सुखदेव थापर एन.जी.ओ./संगठन/यूनियन/एसोसिएशन पदाधिकारी परिचय सूची

नाम :
आसिफ
पद :
जिला प्रोजेक्ट निदेशक
संगठन :
नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति
मनोनीत :
उधमसिंह नगर
निवास :
नई सुनहरी वार्ड नं. 06
नगर/ब्लॉक :
नगर पालिका परिषद् किच्छा
जनपद :
उधमसिंह नगर
राज्य :
उत्तराखंड
सम्मान : प्रमाणित किया जाता है की नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति नई दिल्ली द्वारा संचालित मेरा स्कूल मेरी पहचान छात्र फोटो परियोजना, मेरा गाँव मेरी पहचान तिरंगा मेरी शान फोटो परियोजना , डिजिटल विजिटिंग कार्ड प्रोजेक्ट उड़ान सोशल डेवपलमेंट सोसायटी नैनीताल को उधमसिंह नगर जिले के कार्य हेतु अनुबंधित कर आसिफ जी को जिला प्रोजेक्ट निदेशक  उधमसिंह नगर के पद पर नियमानुसार नियुक्त किया गया है, कार्यदायी संस्था अपने स्तर से प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर ४,4  वोलिन्टर नियुक्त करने का अधिकार रखती है, संस्था को दिया गया डोनेशन चेक के माद्यम से मान्य होगा,  मेहनाज़ अंसारी  
विवरण :
introduction
Name: Mr. Asif 
Designation : president
Organization : udaan social development society
office : ward nop. 14 warsi colony, tanakpur road haldwani , nanital utrakhand 263139,
residence : new sunehri ward no. 06 kichha usham singh nagar utrakhand pin 263148  
Mobail No : 7536035325
Nagar palika : kichchha 
District : Udam Singh Nagar 
State : Uttarakhand 
Language : Hindi and Urdu 
Current Time 04:03 PM 
Date: Saturday , Jul 20,2019 (IST) 
Vehicle Registration Number:UK-06 
RTO Office : Udham Singh Nagar 
Telephone Code / Std Code: 05944 
Ward : Ward no. 06 
Assembly constituency : Kichha assembly constituency 
Assembly MLA : rajesh shukla 
Lok Sabha constituency : Nainital-Udhamsingh Nagar parliamentary constituency 
Parliament MP : Ajay Bhatt 
 
निवास स्थान किच्छा के बारे में 
किच्छा भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उधमसिंहनगर जिले में स्थित एक नगर पालिका परिषद है। यह उत्तराखण्ड का एक महत्वपूर्ण नगर है, और उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल का चौथा तथा उत्तराखंड का नवा सबसे बड़ा नगर है। किच्छा उत्तराखण्ड की एक पुरानी तहसील है, जिसकी स्थापना अंग्रेजी शासन काल में हुई थी। सिडकुल की स्थापना के पश्चात इस नगर में विकास बहुत तेजी से हुआ है।
इतिहास
उन्नीसवीं सदी के अन्त तक किच्छा से लेकर बनबसा तक थारुओं की बस्ती थीं और इस क्षेत्र को बिलारी कहा जाता था। अंग्रेजों के आगमन के उपरान्त बरेली-काठगोदाम रेल-लाइन और बरेली-नैनीताल सड़क मार्ग के निर्माण के कारण किच्छा एक प्रमुख व्यापारिक स्थान के रुप में उभरने लगा। चीनी मिल व धान मिलें भी इस शहर के आस-पास स्थापित हुई। किच्छा से चारों दिशाओं की ओर राजमार्गों का जाल बिछा है। बरेली-हल्द्वानी रेलमार्ग पर किच्छा महत्वपूर्ण रेल स्टेशन है। दिनांक १४ अक्टूबर १९७१ के द्वारा किच्छा को टाउन एरिया घोषित किया था। ८ अक्टूबर १९८५ के द्वारा टाउन एरिया कमेटी किच्छा का चतुर्थ श्रेणी की नगरपालिका का स्तर प्रदान किया गया।
 
भूगोल
भौगोलिक दृष्टि से किच्छा तराई क्षेत्र में स्थित है तथा जलवायु शीतोष्ण प्रकार की है किच्छा के पूर्व में गोला नदी स्थित है तथा दक्षिण में उत्तर प्रदेश से सीमा बनाता है तथा उत्तर में नैनीताल जिले से सीमा बनाता है
 
जनसांख्यिकी
२००१ की जनगणना में, किच्छा, जो ऊधमसिंहनगर जिले का एक शहर है, की जनसंख्या ३०,५१७ थी। पुरुष ५३% और महिलाएँ ४६% हैं। किच्छा की औसत साक्षरता दर ७६% है जो राष्ट्रीय औसत ५९.५% से अधिक है: पुरुष साक्षरता ८३% और महिला साक्षरता ७६% है। किच्छा में, १२% जनसंख्या ६ वर्ष से कम की है।
 
समाज
सामाजिक दृष्टि से किच्छा में सभी प्रकार के धर्मों के व्यक्तियों का निवास है तथा सभी धर्मों के लोग मिल जुल कर रहना पसंद करते हैं
 
शिक्षा
यहां पर शिक्षा के क्षेत्र में कई संस्थान कार्यरत हैं इनमें प्राथमिक स्तर पर सेंट पीटर स्कूल तथा हिमालया प्रोग्रेसिव स्कूल नालंदा स्कूल बीर शिवा स्कूल लिटिल एंगल स्कूल गुरुकुल स्कूल जनता इंटर कॉलेज कन्या इंटर कॉलेज प्रमुख है। तथा सीनियर स्तर पर सूरजमल स्नातकोत्तर महाविद्यालय सूरज मल इंजीनियरिंग कॉलेज देवभूमि कॉलेज उपलब्ध है तथा सूरजमल इंजीनियरिंग कॉलेज जो महिला पुरुष दोनों के लिए उपलब्ध है।
 
अर्थव्यस्था
किच्छा की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि आधारित है। धान और गेहूं यहां की दो प्रमुख फसलें हैं। अच्छी कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता और यहाँ के किसानों के अथक परिश्रम करने की वजह से उनमें में से अधिकांश अमीर और समृद्ध हैं। यहाँ के आसपास के क्षेत्र में 30 से अधिक चावल मिलें हैं। सिडकुल की स्थापना के बाद भारत के सभी भागों से लोग रोजगार के लिए यहां आ रहे हैं।
 
राजनीति
राजनीति के क्षेत्र में किच्छा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है किच्छा की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां से भूतपूर्व मुख्यमंत्री भी विधानसभा चुनाव में उतर चुके हैं वर्तमान में किच्छा के विधायक माननीय राजेश शुक्ला जी हैं जो भाजपा पार्टी से हैं
 
आवागमन
सड़क मार्ग से किच्छा राष्ट्रीय राजमार्ग ९ (पहले राष्ट्रीय राजमार्ग ७४) और उत्तर प्रदेश राज्य राजमार्ग ३७ द्वारा जुड़ा है। बरेली और सितारगंज तथा काशीपुर तक फोरलेन कि सुविधा भी उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त यह बरेली-काठगोदाम रेलवे लाइन पर स्थित है। यहां से सूरत अहमदाबाद मुंबई हावड़ा पटना बनारस लख़नऊ कानपुर बरेली आगरा मथुरा काशीपुर रामनगर के लिए सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। यहां से १० किलोमीटर दूर पंतनगर एयरपोर्ट है। जहां से दिल्ली और देहरादून के लिए नियमित सेवा उपलब्ध है।
प्रमुख शहरों के पास
देहरादून 234 KM
दिल्ली 249 KM 
लखनऊ 301 KM 
 
एयर पोर्ट्स के पास
पंतनगर एयरपोर्ट 16 KM 
मुजफ्फरनगर एयरपोर्ट 211 KM 
देहरादून हवाई अड्डा 237 KM 
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 267 KM 
 
पर्यटक स्थलों के पास
काठगोदाम 45 KM 
खटीमा 49 KM 
भीमताल 53 KM 
सत्तल 55 KM 
भवाली 58 KM 
 
स्थानीय शहरों के पास
रामपुर 55 KM 
बरेली 67 KM 
मुरादाबाद 88 KM 
शाहजहाँपुर 134 KM 
 
जिले के पास
उधम सिंह नगर 15 KM 
पीलीभीत 45 KM 
रामपुर 55 KM 
नैनीताल 58 KM 
 
रेल्वे स्टेशन के पास
किच्छा रेल मार्ग स्टेशन 0.2 KM 
बहेरी रेल मार्ग स्टेशन 16 KM 
सामाजिक कार्य :
NA
सुखदेव थापर की जीवनी
सुखदेव थापर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब में विविध क्रांतिकारी संगठनो के वरिष्ट सदस्य थे। उन्होंने नेशनल कॉलेज, लाहौर में पढाया भी है और वही उन्होंने नौजवान भारत सभा की स्थापना भी की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिशो का विरोध कर आज़ादी के लिये संघर्ष करना था।
Sukhdev विशेषतः 18 दिसम्बर 1928 को होने वाले लाहौर षड्यंत्र में शामिल होने की वजह से जाने जाते है। वे भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ सह-अपराधी थे जिन्होंने उग्र नेता लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद जवाब में लाहौर षड्यंत्र की योजना बनायीं थी।
8 अप्रैल 1929 को उन्होंने नयी दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में उन्होंने मिलकर बमबारी की थी और कुछ समय बाद ही पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया था। और 23 मार्च 1931 को तीनो को फाँसी दी गयी थी। और रहस्यमयी तरीके से उन्हें शवो को सतलज नदी के किनारे पर जलाया गया था।
सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को पंजाब में लुधियाणा के नौघरा में हुआ था। उनके पिता का नाम रामलाल और माता का नाम राल्ली देवी था। सुखदेव के पिता की जल्द ही मृत्यु हो गयी थी और इसके बाद उनके अंकल लाला अचिंत्रम ने उनका पालन पोषण किया था।
किशोरावस्था से ही सुखदेव ब्रिटिशो द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों से चिर-परिचित थे। उस समय ब्रिटिश भारतीय लोगो के साथ गुलाम की तरह व्यवहार करते थे और भारतीयों लोगो को घृणा की नजरो से देखते थे। इन्ही कारणों से सुखदेव क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त कराने की कोशिश करते रहे।
बाद में सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब के कुछ क्रांतिकारी संगठनो में शामिल हुए। वे एक देशप्रेमी क्रांतिकारी और नेता थे जिन्होंने लाहौर में नेशनल कॉलेज के विद्यार्थियों को पढाया भी था और समृद्ध भारत के इतिहास के बारे में बताकर विद्यार्थियों को वे हमेशा प्रेरित करते रहते थे।
इसके बाद सुखदेव ने दुसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” की स्थापना भारत में की। इस संस्था ने बहुत से क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था और आज़ादी के लिये संघर्ष भी किया था।
आज़ादी के अभियान ने सुखदेव की भूमिका –
सुखदेव ने बहुत से क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिया है जैसे 1929 का “जेल भरो आंदोलन” । इसके साथ-साथ वे भारतीय स्वतंत्रता अभियान के भी सक्रीय सदस्य थे। भगत सिंह और शिवराम राजगुरु के साथ मिलकर वे लाहौर षड़यंत्र में सह-अपराधी भी बने थे। 1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद यह घटना हुई थी।
1928 में ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन के अंडर एक कमीशन का निर्माण किया, जिसका मुख्य उद्देश्य उस समय में भारत की राजनितिक अवस्था की जाँच करना और ब्रिटिश पार्टी का गठन करना था।
लेकिन भारतीय राजनैतिक दलों ने कमीशन का विरोध किया क्योकि इस कमीशन में कोई भी सदस्य भारतीय नही था। बाद में राष्ट्रिय स्तर पर उनका विरोध होने लगा था। जब कमीशन 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर गयी तब लाला लाजपत राय ने अहिंसात्मक रूप से शांति मोर्चा निकालकर उनका विरोध किया लेकिन ब्रिटिश पुलिस ने उनके इस मोर्चे को हिंसात्मक घोषित किया।
इसके बाद जेम्स स्कॉट ने पुलिस अधिकारी को विरोधियो पर लाठी चार्ज करने का आदेश दिया और लाठी चार्ज के समय उन्होंने विशेषतः लाला लाजपत राय को निशाना बनाया। और बुरी तरह से घायल होने के बाद लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी थी।
जब 17 नवम्बर 1928 को लाला लाजपत राय की मृत्यु हुई थी तब ऐसा माना गया था की स्कॉट को उनकी मृत्यु का गहरा धक्का लगा था। लेकिन तब यह बात ब्रिटिश पार्लिमेंट तक पहुची तब ब्रिटिश सरकार ने लाला लाजपत राय की मौत का जिम्मेदार होने से बिल्कुल मना कर दिया था।
इसके बाद सुखदेव ने भगत सिंह के साथ मिलकर बदला लेने की ठानी और वे दुसरे उग्र क्रांतिकारी जैसे शिवराम राजगुरु, जय गोपाल और चंद्रशेखर आज़ाद को इकठ्ठा करने लगे, और अब इनका मुख्य उद्देश्य स्कॉट को मारना ही था।
जिसमे जय गोपाल को यह काम दिया गया था की वह स्कॉट को पहचाने और पहचानने के बाद उसपर शूट करने के लिये सिंह को इशारा दे। लेकिन यह एक गलती हो गयी थी, जय गोपाल ने जॉन सौन्ड़ेर्स को स्कॉट समझकर भगत सिंह को इशारा कर दिया था और भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने उनपर शूट कर दिया था। यह घटना 17 दिसम्बर 1928 को घटित हुई थी। जब चानन सिंह सौन्ड़ेर्स के बचाव में आये तो उनकी भी हत्या कर दी गयी थी।
इसके बाद पुलिस ने हत्यारों की तलाश करने के लिये बहुत से ऑपरेशन भी चलाये, उन्होंने हॉल के सभी प्रवेश और निकास द्वारो को बंद भी कर दिया था। जिसके चलते सुखदेव अपने दुसरे कुछ साथियों के साथ दो दिन तक छुपे हुए ही थे।
19 दिसम्बर 1928 को सुखदेव ने भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गा देवी वोहरा को मदद करने के लिये कहा था, जिसके लिये वह राजी भी हो गयी थी। उन्होंने लाहौर से हावड़ा ट्रेन पकड़ने का निर्णय लिया। अपनी पहचान छुपाने के लिये भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिये थे और दाढ़ी भी आधे से ज्यादा हटा दी थी। अगले दिन सुबह-सुबह उन्होंने पश्चिमी वस्त्र पहन लिये थे, भगत सिंह और वोहरा एक युवा जोड़े की तरह आगे बढ़ रहे थे जिनके हाथ में वोहरा का एक बच्चा भी था।
जबकि राजगुरु उनका सामान उठाने वाला नौकर बना था। वे वहाँ से निकलने में सफल हुए और इसके बाद उन्होंने लाहौर जाने वाली ट्रेन पकड़ ली। लखनऊ ने, राजगुरु उन्हें छोड़कर अकेले बनारस चले गए थे जबकि भगत सिंह और वोहरा अपने बच्चे को लेकर हावड़ा चले गए।
सुखदेव की मृत्यु – Sukhdev death दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बमबारी करने के बाद सुखदेव और उनके साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया था और उन्होंने मौत की सजा सुनाई गयी थी। 23 मार्च 1931 को सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु को फाँसी दी गयी थी और उनके शवो को रहस्यमयी तरीके से सतलज नदी के किनारे पर जलाया गया था। सुखदेव ने अपने जीवन को देश के लिये न्योछावर कर दिया था और सिर्फ 24 साल की उम्र में वे शहीद हो गए थे। भारत को आज़ाद कराने के लिये अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थे, सुखदेव थापर, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिये समर्पित कर दिया। सुखदेव महान क्रान्तिकारी भगत सिंह के बचपन के मित्र थे। दोनों साथ बड़े हुये, साथ में पढ़े और अपने देश को आजाद कराने की जंग में एक साथ भारत माँ के लिये शहीद हो गये। 23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर सेंट्रल जेल में इन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया और खुली आँखों से भारत की आजादी का सपना देखने वाले ये तीन दिवाने हमेशा के लिये सो गये। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी सुखदेव थापर के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी