चंद्रशेखर आज़ाद ईमानदार अधिकारी कर्मचारी परिचय सूची

नाम :
रश्मि
पद :
अधिशासी अधिकारी
विभाग :
नगर विकास विभाग
नियुक्त :
नगर पंचायत कार्यालय झूंसी
जन्मभूमि/निवास :
कार्यालय परिसर
नगर/ब्लॉक :
झूंसी
जनपद :
प्रयागराज
राज्य :
उत्तर प्रदेश
सम्मान : NA
विवरण :
introduction
 
Name: Rashmi
Position: Executive Officer
Nagar Panchayat: Jhusi (Jhusi)
District: Prayaagraj
State : Uttar Pradesh 
Division : Allahabad 
Language : Hindi and Urdu, Awadhi, Bagheli 
Current Time 12:41 PM 
Date: Tuesday , Feb 05,2019 (IST) 
Telephone Code / Std Code: 0532 
Assembly constituency : Allahabad West assembly constituency 
Assembly MLA : Sidharth Nath Singh (BJP) Phone number, 9532802411
Lok Sabha constituency : Phulpur parliamentary constituency 
Parliament MP : 
Pin Code : 211019 
Post Office Name : Jhunsi 
संक्षिपत जीवनी अभी उपलब्ध नहीं है 
झूसी नगर पंचायत के बारे में 
झूसी इलाहाबाद जिले में एक कस्बा और नगर पंचायत हैं। इसे पूर्व में अंधेरनगरी और प्रतिष्ठानपुर या पुरी नामक नाम दिया गया था। यह स्थान निओलिथिक साइट में से एक होने के लिए भी जाना जाता है, जो कि दक्षिण एशिया में खेती के शुरुआती प्रमाणों में से एक है। कुमाऊँ में चन्द राजवंश के संस्थापक, सोम चन्द, झूसी के मूल निवासी थे।
भूगोल
झूसी में औसत ऊंचाई 76 मीटर (249 फीट) है। यह इलाहाबाद जिले का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है।
जनसांख्यिकी
2011 की जनगणना के अनुसार, झूसी की जनसंख्या 33,901 थी जिसमें झूसी नगर पंचायत और झूसी कोहना की संख्या 13,878 और 20,023 थी।
इतिहास
गंगा और यमुना नदियों के संगम के पास पुरातात्विक स्थल ने अपने नवपाषाण स्तर के लिए 7106 ईसा पूर्व से 7080 तक सी 14 डेटिंग की।  ऐतिहासिक रूप से, झुसी को पृथ्वीनाथपुरम के नाम से जाना जाता था।
प्रयाग के अतीत को झुसी में दफनाया गया
इतिहासकार डॉ। डी। पी। कहते हैं कि यह एक बार मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त काल के शासकों से संबंधित था, प्राचीन प्रतिष्ठा ने अपनी पहचान झूसी की आधुनिकता से खो दी है। इस ऐतिहासिक तथ्य से संबंधित एकमात्र प्रमाण अभी भी झुसी में उच्च टीले के आकार में दिखाई देता है। हैरानी की बात है कि इन ऊंचे टीलों ने शहर के महत्व को और अधिक बढ़ा दिया है क्योंकि यहां से खुदाई किए गए लेख छठी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं और पांच सांस्कृतिक चरणों से लेकर चोलकोलिथिक से लेकर प्रारंभिक मध्ययुगीन काल तक के पुरावशेष यहां पाए गए हैं। इतिहासकारों और पूर्व एनबीपी वेयर जमा के रूप में कुंभ मेले की साइट को इस स्थान पर चिह्नित किया गया है क्योंकि इस स्थान पर जल्द से जल्द संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया गया था। इस जमा की प्रारंभिक परत में लोहे की वस्तुएं निकली हैं। कुछ मिट्टी के बर्तनों की वस्तुएं और पुरावशेष यूपी, बिहार और उत्तरी विंध्य के विभिन्न चॉकोलिथिक स्थलों पर पाए जाते हैं। पूर्व-एनबीपी वेयर अवधि से गुप्ता अवधि तक साइट पर निरंतर निपटान हुआ था। हालांकि, गुप्त काल के अंत और प्रारंभिक मध्ययुगीन काल की शुरुआत के बीच एक सांस्कृतिक अंतर प्रतीत होता है। \\\\\\\"इस बात की पूरी संभावना है कि साइट को बड़े पैमाने पर खुदाई करने पर कोई अंतर नहीं दिखाई दे सकता है। यह संभावना साइट के रणनीतिक स्थान पर ही आधारित है, जो एक ही कारण से, कभी भी एक बार कब्जे में होने के बाद छोड़ दिया गया होता। । इस क्षेत्र में उत्खनन केवल उक्त तथ्य की ओर संकेत करता है। प्राचीन प्रतिष्ठान के खंडहर जो गंगा के पूर्वी तट पर झांसी के ऊंचे टीलों द्वारा दर्शाए गए हैं, लगभग चार वर्ग मील के क्षेत्र में फैले हुए हैं। प्रतिष्ठान सबसे महत्वपूर्ण इलाका था। प्रयाग की स्थापना की और यह राजा इला द्वारा स्थापित किया गया था और चंद्रवंश के अन्य राजाओं की राजधानी थी और चंद्र वंश कालिदास ने भी अपने नाटक विक्रमोर-वसियम में प्रतिष्ठान के बारे में उल्लेख किया है। उन्होंने पुरुरवास के इस महल का एक काल्पनिक विवरण दिया है जो शानदार था। विभिन्न मिथक। इस साइट से भी जुड़े हुए हैं। त्रिलोचनपाल के एक शिलालेख, प्रतिहार राजा, 1830 में साइट से खोजा गया था। उनकी पुस्तक में, वीएन पांडे ने उल्लेख किया है कि झांसी का नामकरण इसके साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। यह हर-बोंगा, एक बार-बार एक मूर्ख और मूर्ख राजा द्वारा शासित था, जिसके शासनकाल में हर जगह व्याप्त अराजकता थी। जब उनकी असमानता का प्याला भरा था, तो पृथ्वी पर उथल-पुथल मच गई थी और राजधानी प्रतिष्ठान को उलटा कर दिया गया था, इसलिए अब इसे उल्टा क्विला\\\\\\\' के नाम से जाना जाता है।
एक झड़प हुई जिसने शहर के विनाश को पूरा कर दिया और खंडहर झुलसी, एक जले हुए शहर के नाम से, हिंदी रूट झुलसना से चला गया। यह भी कहा जाता है कि संत मकदूम शाह तकीउद्दीन के आक्रमणों के परिणामस्वरूप 1359 ईस्वी में भूकंप में शहर नष्ट हो गया था, जिसका मकबरा किले के एक तरफ स्थित है। दुबे ने इन परंपराओं का उल्लेख किया है और झुसी नाम का व्युत्पत्तित्मक अर्थ संभवतः तेरहवीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा साइट को नष्ट करने और जलाने का संकेत करता है। वह कहते हैं कि ब्राह्मण और क्षत्रिय कुलों के बिखराव से संबंधित परंपराएं झुसी और उनके घरों को छोड़ देती हैं। मध्ययुगीन काल के दौरान दूर के स्थानों पर जाना इस सिद्धांत को रंग देता है। 
यहां पर ऐतिहासिक और पवित्र समुद्रकुंड भी है, जिसकी अपनी कहानी है। \\\\\\\"इसे समुद्रगुप्त के नाम से जाना जाता है क्योंकि यह समुद्रगुप्त के काल का है। वास्तव में पांच ऐसे कुएं उज्जैन, मथुरा, प्रयाग (इलाहाबाद), वाराणसी और पातालपुर में पाए जाते हैं। इसे एक बार कचरे के रूप में डंप किया गया था, लेकिन एक ऋषि दयाराम के प्रयास से इसे लाया गया था। लाइमलाइट के लिए इसका ऐतिहासिक महत्व।  इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के तहत इलाहाबाद की खोई हुई विरासत पर शोध से पता चलता है कि गंगा नदी के निरंतर कटाव के कारण यह स्थल धीरे-धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है। उच्च टीला, जो कुषाण काल से संबंधित है, अभी कुछ ईंटें सामने आई हैं। [उद्धरण वांछित]
शहरों के पास
प्रयागराज  KM 
फूलपुर 32 KM 
लाल गोपालगंज निंदौरा 36 KM 
मिर्जापुर 90 KM
ब्लॉक के पास
इलाहाबाद 0 KM
चाका 10 KM
बहादुरपुर 16 KM
सोरांव 16 KM
एयर पोर्ट्स के पास
बमरौली एयरपोर्ट 11 KM
वाराणसी एयरपोर्ट 114 KM
अमौसी एयरपोर्ट 196 KM
कानपुर एयरपोर्ट 199 KM 
पर्यटक स्थलों के पास
प्रयागराज  KM
श्रृंगवेरपुर 33 KM
कौशाम्बी 50 KM
प्रतापगढ़ 63 KM 
विंध्याचल 82 किलोमीटर
जिले के पास
प्रयागराज  KM
कौशाम्बी 47 KM 
प्रतापगढ़ जिला 57 KM 
संत रविदास नगर 72 KM 
रेल्वे स्टेशन के पास
इलाहाबाद सिटी रेल मार्ग स्टेशन 1.4 KM
इलाहाबाद जंक्शन रेल मार्ग स्टेशन 1.8 KM
प्रयाग घाट रेल मार्ग स्टेशन 4.8 KM
इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दल
इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में AD, SP, BSP प्रमुख राजनीतिक दल हैं।
LKD, INC (I), BJP, BJS, BKD, JNP (SC), JNP, INC पिछले वर्षों में लोकप्रिय राजनीतिक दल हैं।
इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में मंडल।
इलाहाबाद
इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।
2012 = पूजा पाल बसपा 71114 = 8885 अतीक अहमद  62229
2007 = पूजा पाल बीएसपी 56198 10322 खालिद अजीम उर्फ असरफ एसपी 45876
2005 = खालिद अजीम उर्फ अशरफ एसपी 90836 = 13383 पूजा पाल बीएसपी 77453
2004 = राजू पाल बीएसपी 70533 = 4818 खालिद अजीम उर्फ अशरफ एसपी 65715
2002 = अतीक अहमद 39532 = 11808 गोपाल दास यादव एसपी  27724
1996 = अतीक अहमद सपा 73152 = 35099 तीरथ राम कोहली भाजपा  38053
1993 = अतीक अहमद 56914 = 9317 तीरथ राम कोहली बीजेपी 47597
1991 =  अतीक अहमद  36424 = 15743 राम चंद्र जायसवाल बीजेपी  20681
1989 = अतीक अहमद 25906 = 8102 गोपाल दास कांग्रेस 17804
1985 = गोपाल दास यादव LKD 13970 = 2130 अकबर हुसैन कांग्रेस 11840
1980 = चौधरी नौनिहाल सिंह कांग्रेस 13731 =  3406 महबूब अहमद JNP 10325
1979 = C.N.Singh कांग्रेस 14000 = 5135 M.Ahmad JNP 8865
1977 = हबीब अहमद जेएनपी 25325 = 16221 सुनीत चंद्र व्यास कांग्रेस। 9104
1974 = तीरथ राम कोहली BJS 20731 = 176 हबीब अहमद BKD 20555
1969 = हबीब अहमद 18029 = 4908 तीरथ राम कोहली BJS 13121
1967 = C.N.Singh कांग्रेस 13603 = 4027 B.P.Kushwaha 9576
सामाजिक कार्य :
NA
चंद्रशेखर आजाद जीवनी
नाम – पंडित चंद्रशेखर तिवारी।
जन्म – 23 जुलाई, 1906 भाभरा (मध्यप्रदेश)।
पिता – पंडित सीताराम तिवारी।
माता – जाग्रानी देवी।
भारतीय क्रन्तिकारी, काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास (1926), लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की (1928), भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रसभा का गठन किया। चंद्रशेखर आज़ाद एक महान भारतीय क्रन्तिकारी थे। उनकी उग्र देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भागलेने के लिए प्रेरित किया। चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह के सलाहकार, और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और भगत सिंह के साथ उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।
आरंभीक जीवन:
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। चंद्रशेखर कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। इनके पिता नेक, धर्मनिष्ट और दीं-ईमान के पक्के थे और उनमें पांडित्य का कोई अहंकार नहीं था। वे बहुत स्वाभिमानी और दयालु प्रवर्ति के थे। घोर गरीबी में उन्होंने दिन बिताए थे और इसी कारण चंद्रशेखर की अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई, लेकिन पढ़ना-लिखना उन्होंने गाँव के ही एक बुजुर्ग मनोहरलाल त्रिवेदी से सीख लिया था, जो उन्हें घर पर निःशुल्क पढ़ाते थे।
बचपन से ही चंद्रशेखर में भारतमाता को स्वतंत्र कराने की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। इसी कारन उन्होनें स्वयं अपना नाम आज़ाद रख लिया था। उनके जीवन की एक घटना ने उन्हें सदा के लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर कर दिया। 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ अमृतसर में जनरल डायर ने जो नरसंहार किया, उसके विरोध में तथा रौलट एक्ट के विरुद्ध जो जन-आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, वह दिन प्रतिदिन ज़ोर पकड़ता जा रहा था।
आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए।
शिक्षाः
चन्द्रशेखर की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई। पढ़ाई में उनका कोई विशेष लगाव नहीं था। इनकी पढ़ाई का जिम्मा इनके पिता के करीबी मित्र पं. मनोहर लाल त्रिवेदी जी ने लिया। वह इन्हें और इनके भाई (सुखदेव) को अध्यापन का कार्य कराते थे और गलती करने पर बेंत का भी प्रयोग करते थे। चन्द्रशेखर के माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे किन्तु कक्षा चार तक आते आते इनका मन घर से भागकर जाने के लिये पक्का हो गया था। ये बस घर से भागने के अवसर तलाशते रहते थे। इसी बीच मनोहरलाल जी ने इनकी तहसील में साधारण सी नौकरी लगवा दी ताकि इनका मन इधर उधर की बातों में से हट जाये और इससे घर की कुछ आर्थिक मदद भी हो जाये। किन्तु शेखर का मन नौकरी में नहीं लगता था। वे बस इस नौकरी को छोड़ने की तरकीबे सोचते रहते थे। उनके अंदर देश प्रेम की चिंगारी सुलग रहीं थी। यहीं चिंगारी धीरे-धीरे आग का रुप ले रहीं थी और वे बस घर से भागने की फिराक में रहते थे। एक दिन उचित अवसर मिलने पर आजाद घर से भाग गये।
क्रांतिकारी जीवन:
1922 में जब गांधीजी ने चंद्रशेखर को असहकार आन्दोलन से निकाल दिया था तब आज़ाद और क्रोधित हो गए थे। तब उनकी मुलाकात युवा क्रांतिकारी प्रन्वेश चटर्जी से हुई जिन्होंने उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से करवाई, जिन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की थी, यह एक क्रांतिकारी संस्था थी। जब आजाद ने एक कंदील पर अपना हाथ रखा और तबतक नही हटाया जबतक की उनकी त्वचा जल ना जाये तब आजाद को देखकर बिस्मिल काफी प्रभावित हुए। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य बन गए थे और लगातार अपने एसोसिएशन के लिये चंदा इकठ्ठा करने में जुट गए। उन्होंने ज्यादातर चंदा सरकारी तिजोरियो को लूटकर ही जमा किया था। वे एक नये भारत का निर्माण करना चाहते थे जो सामाजिक तत्वों पर आधारित हो। आज़ाद ने कुछ समय तक झांसी का अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बनाया था | झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर ओरछा के जंगलो में निशानेबाजी का अभ्यास करते रहते थे | वो अपने दल के दुसरे सदस्यों को भी निशानेबाजी के लिए प्रशिक्षित करते थे | उन्होंने सतर नदी के किनारे स्थित हनुमान मन्दिर के पास एक झोंपड़ी भी बनाई थी | आजाद वहा पर पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के सानिध्य में काफी लम्बे समय तक रहे थे और पास के गाँव धिमारपुरा के बच्चो को पढाया करते थे | इसी वजह से उन्होंने स्थानीय लोगो से अच्छे संबंध बना लिए थे | मध्य प्रदेश सरकार ने आजाद के नाम पर बाद में इस गाँव का नाम आजादपूरा कर दिया था | हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना 1924 में बिस्मिल ,चटर्जी ,चीन चन्द्र सान्याल और सचिन्द्र नाथ बक्शी द्वारा की गयी थी | 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजो ने क्रांतिकारी गतिविधियो पर अंकुश लगा दिया था |इस काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाकउल्ला खान , ठाकुर रोशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा हो गयी थी | इस काण्ड से Chandra Shekhar Azad चंद्रशेखर आजाद ,केशव चक्रवती और मुरारी शर्मा बच कर निकल गये | चंद्रशेखर आजाद ने बाद में कुछ क्रांतिकारीयो की मदद से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को फिर पुनर्गठित किया |चन्द्रशेखर आजाद , भगवती चरण वोहरा का निकट सहयोगी था जिन्होंने 1928 में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव की मदद से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में बदल दिया | अब उनका सिद्धांत समाजवाद के सिधांत पर स्वतंत्रता पाना मुख्य उद्देश्य था |
असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद और अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने किसी भी कीमत पर देश को आज़ादी दिलाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध दमनकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। चंद्रशेखर आज़ाद काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने के प्रयास (1926), और लाहौर में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स को गोली मारने (1928) जैसी घटनाओं में शामिल थे। दिसंबर की कड़ाके वाली ठंड की रात थी और ऐसे में Chandra Shekhar Azad को ओढ़ने – बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया क्योंकि पुलिस वालोँ का ऐसा सोचना था कि यह लड़का ठंड से घबरा जाएगा और माफी माँग लेगा, किंतु ऐसा नहीं हुआ । यह देखने के लिए लड़का क्या कर रहा है और शायद वह ठंड से ठिठुर रहा होगा, आधी रात को इंसपेक्टर ने चंद्रशेखर की कोठरी का ताला खोला तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि चंद्रशेखर दंड – बैठक लगा रहे थे और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे । दूसरे दिन Chandra Shekhar Azad को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया । उन दिनों बनारस में एक बहुत कठोर मजिस्ट्रेट नियुक्त था । उसी अंग्रेज मजिस्ट्रेट के सामने १५ वर्षीय चंद्रशेखर को पुलिस ने पेश किया ।मजिस्ट्रेट ने बालक से पूछाः “तुम्हारा नाम ?” बालक ने निर्भयता से उत्तर दिया – “Azad” । “पिता का नाम ?” – मजिस्ट्रेट ने कड़े स्वर में पूछाः । ऊँची गरदन किए हुए बालक ने तुरंत उत्तर दिया – “स्वाधीन” । युवक की हेकड़ी देखकर न्यायाधीश क्रोध से भर उठा । उसने फिर पूछाः – “तुम्हारा घर कहाँ है?” चंद्रशेखर ने गर्व से उत्तर दिया – “जेल की कोठरी” । न्यायाधीश ने क्रोध में चंद्रशेखर को १५ बेंत (कोड़े) लगाने की सजा दी ।
मृत्यु:
आजाद की मृत्यु अल्लाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को हुई थी। जानकारों से जानकारी मिलने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने आजाद और उनके सहकर्मियों की चारो तरफ से घेर लिया था। खुद का बचाव करते हुए वे काफी घायल हो गए थे और उन्होंने कई पुलिसकर्मीयो को मारा भी था। चंद्रशेखर बड़ी बहादुरी से ब्रिटिश सेना का सामना कर रहे थे और इसी वजह से सुखदेव राज भी वहा से भागने में सफल हुए। लंबे समय तक चलने वाली गोलीबारी के बाद, अंततः आजाद चाहते थे की वे ब्रिटिशो के हाथ ना लगे, और जब पिस्तौल में आखिरी गोली बची हुई थी तब उन्होंने वह आखिरी गोली खुद को ही मार दी थी। चंद्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल हमें आज भी अल्लाहबाद म्यूजियम में देखने मिलती है।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी