अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ नगर पालिका चेयरमैन/ सभासद परिचय सूची

नाम : अनस कमाल
पद : सभासद
वॉर्ड : 17 शहवाजपुर 5
पालिका/परिषद सहसवान
ज़िला : बदायूँ
राज्य : उत्तर प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017= 1244/441 वोट
सम्मान :
next month

विवरण :

introduction
Name: Honorable Anas Kamal
Designation: Member
Ward no : 17 Shahawazpur 5
Municipality Council: Sahaswan
District: Rampur
State: Uttar Pradesh
Eligibility: Graduates
Mobail No: 9411213226
Support: NIRDALy
the residence:
Language: Hindi and Urdu
Language : Hindi and Urdu 
Current Time 08:50 PM 
Date: Saturday , Jan 05,2019 (IST) 
Telephone Code / Std Code: 05833 
Vehicle Registration Number:UP-24 
RTO Office : Badaun 
Sahswan Municipality Council: Chairman Mir Hadi Ali (NIR) Contact Number: 9837084498
Assembly constituency : 113-Sahaswan assembly constituency 
Assembly MLA : Omkar Singh (SP) 9458500750
Lok Sabha constituency : Badaun parliamentary constituency 
Parliament MP : Dharmendra Yadav (SP) 09720170999 (M)
Pin Code : 243638
Post Office Name : Sahaswan
 
वार्ड न. 17 - शहवाजपुर5  सभासद संक्षिप्त जीवनी 
नगर पालिका परिषद् सहसवान में वार्ड सभासदों का चयन करने के लिए हर पांच साल में चुनाव होते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों को नामित करते हैं और संबंधित वार्ड के लोग अपने वार्ड के लिए सभासद का चुनाव करने के लिए चुनाव के दौरान अपना वोट डालते हैं। नगर पालिका वार्ड न. 17 -  शहवाजपुर 5 में कुल 1941 मतदाता हैं,  निकाय चुनाव 2017 में निर्दलीय समर्थित नगर पालिका सभासद पद पर माननीय अनस कमाल जी ने कुल पड़े मत संख्या 1244 में से (441)  मत प्राप्त कर 
2 = खलीक अहमद = निर्दलीय  (279) को 162 मतों से हराकर चुनाव जीता, 
3 = रोहित = भारतीय जनता पार्टी (176) मत पाकर जमानत जब्त होकर तीसरे स्थान पर रहे ,
सहसवान नगर पालिका के बारे में 
सहसवान नगर पालिका नागरिक बुनियादी ढांचे और प्रशासन के लिए जिम्मेदार नगर निगम है। संगठन, संक्षेप में,आरएमसी के रूप में जाना जाता है। यह नागरिक प्रशासनिक निकाय शहर की स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य और पार्कों जैसी अन्य सार्वजनिक सेवाओं का प्रबंधन करता है। आमतौर पर यह एक शहर, कस्बे या गांव, या उनमें से छोटे समूह रूप में होता है। में नगरपालिका अध्यक्ष ही प्रशासनिक अध्यक्ष होता है। वर्तमान नगर पालिका परिषद् में कुल जिसमें 25 वार्ड और 50386 मतदाता हैं,
निकाय चुनाव 2017 में नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष पद पर निर्दलीय समर्थित माननीय मीर हादी अली उर्फ बाबर मियाँ ने कुल पड़े मत संख्या (29838) में से 9576 , 33.39 प्रतिशत मत प्राप्त कर भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार 
2-  अनुज = भारतीय जनता पार्टी (7028) 24.51 को 2548 मतों से हराकर चुनाव जीता 
3- नूर उददीन  (6022)  21 प्रतिशत मत प्राप्त तीसरे स्थान 
4- राशिद हुसैन = समाजवादी पार्टी (4147) 14.46 प्रतिशत मत प्राप्त कर चौथे स्थान पर रहे जमानत जब्त हो गयी 
सहसवान का इतिहास 
** वर्ष 1801 में जिला अंग्रेजों के चंगुल में आ गया था। 1823 में अंग्रेजों ने सहसवान को जिला बनाकर वर्चस्व स्थापित कर लिया और 1855 में सहसवान की जगह बदायूं को जिला बनाकर कामकाज शुरू कर दिया। उस समय जिले को पांच तहसीलों सदर, दातागंज, बिसौली, गुन्नौर और सहसवान में बांटा गया था। इन तहसीलों में बांटे गए अलग-अलग क्षेत्रों में लगान वसूलने के लिए बोली लगाकर ठेके दिए जाते थे।
सबसे पहली बार 1803 में तीन साल के लिए बंदोबस्त का इंतजाम कराया गया था। वसूली से संबंधित काम तहसीलदारों की निगरानी में हुआ करता था। उस समय तहसीलदारों को वेतन नहीं दिया जाता था। कमीशन पर काम लिया जाता था। बाद में यह सब काम तहसीलदारों से हटाकर बोर्ड ऑफ रेवन्यू के सुपुर्द कर दिया गया।
1834 से 1837 तक दोबारा बंदोबस्त कराया गया। उसके बाद 1864 से 1870 में गवर्मेंट की मालगुजारी निर्धारित की गई। 1871 के बाद से गांवों की वसूली भी शुरू� कर दी गई।
अंग्रेजों के समय बदायूं में 13 पुलिस स्टेशन बनाए गए थे। बाद में इनकी संख्या 16 कर दी गई। बदायूं, बिनावर, उझानी, कादरचौक, बिसौली, वजीरगंज, इस्लामनगर, गुन्नौर, रजपुरा, सहसवान, बिल्सी, उघैती, जरीफनगर, दातागंज, उसहैत, अलापुर, हजरतपुर और मूसाझाग उसी समय के थाने हैं। इस समय 21 थाने और 51 पुलिस चौकियां हैं। 1840 में ही बन गई थी जेल बदायूूं में जेल की स्थापना 1840 में हुई, जो आगे चलकर नाकाफी रही। 1857 के विद्रोह में यह जेल नष्ट कर दी गई थी। विद्रोह शांत होने के बाद इसका जीर्णोद्धार कराया गया। अब इसे यहां से हटाने का प्रयास चल रहे हैं।� पहले बदायूं और बिल्सी ही थी म्युनिस्पिलटी बदायूं और बिल्सी में 1862 में म्युनिस्पिलटी की स्थापना हुई। इसके बाद 1866 में उझानी और 1872 में सहसवान को यह दर्जा मिला। इस समय जिले में छह नगरपालिका और 14 नगर पंचायतें हैं। उप्र के एक्ट 1906 के अनुसार बदायूं में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की स्थापना की गई। 1846 में चंदा से बनवाया गया था जिला अस्पताल बदायूं में 1846 में पहला अस्पताल बना। यह जिले के लोगों ने चंदा करके बनवाया था। बाद में इसे सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद गुन्नौर, बिसौली और दातागंज के अलावा सहसवान में भी अस्पताल खोले गए।
मोहम्मद इमरान खान द्वारा विकपीडीया पर दिया गया लेख **
जनसांख्यिकी
2011 की भारत की जनगणना के अनुसार, [2] सहसवान की जनसंख्या ६६,२० (२००१ में ५ India,१ ९ ४ (३] की तुलना में) थी, जो २००१-११ में १३.% थी। ३४,४६ mal पुरुषों और ३१,37३ महिलाओं के लिंगानुपात ९१२ के राज्य अनुपात की तुलना में ९१२ थे। छह (१६.५ ९%) के तहत १०, ९ ४ बच्चे थे। सहसवान की औसत साक्षरता दर 39.61% थी, जो राज्य के औसत 67.58% से बहुत कम थी।
सहसवान में धर्म 
धर्म प्रतिशत
हिंदुओं = 30.98%
मुसलमानों = 68.50%
ईसाइयों = 0.44%
दूसरों † = 0.08%
धर्मों का वितरण
† में सिख (0.01%), बौद्ध (0.02%), 0.06% शामिल नहीं हैं
उल्लेखनीय लोग
इनायत हुसैन खान (1849-1919), हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायक
मुश्ताक हुसैन खान (1878-1964), हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत गायक
सहसवान कैसे पहुंचे
रेल द्वारा
10 किमी में सहसवान के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। सहवान के पास अलीगढ़ रेलवे स्टेशन 78 किलोमीटर दूर प्रमुख रेलवे स्टेशन है
शहरों के नजदीक
सहसवान 1 किमी 
सोरोन 21 किमी 
सहावर  33 किलोमीटर 
बदायूं 39 किमी 
तालुक के पास
सहसवान 6 किमी 
दहगवां 10 किलोमीटर
सोरोन 23 किमी 
अंबियापुर 23 किमी 
एयर पोर्ट्स के पास
पंतनगर हवाई अड्डे के पास 142 किलोमीटर
खेरिया एयरपोर्ट 143 किलोमीटर 
इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे 1 9 1 किमी 
पर्यटक स्थलों के पास
अलीगढ़ 78 किलोमीटर
मोरादाबाद 94 किमी
बुलंदशहर 107 किमी 
वृंदावन 132 किमी 
जिलों के पास
कानसिराम नगर 35 किमी 
बुड़ाऊं  39 किमी 
एटाह 64 किलोमीटर
अलीगढ़ 78 किलोमीटर 
रेलवे स्टेशन के पास
कासगंज जंक्शन रेलवे स्टेशन 36 किलोमीटर 
चंदौसी  रेलवे स्टेशन 48 किलोमीटर
सहसवान में राजनीति
जेडी (यू), आरपीडी, एसपी, बीएसपी इस क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक दलों हैं।
सहसवान के पास मतदान केंद्र / बूथ
1) प्रमोद इंटर कॉलेज वेस्ट पार्ट रूम नं .3
2) प्रमोद संस्कार महा विद्यालय वास्ट पार्ट कक्ष संख्या 1
3) प्रमोद संस्कार महा विद्यालय वास्ट पार्ट कक्ष संख्या 2
4) नेहरू इंटर कॉलेज दक्षिण भाग रुडायन कक्ष संख्या 8
5) पन्ना लाल आईसी सहसवान ईस्ट पार्ट रूम नं .6
संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के मौजूदा सांसद
माननीय धर्मेंद्र यादव समाजवादी पार्टी संपर्क न. 09720170999 (M)
सहसवान विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के वर्तमान  विधायक।
माननीय ओमकर सिंह समाजवादी पार्टी समपर्क  न. 9458500750  हैं
सहसवान विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में मंडल।
अम्बियापुर, बिसौली, दहगँवा, जनाबाई,सहसवान वजीरगंज
सहसवान विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक जीतने का इतिहास।
2012  ओमकर सिंह एसपी 72946 = 7027 मीर हादी अली बीएसपी 65 919
2007  डीपी यादव आरपीडी 33883 = 109 ओमकर सिंह एसपी  33774
2002 ओमकर सिंह यादव एसपी 57050 = 13330 शामा अली जेडी (यू) 43720
1997 ओमकर सिंह एसपी 63802 = 25537 मीर। यूसुफ अली बीएसपी 38265
1996 मुलायम सिंह यादव एसपी 81370 5415 9 महेश चंद बीजेपी 27211
1993 मीर मजहर अली एसपी 46078 = 13212 ओमकर सिंह जेडी 32866
1991 ओमकर सिंह जेडी 42416 = 22109 मीर मजहर अली  जेपी 20307
1990 मजहर अली निर्दलीय  36705 = 14170 नरेश प्रताप सिंह कांग्रेस  22535
1985 नरेश पाल सिंह यादव एलकेडी 4030 9 = 5187 अफजल अली कांग्रेस  35122
1980  मीर मिजहर अली कांग्रेस 24559 = 6942 नरेश पाल सिंह यादव जेएनपी 18017
1977नरेश पाल सिंह यादव जेएनपी 16622 = 4813 पाटी राम यादव कांग्रेस 11809
1974 शांति देवी बीकेडी 21086 = 6692 अशरफी लाल बीजेएस 14394
1969  शांति देवी बीकेडी 18260 = 4593 महेश चंद कांग्रेस 13667
1967  ए लाल बीजेएस 26445 10523 एम एम अली कांग्रेस 15922
1962 उलफाट सिंह जेएस 11588 = 1376 मुश्ताक अली खान कांग्रेस10212
1957  उलफाट सिंह निर्दलीय  9885 = 581 मुश्ताक अली कांग्रेस 9304

विकास कार्य :

माननीय पार्षद जी ने विकास कार्य सूचि उपलब्ध नहीं कराई गयी है जल्दी ही प्रकाशित की जाएगी 

अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जीवन परिचय,
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला ख़ाँ था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफ़ाक़ ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एस. जे. एम. (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।
बचपन से इन्हें खेलने, तैरने, घुड़सवारी और बन्दुक चलने में बहुत मजा आता था। इनका कद काठी मजबूत और बहुत सुन्दर था। बचपन से ही इनके मन देश के प्रति अनुराग था। देश की भलाई के लिये चल रहे आंदोलनों की कक्षा में वे बहुत रूचि से पढाई करते थे। धीरे धीरे उनमें क्रांतिकारी के भाव पैदा हुए। वे हर समय इस प्रयास में रहते थे कि किसी ऐसे व्यक्ति से भेंट हो जाय जो क्रांतिकारी दल का सदस्य हो।
अपने चार भाइयो में अशफाकुल्ला सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई रियासत उल्लाह खान पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के सहकर्मी थे। जब मणिपुर की घटना के बाद बिस्मिल को भगोड़ा घोषित किया गया तब रियासत अपने छोटे भाई अश्फाक को बिस्मिल की बहादुरी के किस्से सुनाते थे। तभी से अश्फाक को बिस्मिल से मिलने की काफी इच्छा थी, क्योकि अश्फाक भी एक कवी थे और बिस्मिल भी एक कवी ही थे। जब मैनपुरी केस के दौरान उन्हें यह पता चला कि राम प्रसाद बिस्मिल उन्हीं के शहर के हैं तो वे उनसे मिलने की कोशिश करने लगे। 1920 में जब बिस्मिल शाहजहाँपुर आये और जब उन्होंने स्वयं को व्यापार में वस्त कर लिया, तब अश्फाक ने बहोत सी बार उनसे मिलने की कोशिश की थी लेकिन उस समय बिस्मिल ने कोई ध्यान नही दिया था।
1922 में जब नॉन-कोऑपरेशन (असहयोग आन्दोलन) अभियान शुरू हुआ और जब बिस्मिल ने शाहजहाँपुर में लोगो को इस अभियान के बारे में बताने के लिये मीटिंग आयोजित की तब एक पब्लिक मीटिंग में अशफाकुल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई थी धीरे धीरे वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आये और उन्होंने बिस्मिल को अपने परिचय भी दिया की वे अपने सहकर्मी के छोटे भाई है। उन्होंने बिस्मिल को यह भी बताया की वे अपने उपनाम 'वारसी' और 'हसरत' से कविताये भी लिखते है। बाद में उनके दल के भरोसेमंद साथी बन गए। इस तरह से वे क्रांतिकारी जीवन में आ गए। बाद में कुछ समय तक साथ रहने के बाद अश्फाक और बिस्मिल भी अच्छे दोस्त बन गये। अश्फाक जब भी कुछ लिखते थे तो तुरंत बिस्मिल को जाकर दिखाते थे और बिस्मिल उनकी जांच कर के गलतियों को सुधारते भी थे। कई बाद तो बिस्मिल और अश्फाक के बीच कविताओ और शायरियो की जुगलबंदी भी होती थी, जिसे उर्दू भाषा में मुशायरा भी कहा जाता है।
वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे उनके लिये मंदिर और मस्जिद एक समान थे। एक बार शाहजहाँपुर में हिन्दू और मुसलमान आपस में झगड़ गए और मारपीट शुरू हो गयी। उस समय अशफाक बिस्मिल के साथ आर्य समाज मन्दिर में बैठे हुए थे। कुछ मुसलमान मंदिर पर आक्रमण करने की फ़िराक में थे। अशफाक ने फ़ौरन पिस्तौल निकाल लिया और गरजते हुए बोले 'मैं भी कट्टर मुस्लमान हूँ लेकिन इस मन्दिर की एक एक ईट मुझे प्राणों से प्यारी हैं। मेरे लिये मंदिर और मस्जिद की प्रतिष्ठा बराबर है। अगर किसी ने भी इस मंदिर की नजर उठाई तो मेरी गोली का निशाना बनेगा। अगर तुम्हें लड़ना है तो बाहर सड़क पर जाकर खूब लड़ो।' यह सुनकर सभी के होश उड़ गए और किसी का साहस नहीं हुआ कि उस मंदिर पर हमला करे।
अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका कर मार दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ भी उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर थे। उनका उर्दू तखल्लुस, जिसे हिन्दी में उपनाम कहते हैं, हसरत था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में लेख एवं कवितायें भी लिखा करते थे। उनका पूरा नाम अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरत था। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सम्पूर्ण इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम आख्यान है।
1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में जली कोठी के नाम से मशहूर है। बहरहाल अशफ़ाक़ ने अपनी कुरबानी देकर ननिहाल वालों के नाम पर लगे उस बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिये धो डाला।
राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती :-
चौरी-चौरा कांड के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना असयोग आंदोलन वापस ले लिया था, तब हजारों की संख्या में युवा खुद को धोखे का शिकार समझ रहे थे। अशफ़ाक उल्ला खां उन्हीं में से एक थे। उन्हें लगा अब जल्द से जल्द भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलनी चाहिए। इस उद्देश्य के साथ वह शाहजहांपुर के प्रतिष्ठित और समर्पित क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के साथ जुड़ गए।
आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना ही था। यही कारण है कि जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए। धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई।
काकोरी कांड
जब क्रांतिकारियों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों से विनम्रता से बात करना या किसी भी प्रकार का आग्रह करना फिजूल है तो उन्होंने विस्फोटकों और गोलीबारी का प्रयोग करने की योजना बनाई। इस समय जो क्रांतिकारी विचारधारा विकसित हुई वह पुराने स्वतंत्रता सेनानियों और गांधी जी की विचारधारा से बिलकुल उलट थी। लेकिन इन सब सामग्रियों के लिए अधिकाधिक धन की आवश्यकता थी। इसीलिए राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी सरकार के धन को लूटने का निश्चय किया। उन्होंने सहारनपुर-लखनऊ 8 डाउन पैसेंजर ट्रेन में जाने वाले धन को लूटने की योजना बनाई। 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा।
ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों के इस बहादुरी भरे कदम से भौंचक्की रह गई थी। इसलिए इस बात को बहुत ही सीरियसली लेते हुए सरकार ने कुख्यात स्कॉटलैंड यार्ड को इसकी तफ्तीश में लगा दिया। एक महीने तक CID ने भी पूरी मेहनत से एक-एक सुबूत जुटाए और बहुत सारे क्रांतिकारियों को एक ही रात में गिरफ्तार करने में कामयाब रही। 26 सितंबर 1925 को पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को भी गिरफ्तार कर लिया गया। और सारे लोग भी शाहजहांपुर में ही पकड़े गए। पर अशफाक बनारस भाग निकले। जहां से वो बिहार चले गए। वहां वो एक इंजीनियरिंग कंपनी में दस महीनों तक काम करते रहे। वो गदर क्रांति के लाला हरदयाल से मिलने विदेश भी जाना चाहते थे।
अपने क्रांतिकारी संघर्ष के लिए अशफाक उनकी मदद चाहते थे। इसके लिए वो दिल्ली गए जहां से उनका विदेश जाने का प्लान था। पर उनके एक अफगान दोस्त ने, जिस पर अशफाक को बहुत भरोसा था, उन्हें धोखा दे दिया। और अशफाक को गिरफ्तार कर लिया गया।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी