अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : माननीय आकाश
पद : नगर पालिका अध्यक्ष
वॉर्ड : 00 नगर
पालिका/परिषद दातागंज
ज़िला : बदायूँ
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : भारतीय जनता पार्टी
चुनाव : 2017 - 13470/4747 वोट
सम्मान :
माननीय नगर पालिका अध्यक्ष जी को निकाय चुनाव २०१७ में विजेता चुने जाने के उपरान्त नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति (NGO) नई दिल्ली द्वारा www.njssamiti.com पर जनप्रतिनिधि डिजिटल रिकॉर्ड में शामिल कर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है, संस्था आशा और कामना करती है बिना भेदभाव समस्त क्षेत्र का विकास करेंगे एवं संस्था को सामाजिक कार्य में डोनेशन देकर सहयोग करने के लिए धन्यबाद - मेहनाज़ अंसारी (जनरल सक्रेटरी)

विवरण :

Introduction
Honble Akash
Chairman
Municipal Council - Dataganj
District - Budaun
State - Uttar Pradesh
Mob - 9761264543
Eligibility - Diploma
Support -Bharatiya Janata Party

दातागंज नगर पालिका परिषद के बारे में

नगर पालिका परिषद में कुल 21083 मतदाता हैं, दातागंज; शहर में कुल 25 वार्ड हैं। निकाय 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी समर्थित नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष, माननीय आकाश जी ने कुल पड़े मत संख्या 13470 में से (4747) 36.52 प्रतिशत मत पाकर
समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की

2 - मौहम्मद इशहाक = समाजवादी पार्टी (3533) 27.18 प्रतिशत मत प्राप्त कर दूसरे न. पर रहे

3- राकेश वर्मा = भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (2506) 18 प्रतिशत मत प्राप्त किये

5- हरीश चन्द्र = बहुजन समाज पार्टी (833) 6.41 प्रतिशत मत प्राप्त कर चौथे न. पर रहे

माननीय आकाश जी 1200 अधिक मतों से जीत हासिल कर अध्यक्ष पद पर काबिज हुए

दातागंज के बारे में

दातागंज भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बदायूँ जिले में दातागंज एक नगर है, यह बरेली डिवीजन का है। यह पूर्व दिशा में 32 किलोमीटर की दूरी पर जिला मुख्यालय बदायूँ से स्थित है। यह एक ब्लॉक हेड क्वॉर्टर है
दातागंज पिन कोड 243635 और डाक प्रमुख कार्यालय दतागंज है।
कालौरा (1 किलोमीटर), कासपुर (2 किलोमीटर), पूरनई (2 किलोमीटर), आंध्रू (2 किलोमीटर), पापद हमजापुर (3 किलोमीटर), पासगंज से पास के गांव हैं। दटगंज सरेर ब्लॉक से उत्तर की ओर, पूर्व में जैतपुर ब्लॉक, दक्षिण की ओर म्याऊं ब्लॉक, पश्चिम में जगत ब्लॉक से घिरा हुआ है।

बदायूँ, तिलहार, बरेली, उझानी नज़दीक के शहर हैं।

यह स्थान बदायूँ जिले और शाहजहांपुर जिले की सीमा में है। शाहजहांपुर जिला इस स्थान के लिए पूर्व है।

दातागंज की जनसांख्यिकी

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है

दातागंज में राजनीति

भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।
के पास मतदान केंद्र / बूथ

1) जूनियर। । स्कूल न्यू बिल्डिंग साउथ पार्ट सथरा
2) जूनियर। उच्च। स्कूल रूम नं .2। दहरपुर कलान पूर्व भाग
3) पीआर। स्कूल रूम नं .1 नगला शंखू पख्तता
4) पीआर। स्कूल रूम नं। 1 रामपुरा खुर्द
5) पीआर। स्कूल रूम नं। 1 सीता नगर
कैसे डेटागंज पहुंचने के लिए

रेल द्वारा

10 किलोमीटर से भी कम की दूरी पर दतागंज के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है बरेली रेलवे स्टेशन प्रमुख रेलवे स्टेशन दतागंज के करीब 38 किलोमीटर दूर है

शहरों के पास
बदायन 32 के.एम.
तिलहर 36 किलोमीटर
बरेली 42 के.एम.
उज्ानी 58 के.एम.

तालुक से करीब
दरगंज 2 के.एम.
समर 11 किमी
जैतपुर 17 किलोमीटर
मीयन 20 किमी

हवाई बंदरगाहों के निकट
पंतनगर हवाई अड्डा 124 के.एम.
खेरिया हवाई अड्डा 193 के.एम.
अमौसी एयरपोर्ट 226 के.एम. के
कानपुर हवाई अड्डा 231 के.एम.

पर्यटन स्थल के पास
मोरादाबाद 121 के.एम.
खातिमा 126 के.एम.
कन्नौज 132 के.एम.
अलीगढ़ 147 के.एम.
नीमिशरण्य करीब 151 किलोमीटर

जिले से पास
बदायूँ 31 किलोमीटर दूर
बरेली 43 के.एम.
शाहजहांपुर 58 किलोमीटर
फर्रुखाबाद 82 किलोमीटर

रेलवे स्टेशन से करीब
पितंबरपुर रेल वे स्टेशन 25 किलोमीटर
तिलहर रेलवे स्टेशन करीब 37 किलोमीटर
वर्तमान में दातागंज नगर पालिका निर्वाचन क्षेत्र के अध्यक्ष

माननीय आकाश भारतीय जनता पार्टी = संपर्क = 9761264543

वर्तमान में दातागंज (आंवला) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के सांसद

माननीय धर्मेंद्र कुमार = भारतीय जनता पार्टी संपर्क = 09013869427

वर्तमान में दातागंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के विधायक

माननीय राजीव सिंह = भारतीय जनता पार्टी संपर्क 9412295100

दातागंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल

दातागंज, मोयन, सैररर, युजवान,

दातागंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012 सिनोद कुमार शाक्य (दीपू) बीएसपी 63626 = 5327 प्रेमपाल सिंह यादव सपा एसपी 58299

2007 सिनोड कुमार शाक्य (दीपू भैया) बसपा 36612 = 12932 डॉ शैलेश पाठक उरफ गुड्डू भैया कांग्रेस 23680

2002 प्रेम पाल सिंह यादव एसपी 27331 = 1621 अविनाश कुमार उर्फ ​​पप्पू भैया भाजपा 25710

1996 प्रेम पाल सिंह यादव एसपी 41117 =1239 अविनाश कुमार सिंह भाजपा 40878

1993 अविनाश कुमार सिंह भाजपा 27004 = 95 प्रेम पाल सिंह एसपी सपा 26999

1991 अविनाश कुमार सिंह भाजपा 30084 =6145 संतोष कुमारी पाठक कांग्रेस 23939

1989 संतोष कुमारी पाठक कांग्रेस 30976 = 4138 अविष्श कुमार सिंह भाजपा 26838

1985 अविनेश कुमार सिंह भाजपा 36179 = 13173 संतोष कुमारी पाठक कांग्रेस 23006

1980 संतोष कुमारी कांग्रेस (आई) 28273 = 8889 अविनाश कुमार भाजपा 19384

1 9 77 अवनेश कुमार सिंह जेएनपी 30835 = 1933 संतोष कुमारी कांग्रेस 28902

1974 संतोष कुमारी कांग्रेस 23728 = 4370 जगमोहन सिंह बीजेएस 19358

1972 S.Kumari कांग्रेस 29164 = 13,559 J.M.Singh BJS 15,605

1 9 70 ट्रिबनी सहाय कांग्रेस 30282 = 11502 हरीश चंद्र सिंह बीकेडी 18780

1 9 67 एच। सी। सिंह निर्दलीय 17866 = 949 आर। दयाल कांग्रेस 16917

1 962 नारायण सिंह जेएस 12946 = 1528 हरीश चंद्र सिंह कांग्रेस 11418

1957 हरिश चंद्र सिंह कांग्रेस 19217 = 3630 ओन्कर सिंह बीजेएस 1558

विकास कार्य :

2019
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी