अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : मा. विकास यादव
पद : सभासद
वॉर्ड : 10 पंजाबपुरा
पालिका/परिषद एटा
ज़िला : एटा
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : समाजवादी पार्टी
चुनाव : 2017 1513 /618 वोट
सम्मान :
माननीय जी को निकाय चुनाव 2018 में विजेता चुने जाने के उपरान्त नवनिर्माण जनकल्याण सहायता समिति (NGO) नई दिल्ली द्वारा www.njssamiti.com पर जनप्रतिनिधि डिजिटल रिकॉर्ड में शामिल कर सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है, संस्था आशा और कामना करती है बिना भेदभाव समस्त क्षेत्र का विकास करेंगे एवं संस्था को सामाजिक कार्य महापुरुषों की जीवनी समाज तक पहुंचाने के लिए माननीय जी को शहीद अशफाक उल्लाह खां नगर पालिका अध्यक्ष / सभासद सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया है - मेहनाज़ अंसारी (जनरल सक्रेटरी)

विवरण :

Introduction 

Honorable Vikas Yadav 

Designation : Member 

Ward No. : 10 Punjabpura 

Municipal Council Etah

State - Uttar Pradesh

Mob - 9927101900

Eligibility - Diploma 

Support - Samajwadi Party 

वार्ड न.  10 पंजाबपुरा के बारे में 

नगर पालिका  एटा के वार्ड १० में कुल 3011 मतदाता हैं ,निकाय चुनाव 2017 में वार्ड से समाजवादी पार्टी समर्थित माननीय विकास यादव को कुल पड़े मत

 संख्या 1513 में से 618 , 40.85 प्रतिशत मत पाकर निकटतम  प्रत्याशी 

2 - निराले =  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (545) 36.02 प्रतिशत मत प्राप्त कर दूसरे न. 

3 - विवेक, = निर्दलीय (242) 15.99 प्रतिशत मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे 

माननीय  विकास यादव 70 से अधिक मतों से जीतकर सभासद पद पर  विजय  हासिल की 

एटा नगर -पालिका परिषद् के बारे में

एटा उत्तर प्रदेश राज्य, भारत के एटा जिले में एक नगर पालिका परिषद्  है। यह अलीगढ़ डिवीजन से संबंधित है।

एटा पिन कोड 207001 है और डाक प्रमुख कार्यालय एटा है।

भिपिपुर, घिलौआ, शितालपुर, इताहा देहाट, चोंचा बंगाल इटा में कुछ इलाके हैं। एटाह पूर्व में शितालपुर ब्लॉक से घिरा हुआ है, पश्चिम की तरफ निधाउली कलान ब्लॉक, दक्षिण की तरफ साकिट ब्लॉक, उत्तर दिशा में मारेरा ब्लॉक।

एटा, सिकंदरा राव, सहवार, सोरोन इटाह के नजदीकी शहर हैं।

एटा कैसे पहुंचे

रेल द्वारा

एटा रेलवे स्टेशन, ज्वहरपुर कामसन रेल वे स्टेशन इटाह के बहुत पास के रेलवे स्टेशन हैं। अलीगढ़ जेएन रेल वे स्टेशन एटा के नजदीक 76 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है

हिंदी यहां स्थानीय भाषा है।

एटा में राजनीति

बीजेपी, एसपी, बीएसपी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।

एटा के पास मतदान केंद्र / बूथ

1) कार्यलय उपनिवेशक कृष्ण प्रसार इटाह आरएन .2

2) P.p। होली दारवाजा एटा हॉल 3

3) बायकुन्ठी देवी अग्रवाल शिक्षा निकेतन कैलाशगंज एटा हॉल उत्तर दिषा

4) U.p.v.dalelpur

5) वाचनाले मेहता पार्क एटा आरएनओ। १

एटा संसदीय क्षेत्र के मौजूदा सांसद 

माननीय राजवीर सिंह बीजेपी संपर्क न. 

एटा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा विधायक 

माननीय विपिन कुमार बीजेपी संपर्क न. 9837237917।

इटा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल।

निधौली कला, साकिट, शितालपुर, एटा

एटा विधानसभा क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।

2012  आशीष कुमार यादव एसपी 39282 = 3244 गजेंद्र सिंह बबलू बीएसपी  36038

2007  प्रजापलन बीजेपी 48529 = 20928 शिशुपाल सिंह एसपी 27601

2002  शिशु पाल सिंह यादव एसपी 3522 9 = 11072 भारत सिंह वर्मा बीएसपी  24157

1996  शिशु पाल सिंह यादव एसपी 54860 = 7190 पीतम सिंह बीजेपी 47670

1993  पितम सिंह बीजेपी 54073 =5652 अटार सिंह एस एसपी 48421

1991  पितम सिंह बीजेपी 38227 = 10860 अटार सिंह यादव जेपी 27367

1989 अटार सिंह यादव जेडी 32140 = 9031 हंसराज सिंह कांग्रेस 2310 9

1985  अटार सिंह यादव एलकेडी 22237 = 2632 गंगप्रसाद जेएनपी 1960

1980  कैलाश चंद्र  कांग्रेस  30043 = 8378 गंगा प्रसाद जेएनपी (जेपी) 21665

1977  गंगा प्रसाद जेएनपी 27271 =13261 बदन सिंह IND IND IND 14010

1974  गंगा प्रसाद एनसीओ 32522 = 2670 नवाब सिंह यादव कांग्रेस 29852

1969  गंगा प्रसाद कांग्रेस   28775 = 2933 देवराज बीजेएस 25872

1967  ग.प्रसाद  स्व  18,295 = 3068 प.सिंह  ब्जस    15227

1962  गंगा प्रसाद एचएमएस 18878 = 9846 सहदेव सिंह कांग्रेस  9032

1957  गंगा प्रसाद निर्दलीय  14626 = 1166 गिरधर गोपाल कांग्रेस 13460

1951  होती लाल दास कांग्रेस 13630 = 5754 परेश्वरी दयाल बीजेएस 7876

शहरों के नजदीक

एटा 0 किलोमीटर निकट

सिकंदरा राव के पास 33 किलोमीटर दूर

Sahawar 36 किमी निकट

सोरॉन 43 किमी निकट

तालुक के पास

एटा 0 किलोमीटर निकट

शितालपुर 9 किमी निकट

निधाउली कलान 13 किलोमीटर दूर

सर्किट  16 किमी निकट

एयर पोर्ट्स के पास

खेरिया एयरपोर्ट 91 किमी निकटतम

ग्वालियर एयरपोर्ट 164 किलोमीटर निकट है

पंतनगर हवाई अड्डे के पास 203 किलोमीटर दूर है

इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास 211 किलोमीटर 

पर्यटक स्थलों के पास

अलीगढ़ 75 किलोमीटर दूर है

आगरा 86 किमी निकट

वृंदावन 106 किमी निकट

मथुरा 109 किमी के पास

फतेहपुर सीकरी 124 किलोमीटर 

जिलों के पास

एटा 0 किलोमीटर निकट

कानसिराम नगर 30 किलोमीटर दूर

मेनपुरी 56 किमी निकट

फिरोज़ाबाद 58 किलोमीटर दूर है

रेलवे स्टेशन के पास

एटा रेल मार्ग स्टेशन 1.7 किमी निकट

ज्वहरपुर कामसन रेल वे स्टेशन 8.5 किलोमीटर दूर है

कासगंज जंक्शन रेल वे स्टेशन 2 9 किलोमीटर दूर है

हाथरस  रेल वे स्टेशन 58 किलोमीटर दूर है

विकास कार्य :

2019

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी