अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : उरफी
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 04 -
पालिका/परिषद ठाकुरद्वारा
ज़िला : मुरादाबाद
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : NA
सम्मान :
NA

विवरण :

नगर पालिका परिषद ठाकुरद्वारा के बारे में
ठाकुरद्वारा नगर पालिका मुरादाबाद जिले का एक नगर है। कुल मतदाता संख्या 33948 जिसमे २५ वार्ड हैं, इस नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष माननीय हाजी लियाकत अंसारी जी हैं, जो निकाय चुनाव 2017 में समाजवादी पार्टी के समर्थन से चुनाव जीते हैं जिनको कुल पड़े मत (24305) में से 7404 मत प्राप्त हुए
2- राजपाल = भारतीय जनता पार्टी (5534) मत प्राप्त हुए

3- मौ 0 इरफान = निर्दलीय 5005 मत प्राप्त हुए

4- मौ0 जहाँगीर = भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 2280 मत प्राप्त कर चौथे न. पर रहे
माननीय हाजी लियाकत अंसारी जी ने अपने निकटतम प्रत्याशी को लगभग 2000 से अधिक वोटों से हराकर अध्यक्ष पद का चुनाव जीता,
ठाकुरद्वारा,भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के मुरादाबाद जिले में ठाकुरद्वारा तहसील में एक शहर है। यह मुरादाबाद डिवीजन के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय मुरादाबाद से उत्तर दिशा में 47 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक तहसील मुख्यालय है
ठाकुरद्वारा पिन कोड 244601 है और डाक प्रमुख कार्यालय ठाकुरद्वारा है।
फजुल्लागंज (3 किलोमीटर), रूपपुर टंडोला (3 किलोमीटर), फरीद नगर (एमएसटीटी) (3 किलोमीटर), रामनगर खागोवाला (3 किलोमीटर), कमलपुर खालसा (3 किलोमीटर), ठाकुरद्वारा के पास के गांव हैं। ठाकुरद्वारा, जसपुर ब्लॉक से उत्तर की ओर, काशीपुर तहसील की ओर पूर्व, डिलारी ब्लॉक दक्षिण की तरफ, भगतपुर टांडा ब्लॉक दक्षिण की ओर है।
ठाकुरद्वारा, जसपुर, काशीपुर, सहसपुर ठाकुरद्वारा के निकट शहर हैं।

यह स्थान मुरादाबाद जिले और उडम सिंह नगर जिला की सीमा में है। उडुम सिंह नगर जिला, जसपुर उत्तर की ओर स्थित है। इसके अलावा यह अन्य जिला बिजनौर की सीमा में है। यह उत्तराखंड राज्य सीमा के पास है अली रेलवे स्टेशन, काशीपुर रेलवे स्टेशन ठाकुरद्वारा से बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। मोरादाबाद रेलवे स्टेशन ठाकुरद्वारा के निकट 45 किलोमीटर की दूरी पर प्रमुख रेलवे स्टेशन है

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है
ठाकुरद्वारा में राजनीति

एमडी, भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।
ठाकुरद्वारा विधानसभा मौजूदा विधायक

माननीय नवाब जान खान समाजवादी पार्टी Number: 9690952786 ठाकुरद्वारा (मुरादाबाद) संसद के मौजूदा सांसद

माननीय कुंवर सर्वेश सिंह भारतीय जनता पार्टी 09013869409 (M)

ठाकुरद्वारा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल
भगतपुर टांडा, डिलारी, ठाकुरद्वारा
ठाकुरद्वारा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2014 नवब सपा 111817 27743 राजपाल चौहान भाजपा 84074

2012 कुंवर सर्श कुमार भाजपा 84530 37 9 74 विजय कुमार एमडी 46556

2007 विजय कुमार उर विजय यादव बीएसपी 62394 =9110 कुवार सर्वेश कुमार भाजपा 53284

2002 कुंवर सर्वेश कुमार उर्फ ​​राकेश भाजपा 87318 =3255 मोहम्मद उल्लाह खान कांग्रेस 84063

1996 सर्वेश कुमार उरफ राकेश भाजपा 74888 =28490 मोहम्मद उल्लाह खान जेपी 46398

1993 सर्वेश कुमार उर्फ ​​राकेश भाजपा 73837 =12895 मोह उल्लाह खान सपा एसपी 60942

1991 सर्वेश कुमार उर्फ ​​राकेश कुमार भाजपा 60276 =34236 मोहम्मद उल्ला खान जेपी 26040

1989 मोहम्मदल्ला खान बीएसपी 34170 =9502 रामपाल सिंह कांग्रेस 24668

1985 सखावत हुसैन आईसीजे 33113 =8182 उदयपाल सिंह कांग्रेस 24931

1980 राम पाल सिंह एस / ओ भगवंत सिंह कांग्रेस (आई) 26497 =760

1974 रामपाल सिंह कांग्रेस 38648 =22637 अहमदाला खान बीकेडी बीकेडी बीकेडी 16011

1969 अहमद उललम खान एसएडीए 26594 =2086 शिव सरूप सिंह बीकेडी 24508

1969 अहमद उलम खान एसएडीए 26594 =2086 शिव सरूप सिंह बीकेडी 24508

1967 ए। खान SWA 28228 =8505 आर। सिंह बीजेएस 19723

1962 राम पाल सिंह कांग्रेस 17284 =1939 अहमदुलह SWA 15345

1957 किशन सिंह इंक 22 9 32 =11628 हरवंत सिंह पीएसपी 11304

1 9 51 शिव सारूप सिंह कांग्रेस 16780=9734 हरि शंकर



शहरों के पास
ठाकुरद्वारा 8 किमी
जसपुर ट 11 किलोमीटर
काशीपुर 11 किलोमीटर
सहसपुर 27 किलोमीटर


तालुक से करीब
ठाकुरद्वारा 6 के.एम.
जसपुर 12 किलोमीटर दूर
काशीपुर 15 किलोमीटर दूर


दिलारी 20 के.एम.
हवाई बंदरगाहों के निकट
पंतनगर हवाई अड्डा 69 किमी
मुज़फ्फरनगर एयरपोर्ट 133 के.एम.
देहरादून हवाई अड्डा 166 के.एम.
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा 207 के.एम.


पर्यटन स्थल के पास
काशीपुर 10 किलोमीटर
रामनगर 38 किलोमीटर
कॉर्बेट नेशनल पार्क 43 के.एम.
मोरादाबाद 45 किलोमीटर
नैनीताल 69 के.एम.


जिले से पास
मोरादाबाद 45 किलोमीटर
रामपुर 51 किलोमीटर
ज्योतिबा फुले नगर 55 के.एम.
उडम सिंह नगर 64 किलोमीटर


रेलवे स्टेशन से करीब
सीओहारा रेल वे स्टेशन करीब 30 किमी
धंपुर रेलवे स्टेशन 41 किलोमीटर के पास

विकास कार्य :

NA
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी