्रार्थना की ,ठीक उसी समय मेरठ की कोतवाली में कोतवाल के नारे मारो या मरो के उदघोष के साथ सदियो से गुलाम भारत की आजादी का बिगुल बज उठा।दस मई की वह सांझ कोई साधारण सांझ नहीं थी बल्कि किसानो व सैनिको की साझी सांझ थी जिसमें वे अपने हको के लिये लड रहे थे, पराधीनता की रातो से लडकर आने वाले कल का सवेरा आजाद व खुशहाल देखना चाहते थे।
यह सांझ हिंदू व मुसलमानो की साझी सांझ थी जब दोनो समुदायो ने कंधे से कंधा मिलाकर इस जनक्रान्ति में बढ चढकर हिस्सा लिया व भाइचारे की मिशाल कायम की। कोतवाली में क्रान्ति का पहला कदम उठा , कोतवाल ने पुलिस के सिपाहियो से क्रान्ति के लिये आह्वान किया जो साथ ना आये उन्हें अंदर जाकर चुप बैठने को कहा व बाकि को साथ लेकर मेरठ के कारागारो में बंद कैदियो को क्रान्ति में शामिल होने की शर्त पर ताला तोडकर 850 कैदियों को रिहा कर दिया व कोतवाली के हथियार बांट दिये। इस प्रकार कोतवाली से कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में चली यह टुकडी मुक्तिवाहिनी बन गयी।
मेरठ कैंट में पहुँचकर वहाँ भारतीय सैनिको ने जबरदस्त विद्रोह कर दिया व मारो फिरंगियो को ,मारो गोरो को नारो के साथ अंग्रेज अधिकारियो को मार दिया मगर बच्चो व औरतो को सुरक्षित गिरजाघर में जाने दिया ।वहीं गांवो से किसानो ने कूच करना शुरू किया व ले लो ,ले लो जैसे जोशीले नारे के साथ आसमान गूंज उठा । ले लो ,ले लो यह नारा गांव देहात में अब भी जोश व ललकार को लिये लगाया जाता है । उसी दिन किसान,पुलिस सिपाही ,बागी व सैनिको का समूह जो कि अब मुक्तिवाहिनी का रूप से चुका था कोतवाल धन सिंह गुर्जर को नेतृत्व में दिल्ली की ओर चल निकला।
मेरठ के इस कोतवाल ने जो अब क्रान्तिकारीयो की अगुवाई कर रहा था मारो या मरो के नारे को साथ जोश भरते हुए उसी दिन दस मई को दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। अगले दिन क्रान्तिनायक कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नेतृत्व में मुक्तिवाहिनी ने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया व इस गदर की कमान बहादुरशाह जफर को सौंप दी। पहले तो बादशाह बहादुरशाह जफर ने इंकार किया मगर फिर सभी क्रान्तिकारियो के आग्रह पर अंग्रेजो के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिये । उस दौर में मुगल सल्तनत अपनी आखिरी सांसे गिन रही थी व मुगल बादशाह नाम के बादशाह थे। लेकिन मुगल बादशाह का प्रभाव पूरे हिंदुस्तान में होने को कारण वीर क्रान्तिकारीयो ने मुगल बादशाह को ही कमान सौंप देना उचित समझा ।
मेरठ की क्रान्ति के जनक कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने अपने असाधारण नेतृत्व कौशल का परिचय दिया व अपने जोशीले भाषण व नारो से मुक्तिवाहिनी में ऐसा जोश भरा कि मेरठ से दिल्ली तक हर रास्ते व बाधा को पार करके अंग्रेजीराज की धज्जियाँ उडाते चले गये व गुलामी की बेडियों को फेंकते चले गये। ब्रितानी भारत में औपनिवेशिक अंधेरे को क्रान्ति की मशाल से जलाकर कोतवाल धन सिहँ गुर्जर ने अनुकरणीय वीरता व नायकत्व का अनुपम उदाहरण पेश किया । धन्य है वो संत जिसने गुलामी में वैराग्य की बजाय देश को आजाद कराने की अलख जगायी।बात में अंग्रेजो ने अपने खिलाफ लोगो के ऊपर बहुत ही बर्बरतापूर्ण व अमानवीय कारवाई की । कोतवाल धन सिंह गुर्जर को मेरठ के किसी चौराहे पर 4 जुलाई 1857 को दिनदहाडे फाँसी पर चढा दिया व लोगो को हराने के लिये शव को वहीं पेड पर लटकने दिया ताकि लोगो में खौफ रहे व अंग्रेजो के खिलाफ कोई चूँ तक ना करें
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रन्तिकारी कोतवाल धन सिंह गुर्जर के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी