मदन मोहन मालवीय स्कूल/कॉलेज परिचय सूची

स्कूल नाम :
अमर सिंह कॉलेज
प्रबंधक :
प्राचार्य: प्रो। (डॉ.) यासमीन आशाई
विशेषता :
संबद्धता: क्लस्टर विश्वविद्यालय श्रीनगर
क्षेत्र :
गोगजी बाग, जवाहर नगर
नगर ब्लॉक :
श्रीनगर
जनपद :
श्रीनगर
राज्य :
जम्मू और कश्मीर
वेबसाइट :
NA
सम्मान : NA
विवरण :
introduction
School Name : Amar Singh College
Principal : Prof. (Dr) Yasmeen Ashai
Founded: 1913
Affiliation: Cluster University Srinagar
Address: Gogji Bagh, Jawahar Nagar, Srinagar, Jammu and Kashmir 190008
Contact No: 0194-2310227 principal@amarsinghcollege.ac.in
Aria Name : Gogji Bagh
City Name : Srinagar
District : Srinagar 
State : Jammu & Kashmir 
Language : Kashmiri and Urdu, English 
Current Time 01:37 PM 
Date: Wednesday , Feb 06,2019 (IST) 
Telephone Code / Std Code: 0194 
Assembly constituency : assembly constituency 
Assembly MLA : 
Lok Sabha constituency : parliamentary constituency 
Parliament MP : 
Pin Code : 190008 
Post Office Name : Rajbagh
 
अमर सिंह कॉलेज, श्रीनगर, कश्मीर में एक शैक्षणिक और व्यावसायिक कॉलेज है। यह श्री प्रताप कॉलेज के बाद कश्मीर घाटी का सबसे पुराना कॉलेज है। विकिपीडिया
पता: गोगजी बाग, जवाहर नगर, श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर 190008
प्राचार्य: प्रो। (डॉ।) यासमीन आशाई
स्थापित: 1913
संबद्धता: क्लस्टर विश्वविद्यालय श्रीनगर
स्थापित 1913
प्राचार्य प्रो (डॉ।) यासमीन आशा
स्थान गोगजी बाग, श्रीनगर जम्मू और कश्मीर
कैम्पस शहरी
एफिलिएशन क्लस्टर यूनिवर्सिटी ऑफ श्रीनगर
वेबसाइट http://amarsinghcollege.ac.in
अमर सिंह कॉलेज, (उर्दू, امر سنک سالج سرین )ر) श्रीनगर, कश्मीर में एक शैक्षणिक और व्यावसायिक कॉलेज है। यह श्री प्रताप कॉलेज (एसपी कॉलेज) के बाद कश्मीर घाटी का सबसे पुराना कॉलेज है।
कॉलेज के बारे में
अमर सिंह कॉलेज, श्रीनगर, कश्मीर डिवीजन के लिए एक नोडल कॉलेज है जो उच्च शिक्षा के विभागों और प्रोविडेंस के लगभग पचास सरकारी कॉलेजों के बीच संपर्क का काम करता है।
कॉलेज में लगभग 70,000 पुस्तकों के संग्रह के साथ एक अच्छी तरह से सुसज्जित पुस्तकालय है जिसमें दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह भी शामिल है।
कॉलेज भूगोल में विज्ञान, कला, वाणिज्य और कंप्यूटर अनुप्रयोगों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और स्नातकोत्तर अध्ययन प्रदान करता है।
कॉलेज सूचना प्रौद्योगिकी, वीडियो संपादन, कंप्यूटर अनुप्रयोग और वेब डिज़ाइन में यूजीसी प्रायोजित ऐड-ऑन नौकरी-उन्मुख पाठ्यक्रम भी प्रदान करता है।
कॉलेज इग्नू के विशेष अध्ययन केंद्रों में से एक है
सुविधाएं
लाइब्रेरी [1]
कंप्यूटर लैब्स
सभागार
जीमखाना
जलपान गृह
कक्षाओं
खेल और क्रीड़ा
छात्रावास
राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS)
राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी)
इतिहास
यह नवंबर 1913 में अमर सिंह तकनीकी संस्थान के रूप में स्थापित किया गया था, ताकि इच्छुक छात्रों को कला, संस्कृति, और मूल बातें जैसे चिनाई और बढ़ईगीरी सिखाई जा सके। इसे औपचारिक रूप से 29 मई 1914 को महाराजा प्रताप सिंह द्वारा खोला गया था। जून 1942 में, तकनीकी संस्थान को कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के पिता के नाम से स्मरण करते हुए श्री प्रताप कॉलेज के विभाजन के माध्यम से अमर सिंह कॉलेज में परिवर्तित कर दिया गया था। कॉलेज को 1972 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा मान्यता दी गई थी। कॉलेज बीएसी ग्रेड के साथ एनएएसी द्वारा मान्यता प्राप्त है।
स्थान
कॉलेज भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में गोगजी बाग, श्रीनगर (74o-48 `एन अक्षांश, 34o-03` ई देशांतर और 1589 मीटर की ऊँचाई) में स्थित है। यह एक बड़े खेल के मैदान, पार्कों, उद्यानों और एक बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में विभाजित 35 हेक्टेयर भूमि में फैला हुआ है।
वर्तमान में, कॉलेज में कई शैक्षणिक भवन हैं जो कुल निर्मित क्षेत्र लगभग 30000m2 हैं। इसमें एक तकनीकी संस्थान चलाने के लिए 1910 में निर्मित एंग्लो-इंडियन वास्तुकला के बेहतरीन मिश्रण का प्रतिनिधित्व करते हुए शानदार विरासत भवन शामिल है। वर्तमान में इसमें रसायन विज्ञान विभाग, कंप्यूटर विज्ञान विभाग, शिक्षण स्टाफ रूम, यूजीसी, आईक्यूएसी सेल, एनएसएस और एनसीसी कमरे हैं, इसके अलावा परीक्षाओं के संचालन के लिए छह व्याख्यान थिएटर और तीन बड़े हॉल हैं।
श्रीनगर शहर इतिहास 
1700 मीटर ऊंचाई पर बसा श्रीनगर विशेष रूप से झीलों और हाऊसबोट के लिए जाना जाता है। इसके अलावा श्रीनगर परम्परागत कश्मीरी हस्तशिल्प और सूखे मेवों के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। श्रीनगर का इतिहास काफी पुराना है। माना जाता है कि इस जगह की स्थापना प्रवरसेन द्वितीयने 2,000 वर्ष पूर्व की थी। इस जिले के चारों ओर पांच अन्य जिले स्थित है। श्रीनगर जिला कारगिल के उत्तर, पुलवामा के दक्षिण, बुद्धगम के उत्तर-पश्चिम के बगल में स्थित है।
श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रान्त की राजधानी है। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा यह नगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। श्रीनगर एक ओर जहां डल झील के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंदिरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
श्रीनगर जम्मू और कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। ये शहर और उसके आस-पार के क्षेत्र एक ज़माने में दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल माने जाते थे -- जैसे डल झील, शालिमार और निशात बाग़, गुलमर्ग, पहलग़ाम, चश्माशाही, आदि। यहाँ हिन्दी सिनेमा की कई फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी। श्रीनगर की हज़रत बल मस्जिद में माना जाता है कि वहाँ हजरत मुहम्मद की दाढ़ी का एक बाल रखा है। श्रीनगर में ही शंकराचार्य पर्वत है जहाँ विख्यात हिन्दू धर्मसुधारक और अद्वैत वेदान्त के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य सर्वज्ञानपीठ के आसन पर विराजमान हुए थे। डल झील और झेलम नदी (संस्कृत : वितस्ता, कश्मीरी : व्यथ) में आने जाने, घूमने और बाज़ार और ख़रीददारी का ज़रिया ख़ास तौर पर शिकारा नाम की नावें हैं। कमल के फूलों से सजी रहने वाली डल झील पर कई ख़ूबसूरत नावों पर तैरते घर भी हैं जिनको हाउसबोट कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि श्रीनगर मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बसाया गया था।
श्रीनगर से कुछ दूर एक बहुत पुराना मार्तण्ड (सूर्य) मन्दिरहै। कुछ और दूर अनन्तनाग ज़िले में शिव को समर्पित अमरनाथ की गुफा है जहाँ हज़ारों तीर्थयात्री जाते हैं। श्रीनगर से तीस किलोमीटर दूर मुस्लिम सूफ़ी संत शेख़ नूरुद्दिन वली की दरगाह चरार-ए-शरीफ़ है, जिसे कुछ वर्ष पहले इस्लामी आतंकवादियों ने ही जला दिया था, पर बाद में इसकी वापिस मरम्मत हुई।
श्रीनगर का सबसे बडा आकर्षण यहां की डल झील है। जहां सुबह से शाम तक रौनक नजर आती है। सैलानी घंटों इसके किनारे घूमते रहते हैं या शिकारे में बैठ नौका विहार का लुत्फ उठाते हैं। दिन के हर प्रहर में इस झील की खूबसूरती का कोई अलग रंग दिखाई देता है। देखा जाए तो डल झील अपने आपमें एक तैरते नगर के समान है। तैरते आवास यानी हाउसबोट, तैरते बाजार और तैरते वेजीटेबल गार्डन इसकी खासियत हैं। कई लोग तो डल झील के तैरते घरों यानी हाउसबोट में रहने का लुत्फलेने के लिए ही यहां आते हैं। झील के मध्य एक छोटे से टापू पर नेहरू पार्क है। वहां से भी झील का रूप कुछ अलग नजर आता है। दूर सडक के पास लगे सरपत के ऊंचे झाडों की कतार, उनके आगे चलता ऊंचा फव्वारा बडा मनोहारी मंजर प्रस्तुत करता है। झील के आसपास पैदल घूमना भी सुखद लगता है। शाम होने पर भी यह झील जीवंत नजर आती है। सूर्यास्त के समय आकाश का नारंगी रंग झील को अपने रंग में रंग लेता है, तो सूर्यास्त के बाद हाउसबोट की जगमगाती लाइटों का प्रतिबिंब झील के सौंदर्य को दुगना कर देता है। शाम के समय यहां खासी भीड नजर आती है।
भीड-भाड से परे शांत वातावरण में किसी हाउसबोट में रहने की इछा है तो पर्यटक नागिन लेक या झेलम नदी पर खडे हाउसबोट में ठहर सकते हैं। नागिन झील भी कश्मीर की सुंदर और छोटी-सी झील है। यहां प्राय: विदेशी सैलानी ठहरना पसंद करते हैं। उधर झेलम नदी में छोटे हाउसबोट होते हैं।
हाउसबोट का इतिहास
आज हाउसबोट एक तरह की लग्जरी में तब्दील हो चुके हैं और कुछ लोग दूर-दूर से केवल हाउसबोट में रहने का लुत्फउठाने के लिए ही कश्मीर आते हैं। हाउसबोट में ठहरना सचमुच अपने आपमें एक अनोखा अनुभव है भी। पर इसकी शुरुआत वास्तव में लग्जरी नहीं, बल्कि मजबूरी में हुई थी। कश्मीर में हाउसबोट का प्रचलन डोगरा राजाओं के काल में तब शुरू हुआ था, जब उन्होंने किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा कश्मीर में स्थायी संपत्ति खरीदने और घर बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय कई अंग्रेजों और अन्य लोगों ने बडी नाव पर लकडी के केबिन बना कर यहां रहना शुरू कर दिया। फिर तो डल झील, नागिन झील और झेलम पर हाउसबोट में रहने का चलन हो गया। बाद में स्थानीय लोग भी हाउसबोट में रहने लगे। आज भी झेलम नदी पर स्थानीय लोगों के हाउसबोट तैरते देखे जा सकते हैं। शुरुआती दौर में बने हाउसबोट बहुत छोटे होते थे, उनमें इतनी सुविधाएं भी नहीं थीं, लेकिन अब वे लग्जरी का रूप ले चुके हैं। सभी सुविधाओं से लैस आधुनिक हाउसबोट किसी छोटे होटल के समान हैं। डबल बेड वाले कमरे, अटैच बाथ, वॉर्डरोब, टीवी, डाइनिंग हॉल, खुली डैक आदि सब पानी पर खडे हाउसबोट में होता है। लकडी के बने हाउसबोट देखने में भी बेहद सुंदर लगते हैं। अपने आकार एवं सुविधाओं के आधार पर ये विभिन्न दर्जे के होते हैं। शहर के मध्य बहती झेलम नदी पर बने पुराने लकडी के पुल भी पर्यटकों के लिए एक आकर्षण है। कई मस्जिदें और अन्य भवन इस नदी के निकट ही स्थित है।
बादशाहों का उद्यान प्रेम
मुगल बादशाहों को वादी-ए-कश्मीर ने सबसे अधिक प्रभावित किया था। यहां के मुगल गार्डन इस बात के प्रमाण हैं। ये उद्यान इतने बेहतरीन और नियोजित ढंग से बने हैं कि मुगलों का उद्यान-प्रेम इनकी खूबसूरती के रूप में यहां आज भी झलकता है। मुगल उद्यानों को देखे बिना श्रीनगर की यात्रा अधूरी-सी लगती है। अलग-अलग खासियत लिए ये उद्यान किसी शाही प्रणय स्थल जैसे नजर आते हैं। शाहजहांद्वारा बनवाया गया चश्म-ए-शाही इनमें सबसे छोटा है। यहां एक चश्मे के आसपास हरा-भरा बगीचा है। इससे कुछ ही दूर दारा शिकोह द्वारा बनवाया गया परी महल भी दर्शनीय है। निशात बाग 1633 में नूरजहां के भाई द्वारा बनवाया गया था। ऊंचाई की ओर बढते इस उद्यान में 12 सोपान
मुख्य आकर्षण
हजरतबल मस्जिद
हजरतबल मस्जिद श्रीनगर में स्थित प्रसिद्ध डल झील के किनारे स्थित है। इसका निर्माण पैगम्बर मोहम्मद मोई-ए-मुक्कादस के सम्मान में करवाया गया था। इस मस्जिद को कई अन्य नामों जैसे हजरतबल, अस्सार-ए-शरीफ, मादिनात-ऊस-सेनी, दरगाह शरीफ और दरगाह आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद के समीप ही एक खूबसूरत बगीचा और इश्‍रातत महल है। जिसका निर्माण 1623 ई. में सादिक खान ने करवाया था।
शंकराचार्य मंदिर
यह मंदिर शंकराचार्य पर्वत पर स्थित है। शंकराचार्य मंदिर समुद्र तल से 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसे तख्त-ए-सुलेमन के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर कश्मीर स्थित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादित्य ने 371 ई. पूर्व करवाया था। डोगरा शासक महाराजा गुलाब सिंह ने मंदिर तक पंहुचने के लिए सीढ़िया बनवाई थी। इसके अलावा मंदिर की वास्तुकला भी काफी खूबसूरत है।
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद कश्मीर की सबसे पुरानी और बड़ी मस्जिदों में से है। मस्जिद की वास्तुकला काफी अदभूत है। माना जाता है कि जामा मस्जिद की नींव सुल्लान सिकंदर ने 1398 ई. में रखी थी। इस मस्जिद की लंबाई 384 फीट और चौड़ाई 38 फीट है। इस मस्जिद में तीस हजार लोग एक-साथ नमाज अदा कर सकते हैं।
खीर भवानी मंदिर
श्रीनगर जिले के तुल्लामुला में स्थित खीर भवानी मंदिर यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर माता रंगने देवी को समर्पित है। प्रत्येक वर्ष जेष्ठ अष्टमी (मई-जून) के अवसर पर मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर काफी संख्या में लोग देवी के दर्शन के लिए विशेष रूप से आते हैं।
चट्टी पदशाही
चेत्ती पदशाही कश्मीर के प्रमुख सिख गुरूद्वारों में से एक है। सिखों के छठें गुरू कश्मीर घूमने के लिए आए थे, उस समय वह यहां कुछ समय के लिए ठहरें थे। यह गुरूद्वारा हरी पर्वत किले से बस कुछ ही दूरी पर स्थित है।
निशात बाग
इस बगीचे को 1633 ई. में नूरजहां के भाई आसिफ खान ने बनवाया था। यह बगीचा डल झील के किनारे स्थित है। श्रीनगर जिला मुख्यालय से निशांत गार्डन 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जगह से झील के साथ-साथ अन्य कई खूबसूरत दृश्यों का नजारा देखा जा सकता है।
डल झील
पांच मील लम्बी और ढाई मील चौड़ी डल झील श्रीनगर की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की सबसे खूबसूरत झीलों में से है। दुनिया भर में यह झील विशेष रूप से शिकारों या हाऊस बोट के लिए जानी जाती है। डल झील के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता अधिक संख्या में लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। डल झील चार भागों गगरीबल, लोकुट डल, बोड डल और नागिन में बंटी हुई है। इसके अलावा यहां स्थित दो द्वीप सोना लेंक और रूपा लेंक इस झील की खूबसूरती को ओर अधिक बढ़ाते हैं।
आवागमन
वायु मार्ग
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा श्रीनगर विमानक्षेत्र है। इंडियन एयरलाइन्स दिल्ली, अमृतसर, जम्मू, लेह, चंडीगढ़, अहमदाबाद और मुम्बई से श्रीनगर के लिए उड़ान भरती है।
रेल मार्ग
हाल ही में श्रीनगर में रेलवे स्टेशन बन गया है, व रेल सेवा भी आरंभ हो चुकी है। श्रीनगर रेल मार्ग द्वारा अनंतनाग, क़ाज़ीगुंड तक जुड़ा है। जून २०१३ में क़ाज़ीगुंड से बनिहालतक, भारत की सबसे बड़ी सुरंग के रास्ते, रेल सेवा शुरु कर दी गयी है। इसके बाद भारत की मुख्य रेलवे का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू तवी है। रेलवे स्टेशन से जम्मू तवी 293 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बनिहाल से जम्मू तवी तक रेलमार्ग निर्माणाधीन है।
सड़क मार्ग
श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग १अ द्वारा कई प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।
विभिन्न शहरों से दूरी
जम्मू- 293 किलोमीटर
लेह- 434 किलोमीटर
कारगिल- 204 किलोमीटर
गुलमर्ग- 52 किलोमीटर
दिल्ली- 876 किलोमीटर
चंडीगढ़- 630 किलोमीटर
एयर पोर्ट्स के पास
श्रीनगर एयरपोर्ट 10 KM
सतवारी एयरपोर्ट 174 KM
पठानकोट एयरपोर्ट 247 KM 
गग्गल एयरपोर्ट 269 KM 
जिले के पास
श्रीनगर 0 KM 
बडगाम 4 KM 
गांदरबल 17 KM 
पुलवामा 28 KM 
रेल्वे स्टेशन के पास
बडगाम रेल मार्ग स्टेशन 8.0 KM
श्रीनगर कश्मीर रेल मार्ग स्टेशन 8.9 KM 
उधमपुर रेल मार्ग स्टेशन 148 KM 
जम्मू तवी रेल मार्ग स्टेशन 171 KM 
हजरतबल विधानसभा (विधानसभा) निर्वाचन क्षेत्र के बारे में
हजरतबल श्रीनगर जिले का एक शहर है। प्रसिद्ध हजरतबल तीर्थ यहाँ स्थित है। हजरतबल का विधानसभा क्षेत्र श्रीनगर संसदीय क्षेत्र का एक हिस्सा है। इस सीट पर 1977 से जेकेएनसी का कब्जा है। 2009 में उपचुनाव हुए थे क्योंकि डॉ। अब्दुल्ला, जिन्होंने 2008 के विधानसभा चुनावों में सोनवार और हजरतबल की दो विधानसभा सीटें जीती थीं और बाद में एलएस के चुनावों में हजरत सीट छोड़ दी। 2009 के उपचुनावों में जेकेएनसी अपने गढ़ को बनाए रखने में कामयाब रहा। एस। एम। कमल ने पीडीपी के आसिया को हराकर चुनाव जीता। कमल को आसिया के 7003 वोटों के मुकाबले 8555 वोट मिले।
हजरतबल विधानसभा क्षेत्र से बैठे और पिछले विधायक
नीचे हजरतबल विधानसभा चुनावों में अब तक हुए विजेताओं और उपविजेताओं 
2014  आशिया पीडीपी 13234 मोहम्मद सैयद अखून जेकेएनसी 9834
2009  एस। एम कमल  जेकेएनसी 8555 आशिया  जेकेपीडीपी 7003
2008 फारूक अब्दुल्ला जेकेएन 11041 आशिया जेकेपीडीपी 6769
2002 मोहम्मद। सैयद अखून  जेकेएन 3042 गुलाम मोहि-उद-दीन अखून  पीडीपी 1639
1996 सैयद अखून JKN 10109 गुलाम मोहि-उद-दीन  BSP 3855
1987 मोहम्मद यासीन शाह जेकेएन 19167 सैय्यद फ़ैयाज़ नकाबन्दी, 7936
1983 हिसाम उद दीन बंडी  जेकेएन 18744 सोफी घ। अहमद  4674
1977  हिस्सा उद दीन  जेकेएन 23032 मोहम्मद इलियास जेएनपी 5081
1972  सोफी गुलाम अहमद 8069 मो। येया सिद्दीकी कांग्रेस 7777
1967 एम। वाई। सिद्दीकी  जेकेएन 6550 जी। ए। सोफी कांग्रेस 4763
1962 मोहम्मद। याहया सिद्दीकी एम एनसी अनकंटेस्टेड
मदन मोहन मालवीय की जीवनी:
मदन मोहन मालवीय एक भारतीय शिक्षा विशारद और राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में मुख्य भूमिका अदा की थी और साथ ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष भी रह चुके थे. आदर और सम्मान के साथ उन्हें पंडित मदन मोहन मालवीय और महामना के नाम से भी बुलाया जाता था, मालवीय को ज्यादातर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये याद किया जाता है जिसकी स्थापना उन्होंने 1916 में वाराणसी में की थी, इस विश्वविद्यालय की स्थापना B.H.U. एक्ट 1915 के तहत की गयी थी.उस समय यह एशिया की सबसे बड़ी रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी में से एक और साथ की दुनिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटीयो से एक थी जिसमे आर्ट, साइंस, इंजीनियरिंग, मेडिकल, एग्रीकल्चरल, परफार्मिंग आर्ट्स, लॉ एंड टेक्नोलॉजी के तक़रीबन 35000 विद्यार्थी शिक्षा ले रहे थे.
1919 से 1938 तक मालवीय बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर भी रह चुके थे और साथ ही 1905 में हरिद्वार में हुई गंगा महासभा के वे संस्थापक भी थे. दो पर्व पर मालवीय भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर रह चुके थे. लेकिन फिर 1934 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. बाद में वे हिन्दू महासभा के सदस्य बने. 1922 में गया और 1923 में कशी में हुई हिन्दू महासभा के वे मुख्य अध्यक्ष थे. उन्होंने कई अंग्रेजी अखबारो की स्थापना भी की, जिसे वे 1909 में इलाहबाद से प्रकाशित करते थे. 1924 से 1946 तक वे हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन भी रह चुके थे. उनके इन्ही संघर्षो की बदौलत उन्होंने अपने हिंदी एडिशन की स्थापना 1936 में हिंदुस्तान दैनिक के नाम से की.
मालवीय को उनकी 153 वी जन्म तिथि के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2014 को भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को उत्तरी-दक्षिण भूभाग में इलाहबाद में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित ब्रिजनाथ तथा माता का नाम मूना देवी था. उनके पूर्वज मालवा के संस्कृत भाषा के विद्वान थे. और तभी से उनके परीवार को मालवीय भी कहा जाता है. उनका वास्तविक उपनाम चतुर्वेदी था. उनके पिता ने संस्कृत साहित्यों का अभ्यास कर रखा था और साथ ही संस्कृत भाषा का उन्हें बहोत ज्ञान था.
पारंपरिक रूप से मालवीय ने 2 संस्कृत पाठशाला से शिक्षा ग्रहण की और बादमे इंग्लिश स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने लगे. मालवीय ने अपनी स्कूली शिक्षा हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला से शुरू की और फिर विधा वर्धिनी सभा से शिक्षा अर्जित की. बाद में वे इलाहबाद ज़िला स्कूल में दाखिल हो गये जहा उन्होंने कविताये लिखना भी शुरू किया, उस समय वे मकरंद के नाम से कविताये लिखते थे और उनकी ये कविताये अखबारो और जर्नल्स में भी प्रकाशित किये जाते थे.
1879 में मुइर सेंट्रल कॉलेज से उन्होंने मेट्रिक की परीक्षा पास की, जो आज इलाहबाद यूनिवर्सिटी के नाम से जानी जाती है. हैरिसन कॉलेज के प्रिंसिपल मालवीय को मासिक शिष्यवृत्ति भी देते थे, क्योकि उस समय मालवीय की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर थी. और शिष्यवृत्ति की बदौलत ही वे कलकत्ता यूनिवर्सिटी से B.A की परीक्षा में पास हुए. इसके बाद वे संस्कृत में M.A भी करना चाहते थे लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब होने के कारण वे M.A नही कर पाये. इसीके चलते 1884 में मदन मोहन मालवीय ने इलाहबाद की सरकारी हाई स्कूल से असिस्टेंट मास्टर के पद पर रहते हुए अपने करियर की शुरुवात की.
अ-सरकारी संस्थान की स्थापना, जिसे हसानंद गौचर भूमि का नाम दिया गया, गौमाता की सेवा करने हेतु इस संस्थान की स्थापना की गयी थी और आज इस संस्थान को सुनील कुमार शर्मा मैनेज कर रहे है.
पंडित मदन मोहन मालवीय के भाषण और लेखन, प्रकाशक- जी.ए. नेटसं 1919
महात्मा गांधी ने उन्हें अपना बड़ा भाई कहा और ‘‘भारत निर्माता‘‘ की संज्ञा दी. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें एक ऐसी महान आत्मा कहा, जिन्होंने आधुनिक भारतीय राष्ट्रीयता की नींव रखी.
वह व्यक्ति और कोई नहीं मदन मोहन मालवीय हैं, जिन्हें महात्मना (एक सम्मान) के नाम से भी जाना जाता है. वह एक महान राजनेता और शिक्षाविद थे, उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जो भारत के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से एक है, की स्थापना की. वह एक ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए हर संभव कोशिश की और आज वह युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं.
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रन्तिकारी मदन मोहन मालवीय के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी