चंद्रशेखर आज़ाद ईमानदार अधिकारी कर्मचारी परिचय सूची

नाम :
आई. आर. वाला
पद :
सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम)
विभाग :
गुजरात प्रदेश शासन
नियुक्त :
वीरमगाम
जन्मभूमि/निवास :
वीरमगाम
नगर/ब्लॉक :
वीरमगाम
जनपद :
अहमदाबाद
राज्य :
गुजरात
सम्मान : NA
विवरण : introduction
Name : I. R. Vala
Designation : Sub Divisional Magistrate(SDM)
Appointment : Viramgam
Telephone No : 2715295042
E-Mail id : sdm-viramgam-ahd[at]gujrat[dot]gov[dot]in
Tehsil Name : Viramgam
District : Ahmadabad
State : Gujarat
Language : Gujarati and Hindi,english
Current Time 04:37 PM
Date: Tuesday , Feb 04,2020 (IST)
Vehicle Registration Number: GJ-01,GJ-27,GJ-28
RTO Office: Ahmedabad,BOPAL Ahmedabad,
Telephone Code / Std Code: 02715
Assembly constituency : Viramgam assembly constituency
Assembly MLA : bharwad lakhabhai bhikhabhai
Lok Sabha constituency : Surendranagar parliamentary constituency
Parliament MP : Dr. MUNJAPARA MAHENDRABHAI

वीरमगाम तहसील के बारे में
वीरमगाम भारत के गुजरात राज्य के अहमदाबाद जिले में एक तहसील है। यह जिला मुख्यालय अहमदाबाद के 65 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। राज्य की राजधानी गांधीनगर से पूर्व की ओर 71 कि.मी.

वीरमगाम तालुका उत्तर की ओर मंडल तालुका, पूर्व की ओर कादि तालुका, पूर्व की ओर सानंद तालुका, उत्तर की ओर डेट्रोज रामपुरा तालुका से घिरा है। वीरमगाम सिटी, सानंद सिटी, कैदी सिटी, कलोल सिटी पास के शहर हैं।

विरामगाम में 96 गाँव और 67 पंचायतें हैं। यह 28 मीटर ऊंचाई (ऊंचाई) में है।

अहमदाबाद, मोढेरा (सूर्य मंदिर, मोढेरा), सुरेंद्रनगर, गांधीनगर, मेहसाणा अन्य पर्यटन स्थलों को देखने के लिए हैं।

वीरमगाम तालुका की जनसांख्यिकी
गुजराती यहाँ की स्थानीय भाषा है। इसके अलावा लोग हिंदी, अंग्रेजी बोलते हैं। वीरमगाम तालुका की कुल आबादी 34214 घरों में रहने वाले 172,400 है, जो कुल 96 गांवों और 67 पंचायतों में फैले हुए हैं। नर 89,874 और मादा 82,526 हैं
शहर में कुल 53,094 व्यक्ति और ग्रामीण में 119,306 लोग रहते हैं।

कैसे वीरमगाम तहसील पहुंचें
रेल द्वारा
वीरमगाम जंक्शन रेलवे स्टेशन, वीरमगाम तालुका का निकटतम रेलवे स्टेशन है।

विरामगाम तालुका के पिन कोड
382140 (रामपुरा (अहमदाबाद)), 382150 (वीरमगाम), 382110 (सानंद), 382250 (पोलारपुर), 462021 (कोलुआ खुर्द), 181206 (डुमना)।

शहरों के पास
वीरमगाम 4 के.एम.
सानंद 37 केएमआर
कादी 39 के.एम.
कलोल 53 कि.मी.
    
तालुकों के पास
विरामगम ० के.एम.
मंडल 32 के.एम.
सानंद 34 के.एम.
कादी 34 के.एम.
  
एयर पोर्ट्स के पास
अहमदाबाद एयरपोर्ट 63 कि.मी.
वडोदरा एयरपोर्ट 162 KM
भावनगर एयरपोर्ट 168 KM
सिविल एयरपोर्ट 177 KM
 
जिले के पास
अहमदाबाद 63 के.एम.
गांधीनगर 68 के.एम.
सुरेन्द्रनगर 69 कि.मी.
महेसाणा 73 के.एम.

रेल्वे स्टेशन के पास
विरामगाम जंक्शन रेलवे स्टेशन 5.9 KM
साबरमती जंक्शन रेलवे स्टेशन 59 कम

विरमगाम तहसील में राजनीति
भाजपा, कांग्रेस इस क्षेत्र के प्रमुख राजनीतिक दल हैं।
वीरमगाम तालुका, वीरमगाम विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है,
वर्तमान विधायक भारतीय जनता पार्टी से लखभाई भीखाभाई ने चुनाव लड़ा और जीता

वीरमगाम तालुका, सुरेन्द्रनगर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है, मुंजपरा महाधरबा
वीरमगाम विधानसभा क्षेत्र से विधायकों के जीतने का इतिहास।
2012 = तेजश्रीबेन दिलीपकुमार पटेल कांग्रेस 84930 16983 पटेल प्रागजीभाई नारनभाई बीजेपी 67947
2007 = राठौड़ कमभाई गगजीभाई बीजेपी 47643 3316 कोली पटेल जगदीशभाई सोमाभाई INC 44327
2002 = डोडिया वजुभाई परमाभाई बीजेपी 53766 3064 वडालनी प्रेमजीभाई कांग्रेस 50702
1998 = प्रेमजीभाई वडलानी कांग्रेस 35255 6003 मच्छ जयंतीलाल पी। बीजेपी 29252
1995 = मच्छ जयंतीलाल पोपटलाल भाजपा 44065 7565 वड़लाणी प्रेमजीभाई शिवभाई कांग्रेस 36500
1990 = हरदत्तसिंह जीलुभा जडेजा (तोतमभाई) भाजपा 42056 21361 पटेल दादाभाई मियाभाई कांग्रेस 20695
1985 = कोली पटेल सोमाभाई गंगाभाई बीजेपी 26443 2446 पटेल दाउदभाई मियाँभाई कांग्रेस 23417
1980 = पटेल दाउदभाई मियांभाई कांग्रेस 20865 6312 ब्रह्मकुमार भट्ट JNP14553
1972 = कांतिभाई ईश्वरलाल पटेल NCO 25647 2423 ब्रह्मा अकुमार भट्ट कांग्रेस 23224
1967 = जी एच पटेल पटेल 25197 6455 एन एस पारिख SWA 18742
1962 = पुरुषोत्तमदास रणछोड़दास पारिख SWA 23716 36 मगनभाई रणछोड़भाई पटेल कांग्रेस 23680
सामाजिक कार्य :
NA
चंद्रशेखर आजाद जीवनी
नाम – पंडित चंद्रशेखर तिवारी।
जन्म – 23 जुलाई, 1906 भाभरा (मध्यप्रदेश)।
पिता – पंडित सीताराम तिवारी।
माता – जाग्रानी देवी।
भारतीय क्रन्तिकारी, काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने का प्रयास (1926), लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की (1928), भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्रसभा का गठन किया। चंद्रशेखर आज़ाद एक महान भारतीय क्रन्तिकारी थे। उनकी उग्र देशभक्ति और साहस ने उनकी पीढ़ी के लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में भागलेने के लिए प्रेरित किया। चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह के सलाहकार, और एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे और भगत सिंह के साथ उन्हें भारत के सबसे महान क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है।
आरंभीक जीवन:
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था। उनके पूर्वज बदरका (वर्तमान उन्नाव जिला) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। चंद्रशेखर कट्टर सनातनधर्मी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। इनके पिता नेक, धर्मनिष्ट और दीं-ईमान के पक्के थे और उनमें पांडित्य का कोई अहंकार नहीं था। वे बहुत स्वाभिमानी और दयालु प्रवर्ति के थे। घोर गरीबी में उन्होंने दिन बिताए थे और इसी कारण चंद्रशेखर की अच्छी शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई, लेकिन पढ़ना-लिखना उन्होंने गाँव के ही एक बुजुर्ग मनोहरलाल त्रिवेदी से सीख लिया था, जो उन्हें घर पर निःशुल्क पढ़ाते थे।
बचपन से ही चंद्रशेखर में भारतमाता को स्वतंत्र कराने की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। इसी कारन उन्होनें स्वयं अपना नाम आज़ाद रख लिया था। उनके जीवन की एक घटना ने उन्हें सदा के लिए क्रांति के पथ पर अग्रसर कर दिया। 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ अमृतसर में जनरल डायर ने जो नरसंहार किया, उसके विरोध में तथा रौलट एक्ट के विरुद्ध जो जन-आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, वह दिन प्रतिदिन ज़ोर पकड़ता जा रहा था।
आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए।
शिक्षाः
चन्द्रशेखर की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई। पढ़ाई में उनका कोई विशेष लगाव नहीं था। इनकी पढ़ाई का जिम्मा इनके पिता के करीबी मित्र पं. मनोहर लाल त्रिवेदी जी ने लिया। वह इन्हें और इनके भाई (सुखदेव) को अध्यापन का कार्य कराते थे और गलती करने पर बेंत का भी प्रयोग करते थे। चन्द्रशेखर के माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे किन्तु कक्षा चार तक आते आते इनका मन घर से भागकर जाने के लिये पक्का हो गया था। ये बस घर से भागने के अवसर तलाशते रहते थे। इसी बीच मनोहरलाल जी ने इनकी तहसील में साधारण सी नौकरी लगवा दी ताकि इनका मन इधर उधर की बातों में से हट जाये और इससे घर की कुछ आर्थिक मदद भी हो जाये। किन्तु शेखर का मन नौकरी में नहीं लगता था। वे बस इस नौकरी को छोड़ने की तरकीबे सोचते रहते थे। उनके अंदर देश प्रेम की चिंगारी सुलग रहीं थी। यहीं चिंगारी धीरे-धीरे आग का रुप ले रहीं थी और वे बस घर से भागने की फिराक में रहते थे। एक दिन उचित अवसर मिलने पर आजाद घर से भाग गये।
क्रांतिकारी जीवन:
1922 में जब गांधीजी ने चंद्रशेखर को असहकार आन्दोलन से निकाल दिया था तब आज़ाद और क्रोधित हो गए थे। तब उनकी मुलाकात युवा क्रांतिकारी प्रन्वेश चटर्जी से हुई जिन्होंने उनकी मुलाकात राम प्रसाद बिस्मिल से करवाई, जिन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की थी, यह एक क्रांतिकारी संस्था थी। जब आजाद ने एक कंदील पर अपना हाथ रखा और तबतक नही हटाया जबतक की उनकी त्वचा जल ना जाये तब आजाद को देखकर बिस्मिल काफी प्रभावित हुए। इसके बाद चंद्रशेखर आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य बन गए थे और लगातार अपने एसोसिएशन के लिये चंदा इकठ्ठा करने में जुट गए। उन्होंने ज्यादातर चंदा सरकारी तिजोरियो को लूटकर ही जमा किया था। वे एक नये भारत का निर्माण करना चाहते थे जो सामाजिक तत्वों पर आधारित हो। आज़ाद ने कुछ समय तक झांसी का अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बनाया था | झांसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर ओरछा के जंगलो में निशानेबाजी का अभ्यास करते रहते थे | वो अपने दल के दुसरे सदस्यों को भी निशानेबाजी के लिए प्रशिक्षित करते थे | उन्होंने सतर नदी के किनारे स्थित हनुमान मन्दिर के पास एक झोंपड़ी भी बनाई थी | आजाद वहा पर पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के सानिध्य में काफी लम्बे समय तक रहे थे और पास के गाँव धिमारपुरा के बच्चो को पढाया करते थे | इसी वजह से उन्होंने स्थानीय लोगो से अच्छे संबंध बना लिए थे | मध्य प्रदेश सरकार ने आजाद के नाम पर बाद में इस गाँव का नाम आजादपूरा कर दिया था | हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना 1924 में बिस्मिल ,चटर्जी ,चीन चन्द्र सान्याल और सचिन्द्र नाथ बक्शी द्वारा की गयी थी | 1925 में काकोरी कांड के बाद अंग्रेजो ने क्रांतिकारी गतिविधियो पर अंकुश लगा दिया था |इस काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाकउल्ला खान , ठाकुर रोशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा हो गयी थी | इस काण्ड से Chandra Shekhar Azad चंद्रशेखर आजाद ,केशव चक्रवती और मुरारी शर्मा बच कर निकल गये | चंद्रशेखर आजाद ने बाद में कुछ क्रांतिकारीयो की मदद से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को फिर पुनर्गठित किया |चन्द्रशेखर आजाद , भगवती चरण वोहरा का निकट सहयोगी था जिन्होंने 1928 में भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव की मदद से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में बदल दिया | अब उनका सिद्धांत समाजवाद के सिधांत पर स्वतंत्रता पाना मुख्य उद्देश्य था |
असहयोग आंदोलन के स्थगित होने के बाद चंद्रशेखर आज़ाद और अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी आदर्शों की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने किसी भी कीमत पर देश को आज़ादी दिलाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को निशाना बनाया जो सामान्य लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध दमनकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। चंद्रशेखर आज़ाद काकोरी ट्रेन डकैती (1926), वाइसराय की ट्रैन को उड़ाने के प्रयास (1926), और लाहौर में लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स को गोली मारने (1928) जैसी घटनाओं में शामिल थे। दिसंबर की कड़ाके वाली ठंड की रात थी और ऐसे में Chandra Shekhar Azad को ओढ़ने – बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया क्योंकि पुलिस वालोँ का ऐसा सोचना था कि यह लड़का ठंड से घबरा जाएगा और माफी माँग लेगा, किंतु ऐसा नहीं हुआ । यह देखने के लिए लड़का क्या कर रहा है और शायद वह ठंड से ठिठुर रहा होगा, आधी रात को इंसपेक्टर ने चंद्रशेखर की कोठरी का ताला खोला तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि चंद्रशेखर दंड – बैठक लगा रहे थे और उस कड़कड़ाती ठंड में भी पसीने से नहा रहे थे । दूसरे दिन Chandra Shekhar Azad को न्यायालय में मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया । उन दिनों बनारस में एक बहुत कठोर मजिस्ट्रेट नियुक्त था । उसी अंग्रेज मजिस्ट्रेट के सामने १५ वर्षीय चंद्रशेखर को पुलिस ने पेश किया ।मजिस्ट्रेट ने बालक से पूछाः “तुम्हारा नाम ?” बालक ने निर्भयता से उत्तर दिया – “Azad” । “पिता का नाम ?” – मजिस्ट्रेट ने कड़े स्वर में पूछाः । ऊँची गरदन किए हुए बालक ने तुरंत उत्तर दिया – “स्वाधीन” । युवक की हेकड़ी देखकर न्यायाधीश क्रोध से भर उठा । उसने फिर पूछाः – “तुम्हारा घर कहाँ है?” चंद्रशेखर ने गर्व से उत्तर दिया – “जेल की कोठरी” । न्यायाधीश ने क्रोध में चंद्रशेखर को १५ बेंत (कोड़े) लगाने की सजा दी ।
मृत्यु:
आजाद की मृत्यु अल्लाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को हुई थी। जानकारों से जानकारी मिलने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने आजाद और उनके सहकर्मियों की चारो तरफ से घेर लिया था। खुद का बचाव करते हुए वे काफी घायल हो गए थे और उन्होंने कई पुलिसकर्मीयो को मारा भी था। चंद्रशेखर बड़ी बहादुरी से ब्रिटिश सेना का सामना कर रहे थे और इसी वजह से सुखदेव राज भी वहा से भागने में सफल हुए। लंबे समय तक चलने वाली गोलीबारी के बाद, अंततः आजाद चाहते थे की वे ब्रिटिशो के हाथ ना लगे, और जब पिस्तौल में आखिरी गोली बची हुई थी तब उन्होंने वह आखिरी गोली खुद को ही मार दी थी। चंद्रशेखर आजाद की वह पिस्तौल हमें आज भी अल्लाहबाद म्यूजियम में देखने मिलती है।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य देश के महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद के बलिदान से युवा वर्ग राष्ट्र रक्षा का प्रण लें संस्था द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित कर सत सत नमन करते हैं , मेहनाज़ अंसारी