अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : उरफी
पद : सभासद न. प. परि.
वॉर्ड : 19 -
पालिका/परिषद औरैया
ज़िला : औरैया
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 -
सम्मान :
NA

विवरण :

नगर पालिका परिषद औरैया के बारे में
नगर पालिका परिषद में कुल 64369 मतदाता हैं, औरैया; शहर में कुल 25 वार्ड हैं। निकाय 2017 के चुनाव में निर्दलीय समर्थित नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष, श्रीमती गायत्री देवी जी ने कुल पड़े मत संख्या 36506 में से (15223) 43.2 मत पाकर निर्दलीय समर्थित उम्मीदवार

श्रीमती रानी (निर्दलीय 8511) को सात हजार अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता
3- चित्रा (बहुजन समाज पार्टी) 4463 मत प्राप्त किये
५- राजकुमारी (भारतीय जनता पार्टी) 13434 मत प्राप्त किये

श्रीमती गायत्री देवी जी अपनी जुझरु मिलनसार होने के कारण क्षेत्र के नागरिक बहुत सम्मान देते हैं,

औरैया जिले के बारे में
औरैया जिला भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के 71 जिले में से एक है, औरैया जिला प्रशासनिक मुख्यालय औरैया है। यह राज्य की राजधानी लखनऊ से 173 किलोमीटर दूर स्थित है। औरैया जिला आबादी 1372287 है। यह आबादी के अनुसार राज्य का 64 वां सबसे बड़ा जिला है।

भूगोल और जलवायु औरैया जिला

यह अक्षांश-26.4, रेखांश -79.5 पर स्थित है। औरैया जिला, पश्चिम में इटावा जिला, कन्नौज जिले के उत्तर में, कानपुर देहट जिले को पूर्व में बांट रहे हैं।

औरैया जिला
लगभग 2054 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित है। । इसकी 146 मीटर की ऊंचाई 13 9 मीटर ऊंचाई है। यह जिला हिंदी बेल्ट का है। औरैया जिला का मौसम गर्मियों में यह गर्म नहीं है

औरैया जिला
गर्मियों में उच्चतम तापमान 11 डिग्री से 47 डिग्री सेल्सियस के बीच है। जनवरी के औसत तापमान 18 डिग्री सेल्सियस, फरवरी 17 डिग्री सेल्सियस, मार्च 17 डिग्री सेल्सियस, अप्रैल 22 डिग्री सेल्सियस, मई 38 डिग्री सेल्सियस रहा है

औरैया जिले के डेमो ग्राफिक्स हिंदी यहां स्थानीय भाषा है इसके अलावा लोग उर्दू बोलते हैं

औरैया जिला को 7 तहसील, पंचायत, 1681 गांवों में विभाजित किया गया है।

औरैया जिले के 2011 की जनगणना औरैया जिले कुल जनसंख्या 1372287 है जनगणना 2011 के अनुसार। 7,360,125 महिलाएं हैं और महिलाएं 636082 हैं .सभी लोगों के बीच 9 0, 9 05 है। कुल क्षेत्र 2054 वर्ग कि.मी. हैं। यह जनसंख्या के अनुसार राज्य का 64 वां सबसे बड़ा जिला है। लेकिन क्षेत्रफल से राज्य में 55 वें सबसे बड़ा जिला जनसंख्या के अनुसार देश में 355 वें सबसे बड़ा जिला। साक्षरता दर से राज्य में चौथा सबसे ज्यादा जिला। साक्षरता दर से देश में 16 9 वें सबसे ज्यादा जिला। साक्षरता दर 80.25 है

औरैया जिले में राजनीति बसपा, सपा, बीजेपी औरैया जिले में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।

औरैया जिले के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र औरैया जिले के कुल 4 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र

भरतना - बिधूं - दीबियापुर - औरैया -

औरैया जिले के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र औरैया जिले के कुल 2 संसदीय निर्वाचन क्षेत्र

इटावा - अशोक कुमार दोहरेई -भाजपा

कन्नौज - डिंपल यादव - एसपी

सड़क परिवहन जिला मुख्यालय औरैया सड़क से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। औरैया लखनऊ (उत्तर प्रदेश की राजधानी) के लिए लगभग 173 किलोमीटर सड़क है

रेल वाहक जिला में कुछ रेलवे स्टेशन स्टेशन हैं, जिनमें फाफुंड, अचलाडा, कंचौसी, पत्ता, घोसर हॉल्ट हैं ... जो जिले के अधिकांश कस्बों और गांवों को जोड़ता है। बस परिवहन उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन (यूपीएसआरटीसी) इस जिले में बड़े शहरों से बस्स को शहर और गांवों तक चलाता है।

औरैया विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012 = मदन सिंह उर्फ ​​संतोष एसपी 63477 =12062 कुलदीप बसपा 51415

2007 = शेखर बीएसपी 53435= 6258 कमलेश कुमार सपा 47177

2002 = राम जी शुक्ल बीएसपी 39435 =1033 प्रदीप सिंह चौहान सपा 38402

1996 = लाल सिंह वर्मा बीजेपी 42259 =159 चंद्र भान सिंह कछी बसपा 40740

1993 = इंदर पाल सिंह एसपी 62048 =11706 लाल सिंह वर्मा भाजपा 50342

1991 = इंद्र पाल सिंह जेपी 27040 = 2876 अशोक कुमार शर्मा भाजपा 24164

1989 = रवीन्द्र सिंह चौहान कांग्रेस 49691 = 6913 कमलेश कुमार पाठक जेडी 32785

1985 = कमलेश कुमार पाट एलकेडी 31076 = 1976 अतुल कुमार कांग्रेस 29100

1980 = धीनी राम वर्मा जेएनपी (एससी) 28909 = 4714 भरत सिंह चौहान कांग्रेस (यू) 24195

1977 = भारत सिंह चौहान जेएनपी 40432 = 7867 सत्य नारायण डुबे 32565

1974 = भारत सिंह चौहान बीकेडी 33866 = 2622 सत्य नारायण दुबे कांग्रेस 31244

1969 = चौहान भारत सिंह बीकेडी 19827 = 7148 सत्य नारायण दुबे कांग्रेस 12679

1967 = C.B.Singh एसएसपी 21229 = 4207 B.P.Paliwal कांग्रेस 17022

1962 = बद्री प्रसाद कांग्रेस 13424 = 3651 भारत सिंह चौहान पीएसपी 9773

1957 = सुख लाल कांग्रेस 22119 = 8813 सुभाषबी लाल (अनुसूचित जाति) 13306

1957 = भजन लाल 22188 = 2563 सत्य नारायण दत्त कांग्रेस 19625

विकास कार्य :

NA
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी