वासुदेव बलवंत फडके ब्लॉक अध्यक्ष/ बी.डी.सी. सदस्य परिचय सूची

नाम : मा. प्रज्वल बस्टा
पद : पंचायत समिति अध्यक्ष
वॉर्ड : 00
ब्लॉक जुब्बल कोटखाई
ज़िला : शिमला
राज्य : हिमाचल प्रदेश
पार्टी : निर्दलीय
चुनाव : 2017 234 वोट
सम्मान :
NA

विवरण :

introduction
Name: Honorable prjawal Basta
Designation: Panchayat Samiti Chairperson
Supporters  : NA
Eligibility  : Graduate
Mobile No.  : NA
E-Mail id : NA
Locality Name : Jubbal Kotkhai
Tehsil Name : Jubbal Kotkhai
District : Shimla
State : Himachal Pradesh
Language : Pahari and Hindi, Punjabi
Current Time 05:03 PM
Date: Tuesday , Feb 04,2020 (IST)
Telephone Code / Std Code: 01783
Vehicle Registration Number:HP-03,HP-06,HP-07,HP-08,HP-09,HP-10,HP-51 & HP-52,HP-63
RTO Office : Chaupal,Rampur
Assembly constituency : Jubbal-Kotkhai assembly constituency
Assembly MLA : narinder bragta
Lok Sabha constituency : Shimla parliamentary constituency
Parliament MP : SURESH KUMAR KASHYAP
Serpanch Name : Jagdish


जुब्बल कोटखाई पंचायत समिति के बारे में
जुब्बल कोटखाई भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के शिमला जिले में एक तहसील है। जुब्बल कोटखाई तहसील हेड क्वार्टर जुब्बल कोटखाई शहर है। यह जिला मुख्यालय शिमला से पूर्व की ओर 48 KM दूर स्थित है। राज्य की राजधानी शिमला से पश्चिम की ओर 48 कि.मी.

जुब्बल कोटखाई तहसील उत्तर की ओर रोहड़ू तहसील, पश्चिम की ओर ठियोग तहसील, दक्षिण की ओर चौपाल तहसील, उत्तर की ओर नानखरी तहसील से घिरा है। शिमला सिटी, सोलन सिटी, नाहन सिटी, कालका सिटी जुब्बल कोटखाई के नज़दीकी शहर हैं।

जुब्बल कोटखाई में 307 गाँव और 49 पंचायतें हैं। यह 2086 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है।

हटकोटी, नारकंडा, कुफरी, मशोबरा, रामपुर महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों के पास हैं।
जुब्बल कोटखाई तहसील की जनसांख्यिकी
पहाड़ी यहां की स्थानीय भाषा है। इसके अलावा लोग हिंदी, पंजाबी बोलते हैं। जुब्बल कोटखाई तहसील की कुल आबादी 6,990 घरों में 33,649 है, जो कुल 307 गांवों और 49 पंचायतों में फैले हुए हैं। नर 17,323 और मादा 16,326 हैं
कुल 1,346 व्यक्ति शहर में और 32,303 ग्रामीण रहते हैं।

जुब्बल कोटखाई तहसील में राजनीति
HVC, BJP, INC इस क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक दल हैं।
जुब्बल कोटखाई तहसील कई विधानसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आती है। जुब्बल कोटखाई तहसील में कुल 2 विधानसभा क्षेत्र हैं।

चपल बलबीर सिंह वर्मा
जुब्बल-कोटखाई

जुब्बल कोटखाई तहसील शिमला संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है, वर्तमान सांसद सांसद श्री कुमार कश्यप हैं।

जुब्बल कोटखाई पंचायत समिति कैसे पहुचें
रेल द्वारा
10 किमी से कम दूरी में जुब्बल कोटखाई तहसील के पास कोई रेलवे स्टेशन नहीं है।

जुब्बल कोटखाई तहसील के पिन कोड
171204 (किरारी), 171216 (मंडल (शिमला)), 171202 (कोटखाई), 171225 (बागी (शिमला)), 171206 (हाटकोटी), 171205 (जुब्बल, 171220 (छैला), 171215 (मंधोल), 171019 (जलयोग)

आस पास के शहर
शिमला 46 KM
सोलन 61 KM
नाहन 75 KM
कालका 79 कि.मी.

तालुकों के पास
जुब्बल कोटखाई 0 KM
रोहड़ू 15 KM
Theog 22 KM
चौपाल 23 कि.मी.

एयर पोर्ट्स के पास
सिमला एयरपोर्ट 49 KM
चंडीगढ़ एयरपोर्ट 101 KM
देहरादून हवाई अड्डा 107 KM
भुंतर हवाई अड्डा 122 KM

जिले के पास
शिमला 46 KM
सोलन 58 KM
सिरमौर 75 KM
किन्नौर 89 कि.मी.

रेल्वे स्टेशन के पास
कालका रेल मार्ग स्टेशन 79 KM
चंडी मंदिर रेल मार्ग स्टेशन 90 KM 

विकास कार्य :

NA
वासुदेव बलवन्त फड़के जीवनी
पूरा नाम - वासुदेव बलवन्त फड़के
जन्म - 4 नवम्बर, 1845 ई.
जन्म भूमि - शिरढोणे गांव, रायगड ज़िला, महाराष्ट्र
मृत्यु - 17 फ़रवरी, 1883 ई.
कर्म भूमि - भारत
प्रसिद्धि - स्वतंत्रता सेनानी
नागरिकता - भारतीय

वासुदेव बलवन्त फड़के (अंग्रेज़ी:Vasudev Balwant Phadke, जन्म- 4 नवम्बर, 1845 ई. 'महाराष्ट्र' तथा मृत्यु- 17 फ़रवरी, 1883 ई. 'अदन') ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का संगठन करने वाले भारत के प्रथम क्रान्तिकारी थे। वासुदेव बलवन्त फड़के का जन्म महाराष्ट्र के रायगड ज़िले के 'शिरढोणे' नामक गांव में हुआ था। फड़के ने 1857 ई. की प्रथम संगठित महाक्रांति की विफलता के बाद आज़ादी के महासमर की पहली चिंंनगारी जलायी थी। देश के लिए अपनी सेवाएँ देते हुए 1879 ई. में फड़के अंग्रेज़ों द्वारा पकड़ लिये गए और आजन्म कारावास की सज़ा देकर इन्हें अदन भेज दिया गया। यहाँ पर फड़के को कड़ी शारीरिक यातनाएँ दी गईं। इसी के फलस्वरूप 1883 ई. को इनकी मृत्यु हो गई। परिचय
वासुदेव बलवन्त फड़के बड़े तेजस्वी और स्वस्थ शरीर के बालक थे। उन्हें वनों और पर्वतों में घूमने का बड़ा शौक़ था। कल्याण और पूना में उनकी शिक्षा हुई। फड़के के पिता चाहते थे कि वह एक व्यापारी की दुकान पर दस रुपए मासिक वेतन की नौकरी कर लें और पढ़ाई छोड़ दें। लेकिन फड़के ने यह बात नहीं मानी और मुम्बई आ गए। वहाँ पर जी.आर.पी. में बीस रुपए मासिक की नौकरी करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। 28 वर्ष की आयु में फड़के की पहली पत्नी का निधन हो जाने के कारण इनका दूसरा विवाह किया गया।
व्यावसायिक जीवन
विद्यार्थी जीवन में ही वासुदेव बलवन्त फड़के 1857 ई. की विफल क्रान्ति के समाचारों से परिचित हो चुके थे। शिक्षा पूरी करके फड़के ने 'ग्रेट इंडियन पेनिंसुला रेलवे' और 'मिलिट्री फ़ाइनेंस डिपार्टमेंट', पूना में नौकरी की। उन्होंने जंगल में एक व्यायामशाला बनाई, जहाँ ज्योतिबा फुलेभी उनके साथी थे। यहाँ लोगों को शस्त्र चलाने का भी अभ्यास कराया जाता था। लोकमान्य तिलक ने भी वहाँ शस्त्र चलाना सीखा था।
गोविन्द रानाडे का प्रभाव
1857 की क्रान्ति के दमन के बाद देश में धीरे-धीरे नई जागृति आई और विभिन्न क्षेत्रों में संगठन बनने लगे। इन्हीं में एक संस्था पूना की 'सार्वजनिक सभा' थी। इस सभा के तत्वावधान में हुई एक मीटिंग में 1870 ई. में महादेव गोविन्द रानाडे ने एक भाषण दिया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि अंग्रेज़ किस प्रकार भारत की आर्थिक लूट कर रहे हैं। इसका फड़के पर बड़ा प्रभाव पड़ा। वे नौकरी करते हुए भी छुट्टी के दिनों में गांव-गांव घूमकर लोगों में इस लूट के विरोध में प्रचार करते रहे।
माता की मृत्यु
1871 ई. में एक दिन सायंकाल वासुदेव बलवन्त फड़के कुछ गंभीर विचार में बैठे थे। तभी उनकी माताजी की तीव्र अस्वस्थता का तार उनको मिला। इसमें लिखा था कि 'वासु' (वासुदेव बलवन्त फड़के) तुम शीघ्र ही घर आ जाओ, नहीं तो माँ के दर्शन भी शायद न हो सकेंगे। इस वेदनापूर्ण तार को पढ़कर अतीत की स्मृतियाँ फ़ड़के के मानस पटल पर आ गयीं और तार लेकर वे अंग्रेज़ अधिकारी के पास अवकाश का प्रार्थना-पत्र देने के लिए गए। किन्तु अंग्रेज़ तो भारतीयों को अपमानित करने के लिए सतत प्रयासरत रहते थे। उस अंग्रेज़ अधिकारी ने अवकाश नहीं दिया, लेकिन वासुदेव बलवन्त फड़के दूसरे दिन अपने गांव चले आए। गांव आने पर वासुदेव पर वज्राघात हुआ। जब उन्होंने देखा कि उनका मुंह देखे बिना ही तड़पते हुए उनकी ममतामयी माँ चल बसी हैं। उन्होंने पांव छूकर रोते हुए माता से क्षमा मांगी, किन्तु अंग्रेज़ी शासन के दुव्यर्वहार से उनका हृदय द्रवित हो उठा।
सेना का संगठन
इस घटना के वासुदेव फ़ड़के ने नौकरी छोड़ दी और विदेशियों के विरुद्ध क्रान्ति की तैयारी करने लगे। उन्हें देशी नरेशों से कोई सहायता नहीं मिली तो फड़के ने शिवाजी का मार्ग अपनाकर आदिवासियों की सेना संगठित करने की कोशिश प्रारम्भ कर दी। उन्होंने फ़रवरी 1879 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी। धन-संग्रह के लिए धनिकों के यहाँ डाके भी डाले। उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में घूम-घूमकर नवयुवकों से विचार-विमर्श किया, और उन्हें संगठित करने का प्रयास किया। किन्तु उन्हें नवयुवकों के व्यवहार से आशा की कोई किरण नहीं दिखायी पड़ी। कुछ दिनों बाद 'गोविन्द राव दावरे' तथा कुछ अन्य युवक उनके साथ खड़े हो गए। फिर भी कोई शक्तिशाली संगठन खड़ा होता नहीं दिखायी दिया। तब उन्होंने वनवासी जातियों की ओर नजर उठायी और सोचा आखिर भगवान श्रीराम ने भी तो वानरों और वनवासी समूहों को संगठित करके लंका पर विजय पायी थी। महाराणा प्रताप ने भी इन्हीं वनवासियों को ही संगठित करके अकबर को नाकों चने चबवा दिए थे। शिवाजी ने भी इन्हीं वनवासियों को स्वाभिमान की प्रेरणा देकर औरंगज़ेब को हिला दिया था।
ईनाम की घोषणा
महाराष्ट्र के सात ज़िलों में वासुदेव फड़के की सेना का ज़बर्दस्त प्रभाव फैल चुका था। अंग्रेज़ अफ़सर डर गए थे। इस कारण एक दिन मंत्रणा करने के लिए विश्राम बाग़ में इकट्ठा थे। वहाँ पर एक सरकारी भवन में बैठक चल रही थी। 13 मई, 1879 को रात 12 बजे वासुदेव बलवन्त फड़के अपने साथियों सहित वहाँ आ गए। अंग्रेज़ अफ़सरों को मारा तथा भवन को आग लगा दी। उसके बाद अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर पचास हज़ार रुपए का इनाम घोषित किया। किन्तु दूसरे ही दिन मुम्बई नगर में वासुदेव के हस्ताक्षर से इश्तहार लगा दिए गए कि जो अंग्रेज़ अफ़सर 'रिचर्ड' का सिर काटकर लाएगा, उसे 75 हज़ार रुपए का इनाम दिया जाएगा। अंग्रेज़ अफ़सर इससे और भी बौखला गए।
गिरफ़्तारी
1857 ई. में अंग्रेज़ों की सहायता करके जागीर पाने वाले बड़ौदा के गायकवाड़ के दीवान के पुत्र के घर पर हो रहे विवाह के उत्सव पर फड़के के साथी दौलतराम नाइक ने पचास हज़ार रुपयों का सामान लूट लिया। इस पर अंग्रेज़ सरकार फड़के के पीछे पड़ गई। वे बीमारी की हालत में एक मन्दिर में विश्राम कर रहे थे, तभी 20 जुलाई, 1879 को गिरफ़्तार कर लिये गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजन्म कालापानी की सज़ा देकर फड़के को 'अदन' भेज दिया गया।
निधन
अदन पहुँचने पर फड़के भाग निकले, किन्तु वहाँ के मार्गों से परिचित न होने के कारण पकड़ लिये गए। जेल में उनको अनेक प्रकार की यातनाएँ दी गईं। वहाँ उन्हें क्षय रोग भी हो गया और इस महान् देशभक्त ने 17 फ़रवरी, 1883 ई. को अदन की जेल के अन्दर ही प्राण त्याग दिए।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फडके के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी