चंद्रशेखर आज़ाद ईमानदार अधिकारी कर्मचारी परिचय सूची

नाम :
विकास ठाकुर
पद :
सहायक अभियंता
विभाग :
विधुत विभाग
नियुक्त :
विधुत उपखंड रेहान
जन्मभूमि/निवास :
रेहान
नगर/ब्लॉक :
नूरपुर
जनपद :
कांगड़ा
राज्य :
हिमाचल प्रदेश
सम्मान : NA
विवरण :
introduction
Name : Vikas Thakur
Position: Assistant Engineer
Department: electricity subdivision  Rehan
Locality Name : Rehan
Tehsil Name : Nurpur
District : Kangra 
State : Himachal Pradesh 
Language : Hindi and Kangri 
Current Time 03:04 PM 
Date: Tuesday , Feb 05,2019 (IST) 
Telephone Code / Std Code: 01893 
Assembly constituency : Fatehpur assembly constituency 
Assembly MLA : Sujan Singh Pathania 
Lok Sabha constituency : Kangra parliamentary constituency 
Parliament MP : Shanta Kumar 
Serpanch Name : Papu 
Pin Code : 176022 
Post Office Name : Rehan
 
संक्षिपत जीवनी अभी उपलब्ध नहीं है
 
रेहान नगर के बारे में 
रेहान भारत के उत्तर में हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले का एक छोटा सा शहर है। यह पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित है। यह नूरपुर, जवाली और पठानकोट शहरों के बीच एक जंक्शन के रूप में जाना जाता है। पठानकोट दो रेलवे स्टेशनों के साथ निकटतम और सबसे बड़ा शहर है।
रेहान पिन कोड 176022 है और डाक प्रधान कार्यालय रेहान है।
कंदोर (2 KM), लहारुन (2 KM), झंब खस (3 KM), धसोली (3 KM), बत्रहन (4 KM) रेहान के नजदीकी गांव हैं। रेहान उत्तर की ओर नूरपुर तहसील, पूर्व की ओर नगरोटा सूरियां तहसील, पूर्व में सुलाह तहसील, पश्चिम की ओर इंदौरा तहसील से घिरा हुआ है।
पठानकोट, सुजानपुर, मुकेरियां, धर्मशाला, रेहान के पास शहर हैं।
यह स्थान कांगड़ा जिला और गुरदासपुर जिले की सीमा में है। गुरदासपुर जिला धरकालन इस जगह की ओर उत्तर है। यह पंजाब राज्य सीमा के निकट है।
रेहान कई छोटे गांवों से घिरा हुआ है और खरीदारी और मनोरंजन के लिए मुख्य जंक्शन है। हालाँकि यह एक छोटा सा शहर है, लेकिन इसमें बहुत सी सुविधाएं जैसे कि बहुत छोटा अस्पताल (हालांकि आपात स्थिति के लिए नहीं), एक फार्मेसी, एक रक्त परीक्षण प्रयोगशाला, कई इंटरनेट कैफे, एक बरतन की दुकान और एक फोटो शॉप जैसी अधिकांश सुविधाएं प्रदान करता है।
रेहान का ग्रामीण इलाका बहुत खूबसूरत है क्योंकि यह पहाड़ियों पर स्थित है। मार्च में मौसम गर्म होना शुरू हो जाता है, हालांकि रातें अभी भी ठंडी हैं। अप्रैल के अंत तक, मौसम बहुत गर्म है और दिन के दौरान अपने उच्चतम शिखर पर 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। सर्दियों में, यह बहुत ठंडा हो सकता है और कुछ वर्षों में यहां तक कि बर्फबारी भी होती है। 7 जनवरी 2012 को, रेहान ने अपने इतिहास में पहली बार घनी बर्फबारी देखी।
रेहान स्थानीय शहद, तेल, पनीर और सब्जियों का उत्पादन करता है, हालांकि यह बहुत कम निर्यात करता है। अधिकांश आबादी पश्चिमी पहाड़ी की किस्मों की बात करती है। प्रसिद्ध हिमाचली गायक अनुज शर्मा शहर से हैं। देहरी, भरल, सकरी, चतरा, खुखनाड़ा और भरमार सहित आसपास के कई गाँव हैं।
सिद्ध बाबा श्री राजा राम के नाम से रेहान में प्रसिद्ध त्योहार 16 फरवरी को प्रत्येक ईयर को होता है।
हवाईजहाज से
स्पाइसजेट नई दिल्ली से गगल हवाई अड्डे के लिए दैनिक उड़ानें चला रहा है जो रेहान से सिर्फ 64 किमी दूर है। उड़ानें जलवायु परिस्थितियों से ग्रस्त हैं और सर्दियों में कम दृश्यता के कारण रद्द की जा सकती हैं- तदनुसार अपनी यात्रा की योजना बनाएं।
रेहान की जनसांख्यिकी
हिंदी यहां की स्थानीय भाषा है।
कैसे  रेहान
रेल द्वारा
भरमार रेल मार्ग स्टेशन, बाले दा पीर लारथ रेल मार्ग स्टेशन रेहान के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।
रेहान पठानकोट से नैरो गेज रेलवे द्वारा जुड़ा हुआ है। पठानकोट से रेहान की अनुमानित दूरी 36 किमी है।
कस्बे में कांगड़ा घाटी टॉय ट्रेन भी चलती है। निकटतम रेलवे स्टेशन भरमार में है, जो मुख्य बस स्टैंड से 6 किमी दूर है।
रास्ते से
पठानकोट दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे प्रमुख शहरों से वातानुकूलित, डीलक्स और अर्ध डीलक्स बसों की यात्रा करने के लिए हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (HRTC) सबसे अच्छा तरीका है। दिल्ली (530 किमी), चंडीगढ़ (240 किमी), शिमला (259 किमी), मनाली (205 किमी), धर्मशाला (70 किलोमीटर) आदि प्रमुख शहरों के लिए टिकट एचआरटीसी की वेबसाइट से ऑनलाइन बुक किए जा सकते हैं। 
शहरों के पास
पठानकोट 29 KM 
सुजानपुर 37 KM 
मुकेरियां 41 KM 
धर्मशाला 43 KM
तालुकों के पास
फतेहपुर 10 KM
नूरपुर 13 KM
नगरोटा सूरियां 16 KM 
इंदौरा 16 KM
एयर पोर्ट्स के पास
पठानकोट एयरपोर्ट 29 KM 
गग्गल एयरपोर्ट 40 KM 
भुंतर हवाई अड्डा 127 KM
सतवारी एयरपोर्ट 128 KM
पर्यटक स्थलों के पास
पठानकोट 30 KM
धर्मशाला 44 KM 
मैकलोडगंज 44 KM 
डलहौजी 45 किमी
कठुआ 47 KM 
जिले के पास
कांगड़ा 43 KM 
कठुआ 47 KM 
चंबा 53 KM 
गुरदासपुर 57 KM 
रेल्वे स्टेशन के पास
भरमार रेल मार्ग स्टेशन 4.9 KM 
बाले दा पीर लारथ रेल मार्ग स्टेशन 6.5 KM 
तलारा रेल मार्ग स्टेशन 9.0 KM 
पठानकोट जंक्शन रेल मार्ग स्टेशन 30 KM
मुकेरियन रेल मार्ग स्टेशन 42 KM 
सामाजिक कार्य :
NA
चंद्रशेखर आजाद जीवनी
नाम – पंडित चंद्रशेखर तिवारी।
जन्म – 23 जुलाई, 1906 भाभरा (मध्यप्रदेश)।
पिता – पंडित सीताराम तिवारी।
माता – जाग्रानी देवी।
भारतीय क्रन्तिकारी, काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास (1926), लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की (1928), भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रसभा का गठन किया। चंद्रशेखर आज़ाद एक महान भारतीय क्रन्तिकारी थे। उनकी उग्र देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भागलेने के लिए प्रेरित किया। चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह के सलाहकार, और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और भगत सिंह के साथ उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।
आरंभीक जीवन:
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। चंद्रशेखर कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। इनके पिता नेक, धर्मनिष्ट और दीं-ईमान के पक्के थे और उनमें पांडित्य का कोई अहंकार नहीं था। वे बहुत स्वाभिमानी और दयालु प्रवर्ति के थे। घोर गरीबी में उन्होंने दिन बिताए थे और इसी कारण चंद्रशेखर की अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई, लेकिन पढ़ना-लिखना उन्होंने गाँव के ही एक बुजुर्ग मनोहरलाल त्रिवेदी से सीख लिया था, जो उन्हें घर पर निःशुल्क पढ़ाते थे।
बचपन से ही चंद्रशेखर में भारतमाता को स्वतंत्र कराने की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। इसी कारन उन्होनें स्वयं अपना नाम आज़ाद रख लिया था। उनके जीवन की एक घटना ने उन्हें सदा के लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर कर दिया। 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ अमृतसर में जनरल डायर ने जो नरसंहार किया, उसके विरोध में तथा रौलट एक्ट के विरुद्ध जो जन-आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, वह दिन प्रतिदिन ज़ोर पकड़ता जा रहा था।
आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए।
शिक्षाः
चन्द्रशेखर की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई। पढ़ाई में उनका कोई विशेष लगाव नहीं था। इनकी पढ़ाई का जिम्मा इनके पिता के करीबी मित्र पं. मनोहर लाल त्रिवेदी जी ने लिया। वह इन्हें और इनके भाई (सुखदेव) को अध्यापन का कार्य कराते थे और गलती करने पर बेंत का भी प्रयोग करते थे। चन्द्रशेखर के माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे किन्तु कक्षा चार तक आते आते इनका मन घर से भागकर जाने के लिये पक्का हो गया था। ये बस घर से भागने के अवसर तलाशते रहते थे। इसी बीच मनोहरलाल जी ने इनकी तहसील में साधारण सी नौकरी लगवा दी ताकि इनका मन इधर उधर की बातों में से हट जाये और इससे घर की कुछ आर्थिक मदद भी हो जाये। किन्तु शेखर का मन नौकरी में नहीं लगता था। वे बस इस नौकरी को छोड़ने की तरकीबे सोचते रहते थे। उनके अंदर देश प्रेम की चिंगारी सुलग रहीं थी। यहीं चिंगारी धीरे-धीरे आग का रुप ले रहीं थी और वे बस घर से भागने की फिराक में रहते थे। एक दिन उचित अवसर मिलने पर आजाद घर से भाग गये।
क्रांतिकारी जीवन:
1922 में जब गांधीजी ने चंद्रशेखर को असहकार आन्दोलन से निकाल दिया था तब आज़ाद और क्रोधित हो गए थे। तब उनकी मुलाकात युवा क्रांतिकारी प्रन्वेश चटर्जी से हुई जिन्होंने उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से करवाई, जिन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की थी, यह एक क्रांतिकारी संस्था थी। जब आजाद ने एक कंदील पर अपना हाथ रखा और तबतक नही हटाया जबतक की उनकी त्वचा जल ना जाये तब आजाद को देखकर बिस्मिल काफी प्रभावित हुए। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य बन गए थे और लगातार अपने एसोसिएशन के लिये चंदा इकठ्ठा करने में जुट गए। उन्होंने ज्यादातर चंदा सरकारी तिजोरियो को लूटकर ही जमा किया था। वे एक नये भारत का निर्माण करना चाहते थे जो सामाजिक तत्वों पर आधारित हो। आज़ाद ने कुछ समय तक झांसी का अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बनाया था | झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर ओरछा के जंगलो में निशानेबाजी का अभ्यास करते रहते थे | वो अपने दल के दुसरे सदस्यों को भी निशानेबाजी के लिए प्रशिक्षित करते थे | उन्होंने सतर नदी के किनारे स्थित हनुमान मन्दिर के पास एक झोंपड़ी भी बनाई थी | आजाद वहा पर पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के सानिध्य में काफी लम्बे समय तक रहे थे और पास के गाँव धिमारपुरा के बच्चो को पढाया करते थे | इसी वजह से उन्होंने स्थानीय लोगो से अच्छे संबंध बना लिए थे | मध्य प्रदेश सरकार ने आजाद के नाम पर बाद में इस गाँव का नाम आजादपूरा कर दिया था | हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना 1924 में बिस्मिल ,चटर्जी ,चीन चन्द्र सान्याल और सचिन्द्र नाथ बक्शी द्वारा की गयी थी | 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजो ने क्रांतिकारी गतिविधियो पर अंकुश लगा दिया था |इस काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाकउल्ला खान , ठाकुर रोशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा हो गयी थी | इस काण्ड से Chandra Shekhar Azad चंद्रशेखर आजाद ,केशव चक्रवती और मुरारी शर्मा बच कर निकल गये | चंद्रशेखर आजाद ने बाद में कुछ क्रांतिकारीयो की मदद से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को फिर पुनर्गठित किया |चन्द्रशेखर आजाद , भगवती चरण वोहरा का निकट सहयोगी था जिन्होंने 1928 में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव की मदद से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में बदल दिया | अब उनका सिद्धांत समाजवाद के सिधांत पर स्वतंत्रता पाना मुख्य उद्देश्य था |
असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद और अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने किसी भी कीमत पर देश को आज़ादी दिलाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध दमनकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। चंद्रशेखर आज़ाद काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने के प्रयास (1926), और लाहौर में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स को गोली मारने (1928) जैसी घटनाओं में शामिल थे। दिसंबर की कड़ाके वाली ठंड की रात थी और ऐसे में Chandra Shekhar Azad को ओढ़ने – बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया क्योंकि पुलिस वालोँ का ऐसा सोचना था कि यह लड़का ठंड से घबरा जाएगा और माफी माँग लेगा, किंतु ऐसा नहीं हुआ । यह देखने के लिए लड़का क्या कर रहा है और शायद वह ठंड से ठिठुर रहा होगा, आधी रात को इंसपेक्टर ने चंद्रशेखर की कोठरी का ताला खोला तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि चंद्रशेखर दंड – बैठक लगा रहे थे और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे । दूसरे दिन Chandra Shekhar Azad को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया । उन दिनों बनारस में एक बहुत कठोर मजिस्ट्रेट नियुक्त था । उसी अंग्रेज मजिस्ट्रेट के सामने १५ वर्षीय चंद्रशेखर को पुलिस ने पेश किया ।मजिस्ट्रेट ने बालक से पूछाः “तुम्हारा नाम ?” बालक ने निर्भयता से उत्तर दिया – “Azad” । “पिता का नाम ?” – मजिस्ट्रेट ने कड़े स्वर में पूछाः । ऊँची गरदन किए हुए बालक ने तुरंत उत्तर दिया – “स्वाधीन” । युवक की हेकड़ी देखकर न्यायाधीश क्रोध से भर उठा । उसने फिर पूछाः – “तुम्हारा घर कहाँ है?” चंद्रशेखर ने गर्व से उत्तर दिया – “जेल की कोठरी” । न्यायाधीश ने क्रोध में चंद्रशेखर को १५ बेंत (कोड़े) लगाने की सजा दी ।
मृत्यु:
आजाद की मृत्यु अल्लाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को हुई थी। जानकारों से जानकारी मिलने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने आजाद और उनके सहकर्मियों की चारो तरफ से घेर लिया था। खुद का बचाव करते हुए वे काफी घायल हो गए थे और उन्होंने कई पुलिसकर्मीयो को मारा भी था। चंद्रशेखर बड़ी बहादुरी से ब्रिटिश सेना का सामना कर रहे थे और इसी वजह से सुखदेव राज भी वहा से भागने में सफल हुए। लंबे समय तक चलने वाली गोलीबारी के बाद, अंततः आजाद चाहते थे की वे ब्रिटिशो के हाथ ना लगे, और जब पिस्तौल में आखिरी गोली बची हुई थी तब उन्होंने वह आखिरी गोली खुद को ही मार दी थी। चंद्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल हमें आज भी अल्लाहबाद म्यूजियम में देखने मिलती है।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी